सुन रहे हैं कि यूपी का विभाजन होगा?
बनारस बनाम गोरखपुर की जंग छिड़ सकती है।
समाजवादी नेता थे प्रभु नारायण सिंह, पूरा जीवन पृथक पूर्वांचल राज्य बनाने के लिए दे दिए।
पूर्वांचल राज्य आंदोलन राजपूतों के द्वारा शुरू किया गया आंदोलन, जिनकी राजनैतिक जमीन योगी सरकार से पहले मृतप्राय थी।
1991 में जयदीप सिंह बरार और तथा चौधरी अजित सिंह ने हरित प्रदेश की मांग को हवा दी।
2011 में दूसरी कोशिश मायावती ने की, यूपी का चार राज्यों-अवध प्रदेश, बुंदेलखंड, पूर्वांचल और पश्चिम प्रदेश में बंटवारा होना चाहिए।

अशोक कुमार कौशिक 

सुन रहे हैं कि यूपी का विभाजन होगा। विभाजन कोई मांगे या न मांगे, विभाजित करना हमेशा गवरमेंट ऑफ द डे के हाथ मे होता है। सबसे पहला विभाजन बंगाल का था, जो लार्ड कर्जन ने किया। और बंगाल का ये विभाजन किसी ने न मांगा था, सरकार बहादुर का अपना गणित था। 

दूसरा विभाजन, देश का विभाजन था। यह भी याद रखिए, भारत का विभाजन, सरकार ए इंगलिशिया का अपना गणित था। आप चाहे लीग, महासभा और कांग्रेस को गरिया लें। सरकार बहादुर की मर्जी होती तो दंगे भी कंट्रोल हो जाते औऱ सारे आग उगलू नेता बन्द कर कम्बल कुटान कर दिए गए होते। 

गांधी ने कहा ही था- हमे हमारे हाल पर छोड़ जाइये। ये अंग्रेज थे, जिन्हें बड़ी चिंता थी। हमारी नही, ग्रेट गेम में बने रहने के लिए एशिया में एक फुटहोल्ड की। रेडक्लिफ ने इसका बखूबी ख्याल रखा। 

आजादी के बाद एक राज्य पुनर्गठन आयोग बना। पणिक्कर और फजल अली जैसे लोग इसके सदस्य थे। भाषाई आधार पर मद्रास और बॉम्बे स्टेट का विभाजन हुआ। गुजरात, महाराष्ट्र , तमिलनाडु गुजरात वगैरह अस्तित्व में आये। फिर पंजाब से हिमाचल और हरियाणा भी कटे। 

सरकार ने ये विभाजन, उभरते लिंग्विस्टिक सबनेशन के भाव को शांत करने के लिए किया। आप इसे राष्ट्रीय एकता को बरक़रार रखने के लिए किया विभाजन मानिये। इस तरह हमारे स्कूली दिनों में 22 राज्य थे देश मे, 9 केंद्रशासित प्रदेश।

झारखंड, तेलंगाना, उत्तराखण्ड के आंदोलन लम्बे हुए। छत्तीसगढ़ की मांग भी यदा कदा कम महत्व वाले नेताओं ने उठाई थी। कोई सुनवाई न थी, क्योकि सरकार की मर्जी न थी। 

फिर अचानक से धड़ाधड़ स्टेट बने। तेलंगाना हाल में कांग्रेस ने बनाया, भाजपा अटल दौर में 3 बना गयी थी। हाल में कश्मीर के भी दो टुकड़े हुए। कहने को छोटे राज्य से प्रशासनिक सुविधा का बहाना था, विकास की गंगा बहाना था। पर असल मे इसका कारण सिर्फ तात्कालिक सियासी फायदा उठाना या सम्भावित राजनीतिक  नुकसान को कम करना था।

