सन्त सतगुरु से बढ़कर और कोई भी सहाई नहीं हो सकता : हजूर कवर साहेब जी महाराज

जगत जंजाल से सन्त सत्गुरु ही पार पार कर सकते हैं।

दिनोद धाम जयवीर फोगाट,

14 जुलाई, सतगुरु जीव का प्रथम सहारा भी है और आखिरी भी। सतगुरु ही केवल इस जगत में एकमात्र देने वाले हैं। सतगुरु देने में कोई कमी नहीं छोड़ता क्योंकि सतगुरु ही दीन दयाल राधास्वामी का स्वरूप है। अगर सतगुरु शरण में आकर भी हमारी झोली खाली रहती है तो ये हमारी कमी है सतगुरु की नहीं।

यह सत्संग वचन परमसंत कँवर साहेब जी महाराज ने दिनोद गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम में फरमाए। हुजूर महाराज जी ने कहा कि तीन तरह से कष्ट दूर हो सकता है। पहला किसी से अपना दुख बांट कर। दूसरा उस पीड़ा को लिख लो चाहे बाद में उसे फाड़ दो और तीसरा सतगुरु के समक्ष फरियाद करो चाहे प्रत्यक्ष होकर या मन से। तीनो में ही सतगुरु आपका सबसे बड़ा सहारा है।सतगुरु का सूक्ष्म रूप केवल तभी सम्भव होगा जब कुल वर्ण गोत्र को छोड़ दोगे यानी जब जगत से उपरामता प्राप्त कर लोगे तब जाकर हृदय में प्रेम की कटारी लग पाती है।

हुजूर कँवर साहेब ने कहा कि राधास्वामी दयाल की शरण मिलने पर रूह शब्द को सुनती है, मानसरोवर में नहाती है और हंस रूप होकर मुक्ति धाम में स्थान पाती है लेकिन ये इतना आसान नहीं है क्योंकि मन कभी इसको विश्राम नहीं करने देता।गुरु महाराज जी ने कहा कि सतगुरु के सामने ये फरियाद करो कि आप सतगुरु हमें सगुन के साथ साथ निर्गुण रूप भी दिखाओ यानी वो रूप जो अगम है अपार है निर्भय है जन्म मरण से न्यारा है। इसी रूप से जीव की मुक्ति होती है। हुजूर महाराज जी ने कहा कि स्थूल रूप भी सतगुरु का प्यारा है। पर यह भी सत्य है कि सतगुरु का स्थूल नरदेही रूप के बिना जीव का काज नही सरता क्योंकि अगर सतगुरु नर देह में जगत में ना आएं तो जीव कैसे चेतेगा। इस जगत कीच से इंसान कैसे निकलेगा। लेकिन मुक्ति तभी सम्भव है जब हम स्थूल के साथ साथ सूक्ष्म रूप को भी पा लेंगे। हुजूर महाराज जी ने कहा कि सतगुरु का नूरी रूप भी आप पा सकते हो यदि मन को मार कर आप करनी करना सीख जाएंगे तो। इनके लिए पांच इंद्रियों का मार्ग बंद करना पड़ेगा। जब स्पर्श रूप गंध स्वाद और शब्द इंद्री रसों को त्याग दोगे तब अलख अगम के पार आपको राधास्वामी धाम में सतगुरु के असल रूप के दर्शन होंगे। लेकिन ये तभी होगा जब धैर्य रख कर करनी का मार्ग अपनाओगे। धैर्य तब आएगा जब आप सत संगत करोगे और सत संगत तब कर पाओगे जब स्वयं परमात्मा की मेहर पा लोगे।

मेहर सेवा प्रेम से पाई जा सकती है। सेवा प्रेम तभी आएगा जब संशय मिट जाएगी और अंततः संशय तभी मिटेगा जब स्थूल और सूक्ष्म को एकरूप मान लोगे। हुजूर कँवर साहेब ने कहा कि इस मार्ग की सबसे बड़ी रुकावट मन है। मन बड़ा दुष्ट है जो जगत के भोग विलास में जीव को उलझाए रखता है। मन आपको गुरु की नाव में बैठने ही नहीं देता फिर किस विध चौरासी के सागर को पार करोगे। गुरु महाराज जी ने कहा कि एकमात्र रास्ता यही है कि सतगुरु से पुकार करते रहो क्योंकि सन्तमत ही वो जरिया है जो जीते जी आपको सतगुरु सतनाम और सत्संग की त्रिवेणी का आनन्द दे सकता है। गुरु महाराज जी ने कहा कि एक ही फरियाद करो कि है सतगुरु मेरी नैया को पार लगा कर मुझे इस जगत जंजाल से बचाओ।हुजूर ने कहा कि ये सम्भव है यदि गुरु भक्ति को अपना लोगे।

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