ऋषि प्रकाश कौशिक 

सदा असंतुष्ट भाव में रहने वाले केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत अभिनंदन समारोह कर कड़ी परीक्षा देंगे। पिछला इतिहास गवाह है कि उनके राजनीतिक अस्तित्व पर जब कभी विरोधियों का हमला होता है या उनकी लोकप्रियता के ग्राफ की लकीरें धूमिल पड़ने लगती हैं, या विरोधी उनके वर्चस्व को चुनौती देने लगते हैं या पार्टी के भीतर कुछ नेता उनके साम्राज्य को हिलाने की कोशिश करते हैं तो वे 23 सितंबर को अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर परोक्ष रूप से विरोधियों की हर बात का जवाब देते हैं। वे सिर्फ यह संकेत देते हैं कि उन्हें कमतर ना आंका जाए। 

यूँ तो 23 सितंबर हर साल आता है लेकिन राव इंद्रजीत हर बार ऐसा आयोजन नहीं करते जैसा इस बार कर रहे हैं। एक तरह से 23 सितंबर राव इंद्रजीत का मूड मापने का मीटर बन गया है। यदि वे 23 सितंबर को कोई रैली या समारोह कर रहे हैं तो समझ जाना चाहिए कि वे या तो अपने मुख्यमंत्री को कोई करारा जवाब देना चाहते हैं या केंद्रीय नेतृत्व को लगातार उपेक्षा करने की हरकतों से बाज आने की नसीहत देना चाहते हैं या किसी बड़े राजनीतिक फैसले का एलान करना चाहते हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो हर साल 23 सितंबर को उनकी ओर से विशेष आयोजन होना चाहिए था, भले ही छोटे स्तर पर हो; लेकिन हर साल ऐसा आयोजन नहीं होता है। 

राव इंद्रजीत के पिताजी पूर्व मुख्यमंत्री राव  बीरेन्द्र सिंह ने भी अपने बड़े राजनीतिक फैसले 23 सितंबर को ही किए थे। राव बीरेंद्र सिंह ने अपनी विशाल हरियाणा पार्टी का काँग्रेस में विलय 23 सितंबर 1978 को किया था। तब राव इंद्रजीत 28 वर्ष के थे और जाटुसाना से विधायक थे। इंदिरा गांधी की मौजूदगी में काँग्रेसी बने राव इंद्रजीत ने 35 वर्ष 5 माह और 13 दिन बाद काँग्रेस का दामन छोड़ दिया। काँग्रेस छोड़ने के ऐतिहासिक फैसले का एलान भी उन्होंने 23 सितंबर 2013 को रेवाड़ी रैली में किया था। लेकिन बीजेपी में 13 फरवरी 2014 को शामिल हुए थे। हो सकता है कि वे इस बार  सम्मान समारोह में अपने सम्मान की रक्षा के लिए कोई बड़ा संकेत देने की कोशिश करें। 

 इतना तो तय है कि राव इंद्रजीत 23 सितंबर को राव तुलाराम के शहीदी  दिवस पर जब भी कोई आयोजन करते हैं तो उसके राजनीतिक मायने अवश्य ढूँढ़े जाते हैं। यह आयोजन पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय रहता है। हालांकि राव इंद्रजीत के इस साल के आयोजन का खास मकसद प्रदेश के शहीदों को सम्मानित करना है।  मकसद जितना सीधा और सरल दिख रहा है है, उतना है नहीं। आयोजन से पहले ही इस बात पर खास तौर से चर्चा हो रही है कि बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष इस सम्मान समारोह की अध्यक्षता कर रहे हैं। अध्यक्षता  करेंगे, इसमें कोई खास बात तो नहीं है, लेकिन राजनीतिक समीकरणों की दृष्टि से इस आयोजन में बेहद खास बात ढूंढी जा रही है।

 मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और केंदीय मंत्री राव इंद्रजीत के बीच खटास वाले रिश्तों से पूरा प्रदेश वाकिफ़ है। राजनीति का व्याकरण यह कहता है कि मुख्यमंत्री के खेमे के लोगों को राव साहब के खेमे में नहीं जाने चाहिए। यदि जाएंगे तो उन्की लॉयल्टी संदेहास्पद मानी जाएगी। इसी व्याकरण के फॉर्मूले से बीजेपी अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ की समारोह में मौजूदगी को मुख्यमंत्री के साथ उनके रिश्तों को प्रश्न पत्र की तरह आंका जा रहा है। 

