भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। वर्तमान में प्रदेश की स्थिति भाजपा के लिए अनुकूल दिखाई नहीं दे रही। भाजपा सरकार की दरारें साफ नजर आने लगी हैं। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और गृह मंत्री अनिल विज के चर्चे आम हो रहे हैं। पहले तो डीजीपी मनोज यादव  थी और अब हरियाणा रोड़वेज में जो आइपीएस, आइएएस के स्थान पर लगाया, वह विवाद सार्वजनिक हो रहा है। इसी प्रकार भाजपा के विधायक भी सार्वजनिक मंचों पर आवाज उठा रहे हैं कि अधिकारी उनकी मानते नहीं। इसका सीधा-सा अर्थ निकलता है कि मुख्यमंत्री विधायकों की सुनते नहीं।

इधर, किसान आंदोलन भाजपा के लिए बड़ा सिर दर्द है। किसान आंदोलन के साथ-साथ किसान ही नहीं अपितु कर्मचारी, श्रमिक, व्यापारी सभी उनके समर्थन में आकर मुखर हो रहे हैं और भाजपा लगता है मस्त है। मुख्यमंत्री और उनके मंत्री यह कहते नहीं थकते कि यह आंदोलन किसानों का तो है ही नहीं। किसान तो अपने खेतों पर हैं, यह राजनैतिक आंदोलन है और जो धरने पर बैठे हुए हैं, वे शरारती तत्व हैं। लगता है कि सरकार के या तो ये वश में नहीं हैं या फिर आत्ममुग्ध हैं। यह सोचे हुए है कि सारी जनता प्रधानमंत्री मोदी के नाम से इनसे दूर जा ही नहीं सकती।

इधर संगठन की बात करें तो संगठन के अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ हैं। बड़े लंबे इंतजार के बाद उन्होंने संगठन बनाया। चर्चाकारों का कहना है कि संगठन में आधे भी अधिकारी उनकी मर्जी के नहीं बने। बाकी संगठन किसी न किसी के दबाव के चलते पूरा किया गया है। वह दबाव मुख्यमंत्री का भी हो सकता है और केंद्रीय संगठन का भी हो सकता है या फिर कोई अन्य। कहना मुनासिब नहीं होगा समझ ही लीजिए। इसका असर जमीनी स्तर पर दिखाई दे रहा है। संगठन के अधिकारी भी आत्ममुग्ध नजर आते हैं। वर्तमान समय में सोशल मीडिया की पहुंच है तो वह अपने कार्यों की इतिश्री सोशल मीडिया पर पोस्ट डालकर कर लेते हैं या कभी आपस में मिलकर मीटिंगें कर लेते हैं, जनता से सरोकार समाप्त होता जा रहा है।

अभी हाल ही में भिवानी में भाजपाइयों द्वारा ही प्रदेश अध्यक्ष के पुतले फूंके गए। शायद यह प्रथम अवसर ही होगा कि हरियाणा में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के पुतले फूंके गए हों। कारण यही है कि कार्यकर्ताओं का कहना है कि भाजपा में पद संबंधों के अनुसार दिए गए हैं, योग्यता से नहीं।

गुरुग्राम में भी कुलभूषण भारद्वाज को छह वर्ष के लिए निष्कासित किया गया है, किंतु भाजपा संगठन का कोई भाजपाई इस बारे में बात करने को तैयार नहीं। लगता ऐसा है कि भिवानी वाली स्थिति शीघ्र ही गुरुग्राम में भी बन सकती है।

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