मेवात है, जो पिछले साल यानी कोरोना की पहली लहर में अपनी बदनामी के कारण सुर्खियों में रहा

नूह जिले में तीन सौ के आसपास कोरोना के एक्टिव केस हैं। पॉजिटिविटी रेट भी सात फीसदी से नीचे जा चुका है।. पूरे जिले की मृत्यु दर 2 फीसदी से भी कम रही है।

भारत सारथी टीम
गुरुग्राम । ये वही तो मेवात है, जो पिछले साल यानी कोरोना की पहली लहर में अपनी बदनामी के कारण सुर्खियों में रहा था। तब्लीगी समाज को लेकर न जाने क्या कुछ कहा गया। ऐसा माहौल बना दिया गया कि जैसे ‘मेवात’ ने ही सारे देश में कोरोना संक्रमण फैलाया है। सच्चाई पर नफरत हावी हो गई थी। खैर जो भी रहा, इस दफा ऐसा कुछ नहीं है। मेवात, यानी 11वीं सदी के राजपूत वंश से निकले मुस्लिम इस बार बदनाम नहीं हुए। वे अपने देश की गंगा-जमुनी तहजीब से कोरोना को मात दे रहे हैं। लोग खुद आकर सूचना दे रहे हैं कि साहब फलां मकान में एक शख्स बीमार है। नतीजा, नूह जिले में तीन सौ के आसपास कोरोना के एक्टिव केस हैं। पॉजिटिविटी रेट भी सात फीसदी से नीचे जा चुका है।

दिल्ली की फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम मुफ्ती मुकर्रम अहमद ने आगे कहा, मेवात में मास्क लगाए लोग अपने घरों में नमाज पढ़ रहे हैं। सामाजिक दूरी का अच्छे से पालन हो रहा है।

मेवात का इतिहास बड़ा रौचक है। यहां रहने वाले मुसलमानों को मेव बोला जाता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि ये मेव 11वीं सदी के राजपूत वंश से निकले हैं। इनमें कुछ जाट, गुर्जर और मीणा समुदाय के लोग भी शामिल हैं। इन्हीं में बहुत से ऐसे मुस्लिम भी हैं जो खुद को कन्हैया और रामचंद्र जी के वंशज बताते हैं। मोईनुद्दीन चिश्ती के समय यहां धर्म परिवर्तन हुआ था। वेदों में यकीन रखने वाले अनेक लोगों ने जब कलमा पढ़ा, तो उन्हें मुस्लिम घोषित कर दिया गया। बाद में इन लोगों को कई तरह की परंपराओं का निर्वहन करने में दिक्कतें आईं। मुस्लिम इन्हें स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। ऐसे में इनका एक अलग समुदाय बना दिया गया। ये मेव कहलाने लगे। जानकारों के मुताबिक, रायसीना से लेकर खनवा तक करीब 12 सौ गांवों में सवा लाख मेव बसाए गए।

शाही इमाम मुफ्ती मुकर्रम अहमद का कहना है, पिछली बार जैसे ही हमें कुछ गलत बातों का पता चलता तो उसकी निंदा करते थे। चेहरे के सामने टोका-टाकी भी होती थी। जब दुष्प्रचार की मंशा से देश दुनिया में मेवात और तब्लीगी समाज को बदनाम किया गया, तो वह दुखदायी था। ठीक है जमात का ताल्लुक मेवात से रहा है, आज भी है। कोरोना की पहली लहर में ऐसा माहौल बना दिया गया कि जैसे मेवात के मुस्लिमों ने ही कोरोना फैलाया है। पुलिस ने मामले दर्ज करने में देरी नहीं की। कोई भीख मांगने वाला चद्दर फैलाकर गली में पहुंचता तो उसे यह कहकर दुत्कार दिया जाता था कि भाग जा यहां से, कोरोना फैलाएगा। ये बात आम जनमानस के सामने ही घटित हुई हैं। तब्लीगी समाज, एक धार्मिक जमात होती है।

