भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। हरियाणा की राजनीति अजीब माहौल से गुजर रही है। किसी पार्टी का एजेंडा राजनैतिक समीक्षकों की समझ में कम ही आ रहा है। सभी की अलग-अलग राय हैं।आज प्रो. संपत सिंह ने भाजपा के प्रदेश कार्यकारिणी का सदस्य बनने से इंकार कर सबको चौंका दिया। सोशल मीडिया पर तो यह तक चलने लगा कि  संपत सिंह ने पार्टी छोड़ दी है। अनुमान भी लगाए जाने लगे कि वह वापिस इनेलो में जाएंगे या कांग्रेस में।

इधर ओमप्रकाश चौटाला की जेल से रिहाई के पश्चात भी माहौल गरमाया है। अभय चौटाला को शक्ति मिली है। जजपा में सेंध लगी है। लोगों का कहना है कि चौटाला के आजाद होने से राजनीति में परिवर्तन आएगा।

अभय चौटाला अब बड़े जोर-शोर से ओमप्रकाश चौटाला के जेल जाने का जिम्मेदार भूपेंद्र सिंह हुड्डा को ठहरा रहे हैं, जबकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा सुप्रीम कोर्ट की एफआइआर की कॉपी दिखा रहे हैं और बता रहे हैं कि जब एफआइआर दर्ज हुई, तब हरियाणा में ओमप्रकाश चौटाला की सरकार थी और केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की फिर हम जिम्मेदार कैसे?

इन सबके पीछे कारण यह नजर आता है कि वर्तमान परिस्थितियों में प्रदेश की जनता का भाजपा से मोह भंग हो चुका है। अत: वह भाजपा को तो वोट देने वाली नहीं तो उन वोटों पर इनेलो और कांग्रेस की नजर है और शायद इसलिए आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चल रहा है।

भाजपा में भी वातावरण सुखद नहीं है। ऐसा दिखाई दे रहा है कि जो कार्यकर्ता मुख्यमंत्री की बढ़ाई करते नहीं थकते थे, उनका सुर अब बदलने लगा है। वह अभी मुख्यमंत्री पर तो सीधा आक्षेप नहीं लगा रहा है लेकिन उनकी कार्यशैली और उनके विश्वसनीयों पर प्रश्न चिन्ह अवश्य खड़े कर रहे हैं। प्रदेश में हो रहे भ्रष्टाचार की परतें कुछ खुलने लगी हैं। ऐसी स्थिति में यह कहना कि भाजपा सुरक्षित है, कुछ जंचता नहीं।

मुख्यमंत्री के एम-2 600 दिन वाले कार्यक्रम के पश्चात भाजपा के दिग्गजों में भी असंतोष है। सूत्रों से ज्ञात हो रहा है कि उनकी तरफ से आवाजें उठ रही हैं कि जब आप सरकार की उपलब्धियां गिना रहे हैं तो हर विभाग के मंत्री अपनी उपलब्धियां गिनाते। इससे जनता उन्हें भी पहचानती लेकिन मुख्यमंत्री सबको दरकिनार कर स्वयं ही सारा श्रेय ले रहे हैं। जो कमियां हैं, उनका श्रेय भी क्या मुख्यमंत्री लेंगे?

वहीं से छनकर बातें आईं कि उनका कहना है कि मुख्यमंत्री अपनी प्रतिभा का लोहा तो मनवा रहे हैं परंतु यह तो बताएं कि 600 दिन बाद भी मंत्रीमंडल का पूरा गठन क्यों नहीं हुआ? बोर्ड और निकायों के चेयरमैन क्यों नहीं बनाए गए? भाजपा संगठन का विस्तार इतने समय तक क्यों लटका रहा? यही सवाल हैं जो भाजपा के अंदर अब सिर उठाने लगे हैं।

मुख्यमंत्री घोषणाओं पर घोषणाएं कर रहे हैं। उनकी कार्यशैली ऐसी ही लगती है जैसे चुनाव पूर्व होती है और ऐसी ही कार्यशैली कांग्रेस, जजपा और इनेलो की दिखाई दे रही है। आप भी अपनी बाहें चढ़ा रही है। पंचायत चुनाव और निकाय चुनाव सिर पर खड़े हैं तो क्या ये तैयारियां पंचायत चुनाव या निकाय चुनाव के लिए हैं या फिर हरियाणा की राजनीति में कोई चौंकाने वाली घटना की ओर संकेत हैं।

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