उमेश जोशी 

हिसार की दो घटनाओं ने सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी का भविष्य स्पष्ट कर दिया है। बीजेपी के विरोध में जिन किसानों के सबसे अधिक स्वर सुनाई दे रहे हैं वे वही किसान हैं जो बीजेपी को सत्ता दिलाने में सबसे आगे थे। यही बीजेपी का मजबूत आधार था। आज वो आधार भी खिसक गया.

 इसी महीने की 16 तारीख को मुख्यमंत्री का विरोध करने और 24 तारीख को किसानों के मुकदमे वापस करवाने पहुंचे किसानों में सबसे अधिक संख्या जीटी बेल्ट के किसानों की थी। इन्हीं किसानों के बूते बीजेपी ने 40 सीटें हासिल कर किसी तरह अपनी इज्जत बचाई थी। आज बीजेपी की इज्जत बचाने वाला किसान धुर विरोधी हो गया है। बीजेपी के कुल 40 विधायकों में करीब 85 प्रतिशत विधायक जीटी बेल्ट से हैं। जीटी बेल्ट में किसान विरोध का अर्थ है बीजेपी का जनाधार अप्रत्याशित स्तर तक सिमट जाना। जीटी बेल्ट का समर्थन ना होता तो बीजेपी को 2019 के चुनाव में ही अपमानजनक हार का सामना करना पड़ता। जीटी बेल्ट से बाहर का मतदाता पहले ही बीजेपी से ख़फ़ा था और उसने अपनी नाराजगी का इजहार भी कर दिया था जिसकी वजह से उसके ‘अबकी बार 75 पार’ के मंसूबों पर पानी फिर गया था। 

सरकार को जिस तरह किसानों ने हिसार में घेरा और दबाव बना कर अपनी मांगें मनवाईं उससे सरकार की घबराहट साफ दिखाई दे रही है। ना जाने कौन सलाहकार हैं जिन्होंने 300 किसानों पर मामला दर्ज करने की सलाह दी थी. सरकार को तनिक भी भान नहीं था कि किसान खास तौर से जीटी बेल्ट का किसान इस कदर गुस्से का इजहार करेगा कि सरकार को घुटनों के बल बैठना पड़ेगा और सरकार की भारी किरकिरी होगी। अब तक के इतिहास में शायद यह पहला समझौता होगा जिसमें सरकार आंदोलनकारियों पर दर्ज सभी मामले वापस लेने के साथ आंदोलन के दौरान वाहनों की टूट-फूट की मरम्मत भी करवा कर देगी। इस अप्रत्याशित समझौते से यह स्पष्ट हो गया है कि  किसानों ने सरकार की तगड़ी मरम्मत की है और सरकार पूरी तरह बैकफुट पर आ गई है। 

 बीजेपी की सत्ता में साझीदार पार्टी जेजेपी का वोट बैंक सौ फीसदी किसान है। किसानों की सरकार से नाराजगी के कारण  सत्ता समीकरण में जेजेपी पहले ही हाशिये पर चली गई है। दोनों दल तब तक वज़ूद में हैं जब तक चुनाव नहीं होते। आम चुनाव से पहले मतदाता ऐलनाबाद उपचुनाव चुनाव में ही दोनों दलों का सारा भ्रम दूर कर देंगे। इससे पहले बरोदा उपचुनाव में दोनों पार्टियों के साझा उम्मीदवार को पटखनी देकर मतदाता पहले ही सरकार के भविष्य की इबारत लिख चुके हैं। 

हरियाणा के राजनीतिक घटनाक्रम में काँग्रेस को मेहनत किए बिना लाभ मिल रहा है। अभय चौटाला के विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के बावजूद इनेलो को राजनीतिक लाभ नहीं मिल रहा है। जेजेपी से छिटका मतदाता डीएनए के हिसाब से इनेलो में जाना चाहिए था लेकिन वो मतदाता काँग्रेस की ओर जा रहा है। वो जानता है कि काँग्रेस ही बीजेपी का मजबूत विकल्प है। बीजेपी से नाराज मतदाता को भी ऐसा ही ज्ञान हो गया है इसलिए वह भी काँग्रेस से जुड़ रहा है।

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