गुरु की शरण में ही कट सकते हैं फंद चौरासी के : हुजूर कंवर साहब दिनोद धाम जयवीर फोगाट 30 मई – राधास्वामी मत को प्रतिस्थापित कर जीवो का कल्याण करने वाले कुल मालिक अवतार स्वामी जी महाराज ने कलयुग में भक्ति का सरल योग प्रगट किया जिसे सूरत शब्द योग कहा जाता है। यह योग आठ साल का बच्चा भी कर सकता है और साठ साल का बूढा भी। यह सत्संग वचन वर्चुअल माध्यम से परम् सन्त सतगुरु कंवर साहेब महाराज ने दिनोद गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम से फ़रमाया। हुजूर महाराज जी ने कहा कि शब्द मालिक को कहते हैं जिसके अनेको पर्यायवाची हैं और सूरत आत्मा को कहते हैं। इस भेद को वही पा सकता है जिसकी लग्न पूरी है। गुरु के सूक्ष्म रूप को वही लख सकता है जिसका विश्वास दृढ़ है। उन्होंने फ़रमाया कि सन्तो की रमज को कोई गुरमुख ही समझ सकता है। सन्त की गति गुप्त होती है जिसको कोई कोई ही जान पाता है। दसवें गुरु गोविंद सिंह जी के प्रेरक प्रसंग बताते हुए गुरु महाराज जी ने कहा कि बिना करनी किये गुरु का रूप नहीं देखा जा सकता। करनी क्या है, “प्रेम, प्रीत, प्रतीत” जगाकर गुरु का वचन मानना। मन में दया और पर उपकार भरना। जिस बात का गीत गा गा कर भक्ति का स्वांग भरते हो अगर वही बात अपने आचरण में ढाल लो तो कल्याण निश्चित है। संशय छोड़ना पड़ेगा, दृढ़ प्रीत करनी पड़ेगी और गुरु को प्रतीत मान लोगे तो गुरु आपको अपना रूप दिखा देंगे। सन्त अनहोनी की होनी कर देते हैं लेकिन संशय आपकी प्रीत और प्रतीत को हर लेता है। गुरु महाराज जी ने कहा कि हैरानी इस बात की है कि दलदल में फंसा आदमी कहता है कि आकाश के तारे तोड़ कर लाऊंगा। अरे मूर्ख पहले दलदल से तो निकल ले। तो पहले अपने आप को इस सांसारिक कीच से तो अलग कर तुझे गुरु का रुप भी दिख जाएगा। गुरु का कौन सा रूप। सगुन रूप के बिना निर्गुण को नहीं पा सकते। सूक्ष्म का रास्ता स्थूल से ही होकर जाता है। बिना सगुन सतगुरु के सहारे के आप नूरी गुरु को कैसे पा सकते हो। उन्होंने कहा कि हथेली में सरसों नही उग सकती, पहले गुरु आपसे करनी करवाएंगे और आपके अंदर गुणों का संचार करते हुए बन्धनों से मुक्त करवातें हुए आपकी अनेको परीक्षाएं ली जाएगी। परीक्षा प्रामाणिक मार्ग है, जब इन परिक्षाओ से इंसान पार पा जाता है वह गुरु के उस रूप को लख पाता है। जिस रूप के बारे में स्वामी जी महाराज ने कहा है कि देख प्यारे मैं अपना रूप दिखाऊ। अनुरागी को जब तक शब्द भेदी गुरु ना मिले तब तक उसका कारज नहीं सरता। हुजूर कंवर साहेब जी महाराज ने कहा कि जो खुद बन्धनों में बंधा पड़ा है, वो दुसरो को क्या बन्धनो से मुक्त करेगा। जो खुद रसो में डूबा पड़ा है वो किसी को क्या मोक्ष दिलाएगा। उन्होंने कहा कि आज जिसको देखो वही ज्ञान का भरा पड़ा है, जिसको देखो वही गुरवाई कर रहा है। बिना अनुभव के वो किसको कहाँ लेकर जा सकता है। आज गुरु बनने के लिए किसी डिग्री की आवश्यकता नहीं है फिर कैसे सच्चे और झूठे की पहचान हो। उन्होंने कहा कि जब ज्ञान की आंख खुलती है तभी सच्चे झूठे की पहचान होएगी। गुरुमुख की गति भी अलग ही दिखती है। गुरुमुख के अंग अंग से गुरु के प्रति भाव झलकते हैं। सन्तमत बिरला मत है क्योंकि ये जोग और भोग दोनो को साथ लेकर चलता है। हुजूर महाराज जी ने कहा कि करनी के मार्ग पर चलो। गुरु के वचनों पर डटना सीखो फिर देखो कैसे गुरु आपकी चिंता को खुद धारण करके आपको चिंता मुक्त कर देंगे। उन्होंने कोरोना महामारी के प्रति सचेत करते हुए कहा कि परमात्मा की रजा को स्वीकार करो। कोरोना के नियमो की पालना करोगे तो बाकी सब चीजों को कर पाओगे। जब आपकी हस्ती ही नहीं रहेगी तो बाकी चीजे किस काम की। कोरोना को अभी हल्का ना लें। Post navigation जिला प्रशासन ने पहली बार मनाया दादरी में हिंदी पत्रकारिता दिवस नसीहत- भाजपा और जजपा नेता गांव में जाने से करें गुरेज