बतौर मुकर्रम, खबरें ऐसी भी आई कि फलां जगह पर किसी तब्लीगी सदस्य ने नर्स के साथ गलत हरकत की है। सार्वजनिक स्थल पर खुले में लघु शंका करने जैसी बातें सामने आई। उसकी कठोर शब्दों में निंदा की गई। पहली लहर में मेवात से जुड़े तब्लीगी समाज को एक खलनायक की तरह पेश किया गया। इस बाबत कई बैठकें हुईं, लेकिन तब तक मीडिया की सुर्खियों में तब्लीगी समाज कथित तौर पर दोषी करार दिया जा चुका था। इस बार मेवात के लोग बहुत सचेत हैं। नीति आयोग की 2018 की रिपोर्ट में भले ही ‘मेवात’ अति पिछड़े इलाकों में शुमार रहा है, लेकिन वहां के मुस्लिमों की सोच बदल गई है। वे लोग विकास पर बात करना चाहते हैं। कुछ जगह पर मदरसों के समर्थक मिल जाएंगे, लेकिन बहुत से लोग अपने बच्चों को सरकारी या प्राइवेट स्कूलों में तालीम दिलाना चाहते हैं।

बघेड़ा गांव के पंच और 12 वर्षों से स्वयं सहायता समूहों के साथ काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता माजिद खान कहते हैं, पिछली बार भी अधिकांश लोगों ने प्रशासन का साथ दिया था। इस बार तकरीबन हर जगह पर लोग मास्क पहन रहे हैं। सामाजिक दूरी का ध्यान रख रहे हैं। ईद पर भी ज्यादातर लोग मस्जिद में नहीं गए। घरों में ही जुम्मे की नमाज पढ़ी जाती है। गांव में सभी लोगों से कहा गया है कि वे कोरोना के लक्षण होते ही तुरंत अस्पताल पहुंच जाएं। मेव समुदाय के लोग खुद प्रशासन को जानकारी दे रहे हैं। अब घर-घर जाकर लोगों की जांच की जा रही है। कहीं से कोई गलत व्यवहार की खबर नहीं आई है। लोग वैक्सीन लगवा रहे हैं। कई लोगों को यह कह कर गुमराह किया गया है कि ये टीका तो नुकसानदायक है। जब कोई ज्यादा जरूरी काम होता है तो ही लोग घरों से बाहर निकलते हैं। मेवात अब विकास की राह पर है, लोगों में जागरूकता आ रही है। पिछली लहर के दौरान मेवात के विभिन्न इलाकों से करीब दो लाख लोगों के सेंपल लिए गए थे, जिनमें से नब्बे फीसदी लोगों की रिपोर्ट नेगेटिव आई थी।

हालांकि मरोदा के सरपंच गोपी और घासेरा के सरपंच अशरफ के मुताबिक, कई जगहों पर स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है। लोगों में टेस्ट को लेकर झिझक है, लेकिन उनकी काउंसलिंग हो रही है। गांवों में डोर टू डोर जांच अभियान से कोरोना को मात देने में मदद मिल रही है।

कोरोना की पहली लहर के बाद मेवात जिले को तीन बार कोरोना फ्री किया गया था। दूसरी लहर में यहां पर केस सामने आ रहे हैं। नूंह के सिविल सर्जन डॉ सुरेंद्र यादव के अनुसार, हमारे पास ऑक्सीजन व रेमडेसिविर समेत तमाम जीवन रक्षक दवाएं मौजूद हैं। नल्हड़ मेडिकल कॉलेज में बेड की संख्या बढ़ाई जा रही है। जिला प्रशासन की 85 टीमें सर्वे का काम देख रही हैं। कई जगह पर आइसोलेशन सेंटर खोले जाएंगे। लोगों को बताया जा रहा है कि जरूरत पड़ने पर ही रेमडेसिविर का इस्तेमाल करें। जांच कार्य में कोई छूट न जाए, इसके लिए पंच सरपंचों की मदद ली जा रही है।

घर-घर जाकर कोरोना संक्रमित मरीजों की पहचान कर रहे हैं। उपायुक्त धीरेन्द्र के अनुसार, जिले में लगातार कोरोना टेस्टिंग का कार्य हो रहा है। रोजाना करीब एक हजार लोगों के टेस्ट हो जाते हैं। जिले का रिकवरी रेट 92.94 फीसदी तक पहुंच चुका है। पॉजिटिविटी रेट की बात करें तो वह 3.58 फीसदी है। पूरे जिले की मृत्यु दर 2 फीसदी से भी कम रही है। अच्छी बात ये है कि मेवात के लोग खुद जांच के आगे आ रहे हैं। अगर प्रशासन को जरा सा भी संकेत मिलता है कि फलां जगह पर किसी व्यक्ति को बुखार है या कोरोना के दूसरे लक्षण हैं तो वहां बिना किसी देरी के चिकित्सा सहायता पहुंचाई जाती है।

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