गुडग़ांव, 24 मई (अशोक): अभिभावकों की समस्याओं का समाधान कराने में जुटे अधिवक्ता कैलाशचंद ने प्रदेश के निजी स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए प्रदेश सरकार को पत्र भेजकर मांग की है कि निजी स्कूल कोरोना काल में भी अभिभावकों से फीस की मांग कर उनका शोषण कर रहे हैं। स्कूल संचालकों की मनमर्जी पर रोक लगाई जाए। उनका कहना है कि पहले से उसी स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चों से प्रत्येक वर्ष एनुअल चार्ज, दाखिला फीस, डवलपमेंट फंड, स्मार्ट क्लास, कंप्यूटर क्लास, साइंस लैब जैसे मदों में अच्छी खासी फीस ली जा रही है, जो कि एक अवैध वसूली का प्रारुप है।शिक्षा विभाग ने भी इसको अमान्य माना है। प्रतिवर्ष इन बच्चों से इन सभी का भुगतान कराना नियमों के विरुद्ध है।

उन्होंने उच्चाधिकारियों से मांग की है कि जैसे कि निजी स्कूलों में केवल एनसीईआरटी किताबें पढ़ाने के लिए सरकार द्वारा कानून बना दिया गया है, वैसे ही निजी स्कूलों की फीस के मामले में मनमानी पर रोक लगाने का कानून बनाया जाए। उनका कहना है कि हालांकि अभी कुछ निजी स्कूल कक्षा पहली से कक्षा 8वीं तक के बच्चों को प्राईवेट पब्लिसर्स की किताबें ही पढ़वाई जा रही हैं, जोकि सरकार के कानूनों की अवहेलना है। उनका कहना है कि लॉकडाउन के कारण अभिभावकों का रोजगार प्रभावित हुआ है, जिससे वे स्कूलों की भारी-भरकम फीस भरने में असमर्थ हैं। किंतु निजी स्कूलों द्वारा बच्चों व अभिभावकों पर फीस जमा करने का दबाव बनाया जा रहा है। बच्चों को ऑनलाईन क्लास से बाहर किया जा रहा है, जिसके कारण बच्चे मानसिक प्रताडि़त हो रहे हैं। यह सब कानून के खिलाफ है, फिर भी निजी स्कूल संचालक ऐसा कर रहे हैं। उन्होंने मांग की है कि उनकी मनमर्जी पर अंकुश लगाया जाए।

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