लघुकथा : कद

रोहित यादव

राधा की हालत आज कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई थी। काफी दवा-दारु करने के उपरांत भी उसकी बेहोशी नहीं टूट रही थी। राधा को इस हालत में देखकर उसका पति गोपी बुरी तरह घबरा उठा और वह रिक्शा लेकर तुरंत डॉक्टर के पास पहुँचा।डॉक्टर को लेकर जब गोपी अपने घर पहुँचा तब तक राधा अंतिम साँस ले चुकी थी। उसके बच्चे बिलख-बिलख कर रो रहे थे। मोहल्ले के लोग लकड़ियाँ इकट्ठी करने में लगे थे। अपनी पत्नी की मौत सुनकर गोपी सन्न रह गया था। वह अपलक अपनी मृत पत्नी की ओर देखे जा रहा था।

तभी डॉक्टर के शब्द उसके कानों से टकराये–” गोपी, जो होना था सो वह हो चुका है। मौत के आगे किसी का वश नहीं चला है। मुझे जल्दी अस्पताल पहुँचना है आप मुझे मेरी फीस के सौ रुपये दे दीजिए।”गोपी ने अपनी जेब से सौ रुपये का नोट निकाल कर डॉक्टर साहब को पकड़ा दिया और जब वह दस रुपये का नोट रिक्शा चालक को देने लगा तो उसने लेने से इंकार कर दिया। उसने गोपी के कंधे पर हाथ रखकर सांत्वना भरे स्वर में कहा-” नहीं भाई, मुझे इनकी जरूरत नहीं है। इन्हें अपने पास रखो। अब इनकी मुझ से ज्यादा तुम्हें जरूरत पड़ेगी। अपने बच्चों को संभालो और पत्नी का दाह संस्कार करो…?

“इसके आगे वह कुछ नही बोल पाया। क्योंकि उसका गला भर आया था। फिर वह डॉक्टर को रिक्शा में बैठाकर अस्पताल की तरफ चल पड़ा था। रिक्शा में बैठा डॉक्टर जब आत्म-मंथन करने लगा तो उसे रिक्शा चालक का कद अपने से बहुत ऊँचा लगने लगा था।

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