भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक गुरुग्राम। आज राव इंद्रजीत ने कोरोना को लेकर गुरुग्राम के अधिकारियों से वर्चुअल माध्यम से बैठक की और कई कोरोना से निपटने के उपायों पर चर्चा की तथा राहत के समाचार भी दिए लेकिन क्या गुरुग्राम के प्रशासनिक ढांचे की जड़ तक पहुंचे? यही प्रश्न है। गुरुग्राम का अधिकांश कार्य गुरुग्राम नगर निगम के आधीन आता है। चाहे सफाई हो, सड़क, सीवर, पानी हो तात्पर्य यह है कि मूलभूत आवश्यकताओं के लिए नागरिकों को निगम की ओर ही देखना पड़ता है और निगम की बात करें तो उसकी कार्यशैली से नागरिक कतई खुश नहीं हैं। स्थिति यहां तक बन रही है कि जनता का अपने पार्षदों से भी विश्वास उठ रहा है। बड़ी आन-बान-शान की दुहाई देकर राव इंद्रजीत ने भाजपा के विरूद्ध भी अपने उम्मीदवार खड़े कर निगम में अपनी मर्जी के मेयर बनाए थे। अर्थात कह सकते हैं कि निगम की अनियमितताओं की जिम्मेदारी भी राव इंद्रजीत सिंह पर आती है। आज बैठक में देखा गया कि मेयर कमिश्नर विनय प्रताप सिंह की तारीफ कर रही थी, जिसका अर्थ यह हुआ कि मेयर निगम के कार्यों से संतुष्ट हैं। उन्होंने तारीफ का कारण यह बताया कि एक दिन की बरसात का पानी कमिश्नर साहब ने बड़ी जल्दी निकलवा दिया। यह नहीं बताया कि गत वर्ष की भांति इस वर्ष भी अभी तक नालों की सफाई नहीं हुई है। वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टमों की ओर ध्यान गया ही नहीं है और यह पानी शीघ्र निकलने का कारण मात्र यह है कि बरसात धुआंधार न होकर लगातार झमाझम होती रही और फिर रूक गई। देवीलाल स्टेडियम जिसमें कितनी ही बरसात हो पानी ठहरना ही नहीं चाहिए, वह भी पानी से भर गया और पूरे हरियाणा में सुर्खियों में छा गया कि वहीं मुख्यमंत्री ने कोविड सेंटर का उद्घाटन किया था। अत: यह मुख्यमंत्री की आन-बान-शान पर भी सवाल था और मुख्यमंत्री की आन-बान-शान बचाने के लिए अधिकारी क्या कुछ कर सकते हैं, यह हमें बताने की आवश्यकता नहीं आप स्वयं समझ सकते हैं। अब आते हैं सफाई की ओर जिसका जिम्मा भी नगर निगम पर ही है और राव साहब आपका गुरुग्राम देखा-भाला है। एक बार अपनी गाड़ी में बैठकर गुरुग्राम की सड़कों का भ्रमण करके देख लो, आपको खुद ही जगह-जगह खत्ते नजर आ जाएंगे। वर्तमान कोरोना काल में जब लगभग हर घर में नहीं तो हर मौहल्ले में कोरोना संक्रमित अवश्य हैं और उनका कूड़ा भी वहीं जाता है। उसमें कोरोना का कितना संक्रमण जा सकता है, यह तो विशेषज्ञ ही बताएंगे लेकिन जाएगा तो। उसकी ओर निगम का कतई ध्यान नहीं है। सफाईकमिर्यों को अब तक सैनेटाइजर, मास्क, पीपीइ किट आदि पर्याप्त मात्रा में नहीं दी गई हैं। अर्थात कोरोना योद्धाओं को भी युद्ध करने के लिए सुरक्षा और साधन उपलब्ध होने में कमी है। इसके बाद इनकी सड़क बनाने, सीवर डालने, पानी की लाइन डालने आदि पर नजर डालें तो पाएंगे कि जहां एक बार खुदाई कर दी, वहां महीनों तक उस सड़क को ठीक नहीं किया जाता। लोग राह बदलकर जाते हैं लेकिन इन्हें उनका शिकायत करने पर भी समाधान निकालने का ध्यान नहीं आता और जहां इस प्रकार की स्थिति होगी, वहां कूड़ा और कीटाणु फैलेंगे ही न। वह कोरोना की रोकथाम में कैसे सहायक बनेंगे, यह तो निगम ही बता पाएगा। अभी हम