सरकार के खिलाफ साजिश

हर तरफ कोरोना महामारी ने हाहाकार मचा रखा है। सरकारें अपनी अपनी क्षमता-सक्षमता-योग्यता के सहारे इस बीमारी से पार पाने के लिए कई तरह से, कई तरह के प्रयत्न कर रही हैं। दिन रात लगी हुई हैं। उसके बावजूद ये मीडिया वाले हैं कि सरकार की छवि खराब करने पर तुले हुए हैं। पहले तो विदेशी मीडिया ही सरकार को बदनाम करने के अपवित्र काम को कर रहा था। कह रहा था कि जब सरकार को कोरोना से जंग में लड़ना चाहिए था तब हमारे शासक चुनावी रैलियों और कुंभ के आयोजनों में व्यस्त थे। इसी का नतीजा है कि हर ओर लाशों के ढेर लगे हैं। श्मशान घाट में अंतिम संस्कार के लिए सिफारिशें लग रही हैं।

विदेशी मीडिया के देखा देखी अब भारतीय मीडिया के कुछ लोगों के पर निकल आए हैं। ये लोग भी सरकार पर लांछन लगाने में सक्रिय हो गए। लापता सरकार, नाकाम सरकार,लाचार सरकार,देश का बजा दिया बाजा-अंधेरनगरी चौपट राजा, शीर्षक से पत्र-पत्रकिओं में कवर स्टोरी छापी जा रही हैं। इन पत्र पत्रिकाओं को ऐसा नहीं करना चाहिए। सरकार की छवि को खराब नहीं करना चाहिए। ये तो कतई ही नहीं बताना चाहिए कि जब देश में कोरोना की दूसरी लहर सिर उठाने के लिए तैयारी कर रही थी और जब सरकार को इसे सख्ती से कुचलने की तैयारी करनी चाहिए थी, तब हमारे प्रधान सेवक ये ऐलान कर रहे थे कि हमने इस महामारी पर विजय प्राप्त कर ली है।

ये भी राष्ट्रवासियों को नहीं बताना चाहिए कि जहां अमेरिका-कनाडा और अन्य बहोत से देशों में नागरिकों का फ्री में कोरोना वैक्सीनेशन हो रहा है वहां हमारे विश्वगुरू राष्ट्र भारत में सरकार इस वैक्सीन लगवाने के लिए रेट तय करने में लगी हुई है। एक ही दवा के अलग अलग दाम तय किए जा रहे हैं। इस से पहले देश में बीसीजी,डीपीटी पोलियो आदि बीमारियों के निदान के लिए जितने भी बड़े और सफल टीकाकरण हुए हैं, वो सभी सरकारों ने फ्र्री में करवाए। एकदम नि:शुल्क लगावाए। क्या आप अपनी सरकार की इस मुस्तैदी की तारीफ नहीं करना चाहेंगे कि अगर किसी कोरोना पीड़ित ने सरकार से मदद ना पाकर, विपक्ष के किसी नेता से दवा-इंजैक्शन-आक्सीजैन-वैंटीलेटर की गुहार कर दी और अगर विपक्ष वालों ने उसे वो सब मुहैया करवा दिया तो हमारी पुलिस उन विपक्षी नेताओं से पूछताछ के लिए पहुंच रही है कि उन्होंने आखिर ऐसा कैसे कर दिया? अब अगर सरकार किसी की मदद करने में सक्षम नहीं है तो न सही,लेकिन अपनी इमेज पर आंच लाने वालों को तो सबक सिखा ही रही है। अब तो सरकार को ये भी कर देना चाहिए कि जो लोग किसी भी तरह से सरकार के अलावा किसी से अन्य से मदद मांग रहे हैं, इसके लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं,उन सबके खिलाफ अपराधिक मामले दर्ज कर देने चाहिए।

ये हर्ष का विषय है कि ऐसा विराट काम अब कुछ राज्यों में राष्ट्रवादियों की सरकारों ने तो करना शुरू भी कर ही दिया है, जहां अगर कोई उनकी साख पर बटटा लगाने का प्रयास करता है और सिस्टम की बदहाली की पोल खोलता है तो उसके खिलाफ झट से केस दर्ज कर लिया जाता है। ये ठीक भी है कि इन राष्ट्रविरोधियों को यंू हमारे गौरवमयी राष्ट्र की छवि और साख पर प्रहार करने की इजाजत कदापि नहीं मिलनी चाहिए। इन लोगों ने मजाक बना रखा है। जब देखो हमारी 56 इंची सरकार के खिलाफ टिवटरबाजी-फेसबुकबाजी करते रहते हैं। इनको सबक मिलना ही चाहिए। अभी कुछ लोग हमारी सरकार और सिस्टम को बहोत हल्के में लेने की गुस्ताखी कर रहे हैं। सोच रहे हैं कि सरकार का उनकी ओर ध्यान नहीं। इसलिए दुष्प्रचार करने की जुर्रत कर रहे हैं। ऐसा सोचना उनकी गलतफहमी है। सरकार सब पर बरोबर नजर रखे हुए है। कौन क्या कर रहा है, इसका सारा हिसाब किताब लेने की तैयारी चल रही है। कुछ का तो हिसाब किताब हो गया है, और जो कुछ असामाजिक तत्व रह गए हैं उनको भी समय आने पर करारा सबक सिखाया जाएगा।

