संवेदनशीलता और सहजता मनुष्य के सर्वोत्तम गुण हैं। जब एक संवेदनशील और सहज व्यक्ति आला अधिकारी होने के साथ-साथ साहित्यकार भी हो तो यह सोने पर सुहागे जैसी बात है। ऐसे ही अप्रतिम व्यक्तित्व की धनी हैं आला आईएएस अधिकारी धीरा जी खंडेलवाल।

कड़क प्रशासनिक अधिकारी की बजाय उन्हें हमेशा संवेदनशील अफसर के तौर पर जाना जाता है। अतिरिक्त मुख्य सचिव पद से सेवानिवृत्त हो रहीं धीरा जी खंडेलवाल जितनी संवेदनशील अफसर हैं उससे ज्यादा संवेदनशील कवयित्री हैं। उनकी काव्य रचना  का झुकाव छायावाद की ओर है तभी उनकी कविताओं में शुद्धतावाद   के दर्शन होते हैं। उनकी कविताएं सहज ग्राह्य और सरल शब्दों के साथ सटीकता से अपने भावों का संप्रेषण करती हुई पाठक को चमत्कृत कर देती हैं।

 धीरा जी की छवि सचिवालय के बड़े बंद कमरे में बैठे रौब झाड़ने वाली अधिकारी की नहीं है बल्कि मिलनसार अफसर की रही है।  उनकी छवि अपनी कविताओं के लिए ऐसे विषय चुनने वाली अफसर की है, जो ज़िंदगी के झंझावतों में नए रास्ते बनाती हैं। उनकी रचनाओं में मन के कोमल भाव हैं, जग की वेदना है, बेचैनी है और मुश्किलों से जूझने का माद्दा भी है।

धीरा जी बेहद सहज और सरल हृदय की स्वामिनी हैं। जहां तक उनके लिखने की बात है तो उनमें हमेशा बाल-सुलभ जिज्ञासा रहती है। उनमें सीखने की प्रबल इच्छा है। साहित्य की नई-नई विधाएं सीखते समय उनकी बाल-सुलभ जिज्ञासा के दर्शन होते हैं। धीरा जी सदा सीखने को तत्पर रहती हैं।

धीरा जी की साहित्यिक प्रतिभा नैसर्गिक और ईश्वर प्रदत्त है। इसी प्रतिभा के बल पर उनकी कविताओं का बिंब विधान अद्वितीय होता है। उन्हें जहां अलंकार प्रिय हैं वहीं उनका शब्दकोश भी कमाल का है।

धीरा जी के कविता संग्रहों के नाम सार्थकता लिए होते हैं। चाहे मेघ मेखला हो, रेशमी रस्सियां हों, बूंद बावरी हो, व्योम विस्तार हो, मन मुकुर हो, तुम सत्संग मैं साखी, चिरंतन एषणा हो या तारों को ओर हो सभी जहां अपने नाम की सार्थकता स्वयं सिद्ध करते हैं वहीं कविता के प्रति धीरा जी की चिरंतन एषणा के भी द्योतक हैं। उनके संग्रहों नाम एक साथ होकर कविता कहते हैं। ज़रा एक बानगी देखिए:-

शब्दों का खेल

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निर्झर नीर की
बावरी बूंद
मन मुकुर में
संजोए चिरंतन एषणा
सांझ-सकारे जला कर
नेह के दीप
करके मुखर मौन
पार कर
ख्यालों के खलिहान
सांसों में भर
माटी की महक

हाथों में संजो
ओस के मोती
और थाम कर
रेशम की रस्सियां
धीमी-धीमी
कदमों की लय
मन के अंतर आकाश में
तुम सत्संग मैं साखी का
भाव भरकर
मेघ मेखला
निहारते-निहारते
मन बस यूं ही
उड़ चला
तारों की तरफ
नापा व्योम विस्तार
और गुनगुनाते
मीठे-मीठे हरफ

बहरहाल, धीरा जी की शैली काव्यात्मक चमत्कारों से परिपूर्ण है। वे छोटे-छोटे वाक्यों में गंभीर भाव भरने में दक्ष हैं। संगीतात्मकता और लय पर आधारित उनकी शैली अत्यंत सरस और मधुर है। जहां वे दार्शनिक विषय में अपनी बात कहती हैं वहां उनकी शैली गंभीर हो जाती है।
हरियाणा के लोगों के लिये धीरा खंडेलवाल कोई नया नाम नहीं है। उनके पति श्री कृष्णकुमार खंडेलवाल हरियाणा के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी हैं। धीरा जी की गिनती उन चंद अफसरों में होती है जिनकी छवि निहायत ईमानदार, सौम्य और संवेदनशील लोगों में होती है।

फाइलों के संसार से अलग धीरा बेहद संवेदनशील कवयित्री भी हैं।  उनकी कविताएं , हाइकु ,तांके , क्षणिकाएं , पिरामिड , सेदोका और छोटी कविताएं विराट अर्थों से भरी होती हैं। वे हृदय से लिखती हैं, इसलिए उनकी प्रत्येक रचना दिल में उतरती जाती है। उनकी कविताएं चंहु मुंडेर पर  रखे अंधेरे से लड़ते एक दीये के समान हैं जो अपनी रोशनी का मज़बूती से आभास करवाता है। उनकी कविताएं कहीं कहीं सूखी नदी तो कहीं कलकल बहने लगती हैं। उनकी चित्रमयता भरी रचनाएं पाठक को सम्मोहित सा देती हैं।

उनकी कविताओं का मूलस्रोत प्रकृतिप्रेम और प्रणयभाव है। कविताओं में वेअपने इन्द्रधनुषी विचार अंजुरि भर भर गुलाल लुटाती हैं। उनके हाइकु की भी ऐसे पक्के पदचिन्ह छोड़ते हैं, जिन पर बार-बार देर तक चलने को मन करता है।

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