-पाकिस्तान में जन्मी फिर भी पाकिस्तान क्यों नहीं गई सुरैया
-प्रधानमंत्री जवाहरलाल ने क्या कहा सुरैया को
-सुरैया ने संगीत शिक्षा किस से ली

अमित नेहरा

15 जून को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में भारत-पाकिस्तान विभाजन की योजना को स्वीकृति दे दी गई और इसी दिन एक ऐसी मशहूर अदाकारा का जन्म हुआ जो पाकिस्तान वाले भाग में जन्म लेकर भी भारत की नागरिक बनी रही। जहाँ भारत-पाक विभाजन से करोड़ों लोग विस्थापित हुए लाखों मारे गए वहीं इस तारीख को जन्मी एक गायिका-अभिनेत्री ने अपनी अदाकारी से इस उपमहाद्वीप के करोड़ों लोगों के दिल जीते और अमन-चैन का पैगाम दिया।

गौरतलब है कि 15 जून 1947 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में भारत-पाकिस्तान विभाजन की योजना के बारे में फैसला होना था। इस बैठक में योजना के पक्ष में 157 मत पड़े जबकि विपक्ष में 29 और 32 तटस्थ रहे। अब सब कुछ शीशे की तरह साफ था कि करोड़ों लोगों को धर्म के आधार पर अपना घर-बार छोड़कर इस पार या उस पार जाना ही होगा। लेकिन उससे ठीक 18 साल पहले यानी 15 जून 1929 को तत्कालीन पंजाब के गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) में जन्मी सुरैया जमाल शेख़ ने यह खबर सुनते ही ठान लिया कि उसे पाकिस्तान नहीं जाना है बल्कि भारत ही उसका असली घर है और वह मृत्युपर्यन्त भारत में ही डटी रहीं। यही सुरैया जमाल शेख़ हिंदी सिनेमा में सुरैया के नाम से मशहूर हुई। वर्ष 1943 से लेकर 1961 तक बॉलीवुड में सुरैया की खूब तूती बोलती रही। जहाँ भारत-पाक के विभाजन के बाद प्रसिद्ध अभिनेत्रियों नूरजहाँ व खुर्शीद बानो ने पाकिस्तान में जाना पसन्द किया लेकिन वहीं सुरैया भारत में ही रहीं। उनका ये फैसला बिल्कुल सही था जिसमें भारत के साथ वफादारी की झलक भी थी और प्रोफेशनल समझ भी थी। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि 1948 से 1951 के दौरान तीन साल तक सुरैया ही ऐसी महिला कलाकार थीं, जिन्हें बॉलीवुड में सर्वाधिक पारिश्रमिक दिया जाता था। बताया जाता है कि उस समय उन्हें प्रति फ़िल्म डेढ़ से दो लाख रुपये मिलते थे जबकि उनके समकालीन अभिनेता और अभिनेत्रियों को प्रति फ़िल्म 50 हजार के आसपास ही मिलते थे।

सुरैया की लोकप्रियता इतनी थी कि उनकी केवल एक झलक पाने के लिए उनके प्रशंसक मुंबई में उनके घर के सामने घंटों खड़े रहते थे और इसके चलते यातायात जाम हो जाता था।सुरैया को उपमहाद्वीप की मल्लिका-ए-तरन्नुम और मल्लिका-ए-हुस्न के नाम से प्रसिद्धि मिली।

जब सुरैया केवल एक साल की थी तो उनका परिवार पंजाब से आकर बम्बई आकर बस गया। उस समय के मशहूर खलनायक जहूर, सुरैया के चाचा लगते थे। जहूर ने सुरैया को 1937 में फ़िल्म उसने क्या सोचा में पहली बार बाल कलाकार के रूप में अभिनय करने का मौका दिलाया। इसके बाद 1941 में ताजमहल फ़िल्म में सुरैया को मुमताज़ महल के बचपन के रोल मिला। ऑल इंडिया रेडियो पर संगीतकार नौशाद ने जब पहली बार सुरैया की आवाज़ सुनी तो उन्होंने अपनी फ़िल्म शारदा के गाने सुरैया से ही गवाए। इसके बाद तो सुरैया का गायन और अभिनय में सिक्का जम गया। जल्द ही 1943 में हमारी बात नामक फ़िल्म उन्हें अभिनेत्री और गायिका होने का मौका मिला फिर तो ये सिलसिला अनमोल घड़ी, विद्या, जीत, शायर, कमल के फूल, सनम, खिलाड़ी, दो सितारे और मिर्ज़ा ग़ालिब आदि अनेकों फिल्मों से होते हुए 1961 में जाकर शमा फ़िल्म पर थमा। हिंदी फ़िल्मों में स्टारडम हासिल करने वाली सुरैया उस पीढ़ी की आख़िरी कड़ी थी जो एक्ट्रेस होने के साथ-साथ सिंगर भी थीं। इस वजह से उनका कद बाकी अन्य अभिनेत्रियों से बढ़ जाता है।

सुरैया द्वारा गाये गानों की फेहरिस्त बड़ी लम्बी है जिनमें, वो पास रहे या दूर रहे, नुक़्ताचीं है ग़मे दिल, दिल ए नादां तुझे हुआ क्या है, तू मेरा चाँद मैं तेरी चाँदनी, सोचा था क्या मैं दिल में दर्द बसा लाई, तेरे नैनों ने चोरी किया, ओ दूर जाने वाले, मुरली वाले मुरली बजा आदि कालजयी गीत हैं।

1954 में सोहराब मोदी द्वारा निर्देशित मशहूर शायर मिर्जा गालिब की जिंदगी पर आधारित सुरैया की फिल्म मिर्जा गालिब रिलीज हुई।इसमें पांच गजलों को सुरैया ने अपनी आवाज दी थी और फिल्म में मोती बेगम का किरदार निभाया था। ये फिल्म देखकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सुरैया को कहा कि तुमने गालिब की रूह को जिंदा कर दिया है।

महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सुरैया ने संगीत की कोई विधिवत शिक्षा नहीं ली थी लेकिन उनकी पहचान एक बेहतरीन अदाकारा के साथ एक बेहद अच्छी गायिका के रूप में बनी। सुरैया ने अपने अभिनय और गायकी से करोड़ों दिलों पर राज किया है। ताउम्र अविवाहित रही सुरैया की मौत 31 जनवरी 2004 को मुंबई में हो गई।

बस उनकी ये आवाज गूंजती रह गई
ओ दूर जाने वाले वादा न भूल जाना…

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक, लेखक, समीक्षक और ब्लॉगर हैं)

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