कोरोना की ही बात करेंगे तो दूसरी लहर के आने के पश्चात निगम ने कितनी जगह सैनेटाइज किया है? आप जानने का प्रयास करेंगे तो शायद आप अपना सिर पकड़ लेंगे। कोरोना को छोड़ दें तो भी इस मौसम में मलेरिया, डेंगू के बचाव के लिए फॉगिंग की जाती है लेकिन वह कहीं अभी शायद कराई ही नहीं गई है। अब कोरोना से हटकर सामान्य कामों पर नजर डालें तो ज्ञात होगा कि निगम के किसी काम से भी क्षेत्र की जनता संतुष्ट नहीं है। चाहे बिना नक्शे इमारतों को बनने देना, उन पर सील लगाना, सील लगाने के बाद फिर कार्य आरंभ होना, अधिक विस्तार से लिखने की बजाय राव साहब आप स्वयं समझ जाएंगे और आपको इसमें भ्रष्टाचार की गंध अवश्य आ जाएगी। इसी प्रकार टैक्स की बात करें तो उसमें इतना स्टाफ होने के पश्चात भी निगम को यह ज्ञात नहीं कि उनके क्षेत्र में कितने पीजी चल रहे हैं और किस-किस क्षेत्र में कितनी व्यापारिक गतिविधियां हो रही हैं। इसके पीछे भी जनता द्वारा कारण यही बताया जाता है कि विभाग के कर्मचारियों और अधिकारियों को पूरा ज्ञान है लेकिन नजराना तो तभी मिलेगी जब वह व्यापारिक गतिविधियां इन्हें दिखाई नहीं देंगी और वह रिहायशी क्षेत्र के नाम से टैक्स देंगे। इंजीनियरिंग विंग की बात कों तो आपसे शायद छुपा नहीं होगा कि कमीशन का कैसे खेल खेला जाता है। आप इनके किसी भी कार्य का स्वतंत्र एजेंसी से निरीक्षण कराकर देख लीजिए, आपको स्वयं पता लग जाएगा कि इस प्रकार के कार्य निगम के इंजीनियर कैसे पास करते हैं? मैं फिर कहूंगा कि मैं कोई विशेष सड़क या कार्य नहीं कह रहा, कह रहा हूं किसी का भी कराकर देख लीजिए।अब यह तो सर्वविदित है कि निगम से करोड़ों रूपए की पेमेंट हो जाती है बिना किसी काम के। किसी पर कोई सजा नहीं होती। कहा जाता है कि पैसे वापिस ले लिए। कहीं कोई आदमी गलत तरीके से 500 रूपए भी निकलवा दे तो उस पर एफआइआर दर्ज हो जाती है लेकिन यहां ऐसा चलन नहीं है। और आगे की सुनिए। कई अधिकारियों को वर्क सस्पेंड कर दिया जाता है काफी समय के लिए। निगम का काम बाधित होते रहते हैं। उसके पश्चात वही अधिकारी काम पर आ जाते हैं, किसी पर कोई अपराध सिद्ध नहीं होता। प्रश्न यह उठता है कि जिस अधिकारी ने उन्हें वर्क सस्पेंड किया तो क्या बिना कारण किया था? और यदि कारण था इतना बड़ा कि उन्हें वर्क सस्पेंड किया जाए तो उनकी जांच में क्या मिला? सबकुछ सही मिला तो फिर जिसने वर्क सस्पेंड करके गुरुग्राम के विकास को बाधित किया उसे क्या सजा मिली? ऐसे ही कई मामले हैं। यदि आप मुझसे पूछेंगे तो मैं शायद कुछ केस तो घटनाओं के साथ बताने में भी सक्षम होउंगा। राव साहब जहां तक अपने अनुभव से मैंने जाना है, आप भ्रष्टाचार के कतई पक्षधर नहीं लेकिन आपके बनाए गए प्रतिनिधियों के होते हुए ये भ्रष्टाचार होते हैं, यह प्रमाणित करता है कि कहीं न कहीं एक-दूसरे की कमर खुजाने वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। अत: आपसे निवेदन है कि निगम क्षेत्र की भलाई के लिए और अपने सम्मान के लिए उपरोक्त बातों की जांच शीघ्रातिशीघ्र अवश्य करें। Post navigation नोर्थ केप विश्वविद्यालय व सेवा भारती ने मिलकर चलाया सेवा अभियान पोस्ट कोविड लक्षणों वाले मरीजों की सुविधा के लिए अनुभवी डाॅक्टरों की टीम गठित