उमेश जोशी    

 बुरे फंसे हैं राव इंद्रजीत; ना पार्टी में बने रहने का माहौल है और ना ही पार्टी छोड़ने के हालात। जाएँ तो जाएँ कहाँ की स्थिति में फंसे हुए हैं जहाँ सारे विकल्प बेमानी हो जाते हैं। उनके पास राजनीतिक संकट हरण का ऐसा कोई मंत्र भी नहीं है जिसका जाप कर हाल में उठे भूचाल से वे बाहर निकल आएँ। अब तो राजनीति के उन दाँवों पर नजर टिका समय गुजारना उनकी विवशता है जो दाँव उन्हें पटखनी लगाने के लिए बीजेपी की ओर से हर पल लगाए जा रहे हैं।   

काँग्रेस छोड़ी थी, इस आस से, कि घुटन से छुटकारा मिलेगा; बीजेपी में पद मिलेगा तो कद भी बढ़ेगा; पद और कद का रिश्ता बना रहेगा तो अहीरवाल की राजनीति में वर्चस्व बना रहेगा। राव साहब की सोच अहीरवाल तक ही सीमित है। वे जानते हैं कि प्रदेश के मुख्यमंत्री कभी नहीं बन सकते इसलिए अहीरवाल में दबदबा बनाकर केंद्र की राजनीति में बने रहना ही श्रेयस्कर है। अब तक सब ठीक चल रहा था। लेकिन हाल में एक नए पात्र भूपेंद्र यादव के आने से कहानी में बड़ा मोड़ आ गया है। भूपेंद्र यादव केंद्र में श्रम और रोजगार मंत्री हैं। इसके अलावा उनके पास पर्यावरण और वन मंत्रालय भी है। दोनों विभाग महत्त्वपूर्ण हैं और कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी है। राव इंद्रजीत के सामने एक बड़ी लकीर खींची गई है जिससे राव इंद्रजीत के मुकाबले भूपेन्द्र यादव बड़े नेता लगने लगे हैं। 

पूरा प्रदेश राव इंद्रजीत और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के रिश्तों की खटास के बारे में जानता है। राव इंद्रजीत का रवैया खट्टर को चुभता रहा है। एक दो बार तो सार्वजानिक कार्यक्रमों में दोनों का आमना सामना भी हुआ; राव इंद्रजीत ने एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री के देर से पहुंचने पर अपनी कड़ी आपत्ति भी दर्ज की थी जिससे निश्चय ही मुख्यमंत्री उनके आपत्ति दर्ज करने के अंदाज से आहत हुए होंगे। भूपेंद्र यादव का कद ऊँचा होने से मुख्यमंत्री का आहत अहम संतुष्ट हुआ है; उसके ज़ख्मों पर मरहम लगी है। इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि अहीरवाल में समानांतर राजनीतिक ताकत  तैयार करने का आइडिया मनोहर लाल खट्टर ने ही दिया हो। राव इंद्रजीत के कारण मनोहर लाल खट्टर काफी असहज हैं। खट्टर राज्य के मुख्यमंत्री होते हुए भी दक्षिण हरियाणा से दूरी बना कर रखते हैं क्योंकि वे राव इंद्रजीत के कारण दूर रहना ही मुनासिब समझते होंगे। 

भूपेंद्र यादव को कैबिनेट मंत्री बनाने का यही संकेत है कि यादवों का नया नेता तैयार किया जाए। एक मायने में यह मनोहर लाल खट्टर की विजय है। अहीरवाल में भूपेंद्र यादव का प्रभाव बढ़ने से दक्षिण हरियाणा में खट्टर भी मजबूत होते हैं। 

भूपेंद्र यादव का अहीरवाल में रूतबा बढ़ाने के लिए पार्टी ने  जन आशीर्वाद यात्रा का आयोजन किया है। आसपास चुनाव भी नहीं हैं फिर भी भूपेंद्र यादव इलाके में निकलेंगे, जन आशीर्वाद के बहाने। बीजेपी और खास तौर से मुख्यमंत्री भली तरह जानते हैं कि जन आशीर्वाद यात्रा से पार्टी का कोई भला होने वाला नहीं है क्योंकि मुख्यमंत्री खुद जन आशीर्वाद यात्रा करके उसका स्वाद चख चुके हैं। चुनावों में 75 सीट जीतने का सपना लेकर जन आशीर्वाद यात्रा के लिए निकले थे, 40 पर सिमट गए; अंततः भीख माँग कर सरकार बनानी पड़ी। भूपेंद्र यादव को जन आशीर्वाद यात्रा के लिए भेजने का सिर्फ मकसद हो सकता है कि वे इलाके में सक्रिय हो जाएँ और वर्चस्व बढ़ाने के लिए प्रयास उत्तरोत्तर तेज कर दें। भूपेंद्र यादव चमकेंगे तो ही राव इंद्रजीत का तेज घटेगा।  

राव इंद्रजीत पर बीजेपी को भरोसा भी नहीं है। वो काँग्रेस को छोड़ कर आ गए तो क्या गारंटी है कि बीजेपी नहीं छोड़ेंगे। राव साहब केंद्र में मंत्री रह कर इलाके में प्रभाव क्षेत्र बढ़ाएँगे और जब पार्टी छोड़ेंगे तो अपना प्रभाव भी साथ ले जाएँगे। भूपेंद्र यादव पूरी तरह संघ की संस्कृति में पले हैं इसलिए उनकी निष्ठा संदेह से परे है। पार्टी अहीरवाल क्षेत्र में ऐसे नेता को मजबूत करना चाहती है जो सदा पार्टी के साथ बना रहे, पूरी निष्ठा के साथ। 

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