गुरुग्राम। हम अक्सर अखबारों में खबर देखते है या अपने आप पास अवैध निर्माण पर होती तोड़फोड़ की कार्यवाही को देखते ओर पढ़ते है। किंतु उस कार्यवाही के 2,4 दिन बाद ही इनका निर्माण फिर से शुरू हो जाता है। कुछ मकानों पर सील तक लगाई जाती है किंतु उसके बावजूद उनका निर्माण पूरा हो जाता है और लोग रहना शुरू कर देते है। क्या निगम की कार्यवाही मात्र एक दिखावा है या वसूली का रैकिट?

क्योकि अगर ये अवैध निर्माण है तो प्रसाशन की नज़र में आने के बाद इनपर तोड़फोड़ की कार्यवाही ओर सीलिंग होने के बाद इनका निर्माण पूरा कैसे हो जाता है? सबसे बड़ा सवाल ये है। अगर ये अवैध है तो इनका निर्माण कैसे हो जाता है और अगर वेध है तो तोड़फोड़ ओर सीलिंग की कार्यवाही क्यो की जाती है?

तस्वीर में दिए गए निर्माण के साथ 1 महीने पहले ही 17 अगस्त को 2 ओर अवैध निर्माण पर न्यू पालम विहार में निगम का पीला पंजा चला था किन्तु सारे निर्माण अब लगभग पूरे होने को है। आजकल गली मोहल्लों में फ्लैट बना कर बेचे जा रहे है जिस जगह 1 परिवार को रहने के लिए सुविधा का इंतेजाम है वहा कैसे 5,6 परिवार बसा दिए जाते है। किंतु अवैध निर्माण पर कार्यवाही के बाद भी इनका निर्माण पूरा कैसे हो जाता है? वो क्या मैकेनिज्म है जिससे बिना नक्शा पास हुए जैसा निर्माण हो रहा था सीलिंग के बाद भी वेसे ही बन जाता है? क्या निगम कर्मचारियों और अधिकारियों की जेब गर्म की जाती है जिसके बाद ये आंखों पर पट्टी बांध लेते है या खट्टर सरकार द्वारा अवैध वसूली के लिए ये कार्यवाही की जाती है?

सवाल ये है कि अब तक शहर के कितने अवैध निर्माण पर कार्यवाही हुई है और जिन मकानों पर कार्यवाही हुई है उनकी मौजूदा स्थिति क्या है? जल्द ही शिवसेना इसपे एक RTI लगाने वाली है। क्योकि कही न कही ये ईमानदार कही जाने वाली खट्टर सरकार की अवैध वसूली का सच उजागर करती है। अगर अवैध थे तो बने कैसे नही थे तो तोड़े क्यो?

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