यह भी हो सकता है कि शहीदों को सम्मान देने नाम पर ओमप्रकाश धनखड़ मना ना कर पाए हों। मना करते तो निश्चय ही पार्टी से यह सवाल पूछा जाता कि बीजेपी अध्यक्ष ने शहीदों के सम्मान समारोह में शिरकत से क्यों मना कर दिया।    

इस बीच एक नया और अविश्वसनीय बदलाव भी देखने मिला है। शहीद सम्मान समारोह के आयोजन में पटौदी के उन नेताओं और कार्यकर्ताओं की विशेष भूमिका दिखाई दे रही है जो मुख्यमंत्री के दरबारी है। मुख्यमंत्री के इशारे के बिना दरबारी सक्रिय नहीं हो सकते। यह भी तय है केंदीय नेतृत्व के कहने पर ही मुख्यमंत्री मंत्री ने अपने दरबारियों को सक्रिय होने का इशारा किया होगा। यदि केंदीय नेतृत्व से कोई निर्देश नहीं आए तो यह माना जाए कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर अपनी कुर्सी निरापद रखने के लिए दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे हैं। बड़े नेताओं खटपट रख कर ज्यादा दिन कुर्सी बचाना मुमकिन नहीं है। 

यह भी हो सकता है कि शहीदों को सम्मान देने नाम पर ओमप्रकाश धनखड़ मना ना कर पाए हों। मना करते तो निश्चय ही पार्टी से यह सवाल पूछा जाता कि बीजेपी अध्यक्ष ने शहीदों के सम्मान समारोह में शिरकत से क्यों मना कर दिया।    

इस बीच एक नया और अविश्वसनीय बदलाव भी देखने मिला है। शहीद सम्मान समारोह के आयोजन में पटौदी के उन नेताओं और कार्यकर्ताओं की विशेष भूमिका दिखाई दे रही है जो मुख्यमंत्री के दरबारी है। मुख्यमंत्री के इशारे के बिना दरबारी सक्रिय नहीं हो सकते। यह भी तय है केंदीय नेतृत्व के कहने पर ही मुख्यमंत्री मंत्री ने अपने दरबारियों को सक्रिय होने का इशारा किया होगा। यदि केंदीय नेतृत्व से कोई निर्देश नहीं आए तो यह माना जाए कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर अपनी कुर्सी निरापद रखने के लिए दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे हैं। बड़े नेताओं खटपट रख कर ज्यादा दिन कुर्सी बचाना मुमकिन नहीं है। 

यह भी हो सकता है कि शहीदों को सम्मान देने नाम पर ओमप्रकाश धनखड़ मना ना कर पाए हों। मना करते तो निश्चय ही पार्टी से यह सवाल पूछा जाता कि बीजेपी अध्यक्ष ने शहीदों के सम्मान समारोह में शिरकत से क्यों मना कर दिया।     इस बीच एक नया और अविश्वसनीय बदलाव भी देखने मिला है। शहीद सम्मान समारोह के आयोजन में पटौदी के उन नेताओं और कार्यकर्ताओं की विशेष भूमिका दिखाई दे रही है जो मुख्यमंत्री के दरबारी है। मुख्यमंत्री के इशारे के बिना दरबारी सक्रिय नहीं हो सकते। यह भी तय है केंदीय नेतृत्व के कहने पर ही मुख्यमंत्री मंत्री ने अपने दरबारियों को सक्रिय होने का इशारा किया होगा। यदि केंदीय नेतृत्व से कोई निर्देश नहीं आए तो यह माना जाए कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर अपनी कुर्सी निरापद रखने के लिए दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे हैं। बड़े नेताओं खटपट रख कर ज्यादा दिन कुर्सी बचाना मुमकिन नहीं है। 

राव साहब हमेशा अपनी पार्टियों के मुख्यमंत्रियों से नाराज रहते हैं। क्यों नाराज रहते हैं, इस यक्ष प्रश्न का जवाब किसी के पास नहीं है। काँग्रेस में थे तो भूपिंदर सिंह हुड्डा से कभी नहीं पटी। लगातार नाराजगी के कारण काँग्रेस को अलविदा कहना पड़ा। अब मनोहर लाल खट्टर से अनबन है।   

उधर, विरोधी नेताओं ने जमीन का बहुत प्रकरण उठा कर राव इंद्रजीत की छवि धूमिल करने की कोशिश की है लेकिन वो कामयाब नहीं हो पाए। 

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