यूपी में 90 के दशक में एक बड़े समाजवादी नेता थे प्रभु नारायण सिंह। पूरा जीवन पृथक पूर्वांचल राज्य बनाने के लिए दे दिए, तब के बच्चे थे जब वे उनसे पूंछे कि पृथक पूर्वांचल राज्य बनाने से क्या फायदा होगा? तो मुस्कुराकर कहते थे विधानसभा कभी भी सोनभद्र मिर्जापुर नही पहुंच पाती।

पृथक पूर्वांचल राज्य की दूसरी कोशिश बहन मायावती ने की। 2012 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले 21 नवंबर 2011 को विधानसभा में बिना चर्चा यह प्रस्ताव पारित करवा दिया था कि यूपी का चार राज्यों-अवध प्रदेश, बुंदेलखंड, पूर्वांचल और पश्चिम प्रदेश (West UP) में बंटवारा होना चाहिए।

इसके बाद मायावती सरकार ने यूपी बंटवारे का प्रस्ताव बनाकर केंद्र की यूपीए सरकार को भेज दिया गया, लेकिन तत्कालीन यूपीए सरकार के गृह सचिव आरके सिंह ने कई स्पष्टीकरण मांगते हुए राज्य सरकार को उक्त प्रस्ताव वापस भिजवा दिया था, लेकिन प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनने के बाद यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया था। 

इसके पहले साल 1991 में विधान परिषद सदस्य जयदीप सिंह बरार और तथा चौधरी अजित सिंह ने हरित प्रदेश की मांग को हवा दी। चौधरी अजित सिंह इस मामले को संसद तक ले गए, लेकिन वे आंदोलन को सड़कों तक नहीं ला सके। 

यह बात कम लोग जानते होंगे कि यूपी में पृथक पूर्वांचल राज्य आंदोलन दरअसल उन राजपूतों के द्वारा शुरू किया गया आंदोलन है जिनकी राजनैतिक जमीन योगी  सरकार से पहले मृतप्राय थी। योगी पृथक पूर्वांचल के बड़े समर्थक रहे हैं। यह कवायद आसान नही है। अगर भाजपा ने बिना सोचे समझे इसे अंजाम दिया तो बड़ा नुकसान भी हो सकता है। बनारस बनाम गोरखपुर की जंग भी छिड़ सकती है।

कांग्रेस – 1, भाजपा- 5

ये विभाजन, केंद्र में बैठी सरकार के एक तरफा ऐच्छिक निर्णय थे। अपने फायदे के लिए, ठीक उसी तरह जो 1906 में लार्ड कर्जन का मोटिव था। याने बांटो, और राज करो।

फिर भी, यूपी के विभाजन की अफवाहें की मन के लड्डू फोड़ रही हैं। भारत के दुर्भाग्य का अड्डा – पैरों की बेड़ी- छाती का बोझ ये गोबरपट्टी, याने बिहार और यूपी में कभी डेढ़ सौ सीटें थी, आज भी 120 से अधिक सीटें लेकर घूमती है। 

इसके कारण भाजपा को कोई पोलिटीकल फायदा मिलता है तो मिल जाये। तेलंगाना के बाद कांग्रेस और छतीसगढ़, उत्तराखंड, झारखंड बनाकर अटल की पांचों उँगलियाँ घी में और सिर कड़ाही के जाने का इतिहास्य तो है ही। 

लोकसभा सीटों की ताकत से यहां के बहुसंख्य जाहिलों ने बाकी के हिंदुस्तान का अपहरण कर, अपने गौठान में बांध रखा है। जिस तरह झारखंड और उत्तराखंड केंद्रीय राजनीति में इर्रिलेवेंट हैं, यूपी भी फूट फाटकर इर्रिलेवेंट हो जाये, तो टंटा मिटे। 

तो शुभस्य शीघ्रम। नारा है- “एक धक्का और दो, यूपी टूक टूक फोड़ दो”। और ये भी की “लार्ड कर्जन आगे बढ़ो। हम आपके साथ हैं”

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