-मनुष्य अपने सदाचार,सदआचरण,सद्गुणोंं से ही उन्नति कर सकता हैै।

भारत सारथी/ कौशिक

नारनौल। वैशाख सुदी 15 विक्रमी संवत 2078 को महात्मा बुद्ध की 2505 महापरिनिर्वाण जयंती अधिवक्ता चैंबर्स में मनाई। इस अवसर पर भारतीय धर्म संसद हरियाणा प्रांत के प्रांतीय अध्यक्ष राकेश मेहता अधिवक्ता एवं प्रधान जिला गौड़ ब्राह्मण सभा ने महात्मा बुद्ध के संक्षिप्त जीवनवृत्त,शिक्षाएं उपदेश तथा बौद्ध दर्शन एवं सिद्धांतों के विषय में सोशल मीडिया के माध्यम से परिचर्चा के दौरान प्रकाश डालते हुए कहा कि महात्मा बुद्ध का जन्म राजकुमार सिद्धार्थ के रूप में लगभग वर्ष 563 ईसवी पूर्व तत्कालीन शाक्य गणराज्य के राजा शुद्धोधन एवं देवी महामाया के पुत्र के रूप में लुंबिनी नामक स्थान पर नेपाल की तरफ तराई में कपिलवस्तु के निकट हुआ था।

प्रारंभिक जीवन एक राजकुमार की तरह व्यतीत करने और देवी यशोधरा के साथ 12 वर्ष का वैवाहिक जीवन बिताने और एक पुत्र प्राप्ति के बाद भी उनका मन सांसारिक व राजसी कार्यों में नहीं लगा। एक बार नगर भ्रमण के दौरान उन्होंने तीन घटनाएं देखी जिनमें एक व्यक्ति को वृद्धावस्था में लाठी के सहारे चलते हुए देखा व एक अन्य घटना में एक व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसकी शवयात्रा देखी और तीसरी घटना में शांत मुख एक सन्यासी को आते हुए देखा। इन तीनों घटनाओं ने राजकुमार सिद्धार्थ के मन को विचलित कर दिया और उन्हें वैराग्य की तरफ प्रेरित किया। 29 वर्ष की आयु में राजकुमार सिद्धार्थ ने गृह त्याग करके लगभग 7 वर्षों तक ज्ञान व सत्य की खोज में भटकते रहे और घोर तपस्या भी कि उसके बाद उरुवेला स्थान पर पीपल के पेड़ के नीचे लगातार सात दिन व सात रात राजकुमार सिद्धार्थ बैठकर अब तक के अनुभव पर गंभीर चिंतन व मनन करते रहे और उन्हें अपने आत्मा में एक दिव्य ज्योति का आलोक महसूस हुआ और उन्हें बोध प्राप्ति हुई। जिससे उन्होंने अज्ञान से ज्ञान की दशा को प्राप्त किया इस बोध ज्ञान के कारण उन्हें महात्मा बुद्ध कहा जाने लगा।

श्री मेहता ने बताया कि महात्मा बुद्ध ने सत्य एवं ज्ञान द्वारा धर्म के मध्य मार्ग को ग्रहण किया और अपना संपूर्ण जीवन बौद्ध धर्म के प्रचार व प्रसार में लगा दिया। उनका एकमात्र लक्ष्य मनुष्य व प्राणी मात्र का कल्याण सब के हितों का संपादन करना था। लगभग 40 वर्षों तक धर्म का प्रचार करने के बाद महात्मा बुद्ध ने 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर नामक स्थान पर 483 ईसवी पूर्व महापरिनिर्वाण को प्राप्त किया और इस शारीरिक देह का त्याग दिया। 

उन्होंने बताया कि महात्मा बुद्ध ने प्रमुख रूप से शिक्षाएं दी कि सभी मनुष्य समान है कोई नीच या अछूत नहीं है,व्यक्ति की पहचान उसके जन्म या जाति से नहीं अपितु उसके कर्मों के कारण होती है, व्यर्थ के कर्मकांड निरर्थक हैं, मनुष्य अपने सदाचार,सदआचरण,सद्गुणोंं से ही उन्नति कर सकता है। जब तक मनुष्य अपना चरित्र शुद्ध नहीं करता और धन की तरसना खत्म नहीं करता और काम क्रोध मोह आदि पर विजय प्राप्त नहीं करता,तब तक उसके सभी अनुष्ठान निरर्थक हैं। मनुष्य को किसी भी प्रकार की हिंसा नहीं करनी चाहिए, यज्ञ हवन में पशु बलि अनुचित है। 

बौद्ध दर्शन व सिद्धांतों से गोष्टी में उपस्थित सभी अधिवक्ता बंधुओं को अवगत कराते हुए संस्था प्रधान ने कहा कि महात्मा बुद्ध की शिक्षाएं और सिद्धांत आज भी प्रासंगिक है और इनकी पालना करके व्यक्ति मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर जा सकता है। बौद्ध धर्म का महत्व इसी बात से पता लगता है कि यह भारत से शुरू होकर विश्व के अनेक देशों में फैला जिनमें प्रमुख रूप से जापान,बर्मा, थाईलैंड, कोरिया, चीन, तिब्बत, नेपाल, श्रीलंका आदि भी सम्मिलित है। 

इस अवसर पर सुरेंद्र कुमार सैनी,दीपेंद्र गौड़,रवि कांत शर्मा,विकास शर्मा,अखिलेश कौशिक, विजय चौधरी, प्राण खरेरा, रवि दत्त शर्मा,दिवाकर शर्मा,अग्रवाल सम्मेलन के जिला चेयरमैन पी.सी गुप्ता, प्रमोद ताखर, शिव लाल यादव, कमलकांत गौड़, अनिल बवानिया आदि उपस्थित थे

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