सरकार की गलत आर्थिक नीतियों के चलते दशकों पिछड़ा देश – दीपेंद्र हुड्डा

• समय रहते आर्थिक हालात काबू करे सरकार, मंदी, महामारी, महंगाई से मचा हाहाकार
• सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने पानीपत में कई कार्यक्रमों में शिरकत की
• किसान की आवाज़ जब तक नहीं सुनेगी सरकार, वो संसद से सड़क तक लड़ाई लड़ते रहेंगे

पानीपत, 25 जुलाई। राज्य सभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा आज पानीपत में कई कार्यक्रमों में शामिल होने पहुंचे। इस दौरान विधायक बलबीर बाल्मिकी के यहां पहुंचे दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि सरकार की गलत आर्थिक नीतियों के चलते देश कई दशक पीछे चला गया है। मंदी, महंगाई, महामारी से करोड़ों लोग गरीबी के कुचक्र में फंस गए, करोड़ों नौकरियां जा चुकी हैं। बेरोज़गारी युवाओं का भविष्य लील रही है। महंगाई से हाहाकार मचा हुआ है। डीजल-पेट्रोल, घरेलू गैस, खाद्य तेल के रोजाना बढते दामों ने आम आदमी को आर्थिक तौर पर तबाह कर दिया है। उन्होंने सरकार को चेताया कि वो समय रहते हालात पर काबू करे और देश तथा देशवासियों को आर्थिक तबाही से बचाए।

दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि 2013-14 में विकास के अनेकों पैमानों पर नं-1 हरियाणा, अब नीति आयोग के एसडीजी-2021 में शिक्षा, औद्योगिक, आर्थिक वृद्धि में पिछड़कर देश में 14वें स्थान पर व अपराध, बेरोजगारी मे टॉप-3 मे पहुँच गया है। दुनिया के तमाम जाने माने अर्थशास्त्री सरकार को आने वाले आर्थिक दुष्परिणामों को लेकर चेतावनी दे रहे हैं। लेकिन दुर्भाग्य की बात ये है कि इतना सब होने के बावजूद सरकार उदासीन और अहंकारी रवैया अपनाये हुए है।

किसानों के मुद्दे पर बोलते हुए सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि सरकार को जो बात सुननी चाहिए वो तो नहीं सुन रही और जो बात नहीं सुननी चाहिए वो सुनने में पूरा समय लगा रही है। उन्होंने बताया कि वो लगातार किसानों के मसले को देश की सबसे बड़़ी पंचायत संसद में उठाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन अहंकार में चूर ये सरकार सरकार किसानों की आवाज़़ न संसद में उठाने दे रही न सड़क पर। एक तरफ सरकार पहले किसानों की मांगों को खारिज कर रही है और फिर दूसरी तरफ जले पर नमक छिड़कते हुए किसानों से बातचीत करने की बात कह रही है। दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि सरकार खुले दिल से किसानों से बात करे और उनकी मांगों को माने। दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि किसान के मुद्दे पर संसद में चर्चा के लिये जब तक सरकार से सहमति नहीं मिलेगी, तब तक वो संसद में और संसद के बाहर भी किसानों की आवाज़ पुरजोर तरीके से उठाते रहेंगे।

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