भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक गुरुग्राम। एसई रमेश शर्मा के साथ हुए कथित अन्याय के विरोध में सभी इंजीनियर, सफाईकर्मी, कुछ आरडब्ल्यूए और फायर डिपार्टमेंट के लोग प्रदर्शन कर रहे थे। उन्हें अनुभवी कमिश्नर मुकेश कुमार आहूजा ने बार-बार मीटिंग कर समझाया कि समाधान तो सरकार ही निकालेगी। मेरे हाथ में तो है नहीं लेकिन मैं सरकार के पास वास्तविक स्थिति पहुंचा दूंगा। उसका निर्णय शीघ्र हो जाएगा। अत: आप नागरिकों की सुविधाओं का ख्याल करते हुए अपने इस धरने को समाप्त कर कार्य पर लग जाओ। उनकी बातों का प्रभाव हुआ और इंजीनियर्स धरना समाप्त करने पर तो नहीं लेकिन स्थगित करने के लिए मान गए और उन्होंने बुधवार तक का समय दिया है कि यदि बुधवार तक एसई रमेश शर्मा को बहाल नहीं किया गया तो फिर धरना चलेगा। कहावत है जनता की आवाज भगवान की आवाज होती है। यहां यह शायद प्रथम बार हो रहा है कि किसी अधिकारी के निलंबन पर उसके विरोध में इस प्रकार का जनसमर्थन मिले। अत: मोटी नजरों से देखा जाए तो यह निलंबन गलत ही लगता है और फिर यह एक व्यक्ति की शिकायत पर हुआ है न कि जांच होने पर। धरना तो समाप्त हो गया लेकिन इसके पश्चात भी लोगों में यही चर्चा है कि यह अनुचित हुआ और यदि यह वापिस नहीं हुआ तो जोर-शोर से आवाज उठाएंगे। साथ ही यह चर्चा भी चल रही है कि जब महिला पार्षद बनी है तो उनके पति कार्यालय में आकर अधिकारियों को क्यों निर्देश देते हैं? मेयर मधु आजाद के पुत्रों की भी चर्चा चल रही है। उनका कहना है कि यह कौन-सी संवैधानिक दृष्टि से उचित है? साथ ही कुछ अधिकारी वर्ग यह भी कह रहे थे कि निगम में अनेक अनुचित कार्य इनके निर्देश पर होते हैं। बड़ा प्रश्न यह उठाया जा रहा है कि हस्ताक्षर करने वाला ही जिम्मेदार है या उन्हें निर्देश देने वाला और उन पर निगरानी करने वाला भी जिम्मेदार है? निगम पार्षद हर समय हमारे कार्य पर नजर रखते हैं और मेयर टीम की तो फाइनेंस कमेटी है। वह फाइनेंस कमेटी भी निगम के राजस्व को देखने के लिए है, उसका दुरुपयोग रोकने के लिए है। कुल मिलाकर यह कहें कि जनप्रतिनिधि जो निगम में हैं, उनका यही कार्य है कि वह यह देखें कि निगम में अधिकारी कोई अनुचित कार्य तो नहीं कर रहे। जब वह देखकर अनदेखा करते हैं तो उसमें उनका स्वार्थ निहित है। अब वह जांच में दोषी पाए जाने पर अधिकारियों की सजा की बात करते हैं तो सजा के जिम्मेदार तो क्या उन्हें चैक करने वाले नहीं हैं? स्थानीय निकाय मंत्री अनिल विज यदि इस मामले में पूरा ध्यान लगाकर जांच कराकर दूध का दूध और पानी का पानी नहीं करते हैं तो संभव है कि किसान आंदोलन के समय में यह समस्या भी सरकार के लिए बहुत बड़ा सिर दर्द साबित हो। कहावत है सांडों की लड़ाई में झुंडों का नुकसान। अर्थात बड़े लोगों की लड़ाई में पिसता गरीब आदमी ही है। वर्तमान में यदि यह लोग कार्य स्थगित करते हैं तो सारी जनता त्राहि-त्राहि करेगी, क्योंकि गुरुग्राम नगर निगम के अंदर जनता के रोजमर्रा की जरूरतों के कार्य निहित हैं। मूलभूत आवश्यकताएं, पानी, सीवर, सड़क, सफाई, यह सभी कार्य निगम ही देखता है और देखते-देखते इन कार्यों की शिकायतें जनता करती रहती है। अब भी ऐसे स्थान हैं जहां महीनों से पानी जैसी मूलभूत आवश्कता का समाधान नहीं हुआ। यदि काम ठप कर देंगे तो जनता का क्या हाल होगा, कल्पना करना भी भयावह लगता है। Post navigation नपा चेयरमैन चुनाव: कंवर की मार्कशीट को लेकर सुनवाई, हाईकोर्ट ने सर्टीफिकेट को दिया योग्य करार कठिनाइयों से जूझ रहे भाजपा सरकार और भाजपा संगठन