पीढ़ियों के आरपार साफगोई से लिखे संस्मरण -कमलेश भारतीय जब एक माह पहले नोएडा सम्मान लेने गया तब समय तय कर प्रसिद्ध लेखिका ममता कालिया से मिलने गाजियाबाद भी गया । बहुत कम समय में बहुत प्यारी रही यह मुलाकात ! जालंधर मेरा पुराना जिला है पंजाब में और इस नाते वे हमारी भाभी ! उन्होंने सबसे अमूल्य उपहार दिया रवींद्र कालिया की तीन किताबें देकर ! इनमें सबसे ताज़ा किताब है -छूटी सिगरेट भी कम्बख्त ! गालिब छुटी शराब तो बहुचर्चित है लेकिन यह संस्मरणात्मक पुस्तक भी धीमे धीमे चर्चित होती जा रही है, इसमें पंद्रह संस्मरण शामिल हैं जिनमें इलाहाबाद, मुम्बई, दिल्ली में बिताये समय व जिन लोगों से मुलाकातें होती रहीं, उन पर बहुत ही दिल से और दिल खोलकर लिखा गया है बल्कि कहू़ं कि संसमरण लिखने का रवीन्द्र कालिया का खिलंदड़ा सा अंदाज सीखने का मन है ! इस पुस्तक में कृष्णा सोबती, राजेंद्र यादव, उपेंद्रनाथ अश्क, कमलेश्वर, खुशवंत सिंह, जगजीत सिंह, टी हाउस, ओबी, अमरकांत, आलोक जैन पर इतने गहरे पैठ कर लिखा है कि ईर्ष्या होने लगती है कि काश ! मैं ऐसा इस जन्म में लिख पाता ! सच में ममता कालिया ने मुझे बेशकीमती उपहार दे दिया जो नोएडा में मिले सम्मान से पहले ही सम्मान से कम नहीं ! कोई इतनी कड़वी सच्चाई नहीं लिख सकता कि कुमार विकल ने टी हाउस के बाहर रवीन्द्र कालिया को थप्पड़ मार दिया क्योंकि उन्हें यह शक था कि नौ साल छोटी पत्नी उनकी शादी को लेकर लिखी गयी है और वे लुधियाना से गुस्सा निकालने दिल्ली के टी हाउस तक पहुंच गये ! इसी तरह मोहन राकेश पर चाकू से हमले का जिक्र भी है । रवीन्द्र कालिया मोहन राकेश के जालंधर के डी ए वी काॅलेज में छात्र भी रहे थे और हिसार के दयानंद काॅलेज में हिंदी प्राध्यापक भी रहे थे । कमलेश्वर जिस रिक्शेवाले को इलाहाबाद में रवीन्द्र कालिया के घर के बाहर खड़ा रहने को बोलकर आये थे, वह राशन और दवाइयों समेत भाग निकला ! कैसे कमलेश्वर ने नयी कहानियां पत्रिका में नयी पीढ़ी को खड़ा किया और कैसे इलाहाबाद ने धर्मवीर भारती, कमलेश्वर और रवीन्द्र कालिया को कितनी ऊंचाइयों तक स्पूतनिक की तरह उड़ान दी, ऊंचाइयां दीं ! कैसे खुशवंत सिंह जितने ऊपर से अव्यवस्थित दिखते हैं, वैसे वे हैं नहीं ! कितना खुलकर कहते हैं कि अपनी प्रेमिकाओं को याद कर रहा हूं। ऐसे अनेक प्यारे संस्करणों के लिए यह पुस्तक बार बार पढ़ी जा सकती है! ममता कालिया जी ! इस अनमोल उपहार के लिए मेरे पास कहने को शब्द नहीं ! Post navigation जंतर मंतर के बाद अलग राह ? दीवाली, पराली और प्रदूषण ……