हम और हमारी सरकार

जब संसार दूसरे विश्वयुद्ध की विभीषिका में जल रहा था तो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विस्टैन चर्चिल थे। चर्चिल ने अपने देशवासियों से अपील करते हुए कहा कि जंग की इस बेला में अंडों पर सबसे पहला हक हमारे सैनिकों का है। इसका असर ये हुआ कि अगले ही दिन इंग्लैंड की दुकानों पर भारी भीड़ लग गई। अंडे खरीदने के लिए नहीं,बल्कि जिन लोगों ने अंडे पहले से खरीदे हुए थे वो उनको दुकानदारों को वापस लौटा रहे थे। ये तो इंग्लैंड के लोगों और सरकार का चरित्र था और एक हम और हमारी सरकार हैं, जिन्होंने इस कोरोना महामारी की आपदा को कमाई करने में अवसर के तौर पर तबदील कर दिया है। जिसको जो मौका लगा है वो वहीं लगा हुआ है। जुटा हुआ है।

हम सब ने ये देखा और भुगता कि पांच राज्यों के चुनाव निपटते ही पैट्रोल के दाम सात दिन में चार दफा बढा दिए गए। कोरोना की जिन दवाओं-इंजैक्शन-मैडीकल उपकरणों को टैक्स फ्री होना चाहिए था,उन पर भारी भरकम टैक्स लगा हुआ है। कुछ पर मौटा आयात शुल्क लगा हुआ है। इस पर देश में हाहाकार मचा तो कुछ टैक्स कम किया गया। कुछ नेता ये दावा कर रहे हैं कि उन्होंने इस बारे में केंद्रीय वित्त मंत्री को इस बारे में चिटठी लिखी तभी सरकार ने टैक्स हटाया। क्या ये समय चिट्ठीबाजी और प्रचारबाजी का है? क्या केंद्र सरकार को बहोत पहले से ही उन दवाओं और उपकरणों पर टैक्स समाप्त नहीं कर देना चाहिए था? आखिर क्यों इस महामारी को भी सरकार एक कमाई के अवसर में देख रही है? ऐसी निर्ममता और निर्दयता से नागरिकों के साथ पेश क्यंू आ रही है?

ये तो सरकार की कार्यप्रणाली का छोटा सा उदाहरण मात्र है,लेकिन हम देश के नागरिक क्या कर रहे हैं? क्या हम हम अपना फर्ज निभा रहे हैं? एम्बुलैंस वाले हैं कि कोरोना पीड़ित को चंद किलोमीटर लाने ले जाने के लिए लाखों रूपए का किराया वसूल रहे हैं। हस्पतालों में बुरा हाल है। वो भी मरीजों का बुरी तरह से शोषण हो रहा है। उनसे भारी भरकम बिल वसूले जा रहे हैं। जिन डाक्टरों को हम भगवान का दर्जा देते हैं वो हैवान-शैतान बने हुए हैं। वो लालच में अंधे हो चुके हैं। हर तरफ लोग कमाई,कमाई और सिर्फ कमाई कर रहे हैं। कुछ ने कमाई की गरज से ऐसी कंपनियों का सृजन कर लिया है कि जिनके नाम पर वो विदेश से मैडीकल उपकरण ला कर यहां कई गुना रेट पर बेच रहे हैं। ये भी ठीक है कि सारे के सारे लोग शायद ऐसा ना कर रहे हों,लेकिन जो लोगों की खाल उधेड़ कर-खून चूस कर पैसा कमाने में लगे हैं,क्या उनको उनके किए की-इस पाप की कभी सजा मिलेगी? इस माहौल पर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कुछ पंक्तियां कही जा सकती है:

प्रभु रथ रोको ! क्या प्रलय की तैयारी है
बिना शस्त्र का युद्ध है जो,महाभारत से भी भारी है
कितने परिचित कितने अपने,आखिर यंू चले गए
जिन हाथों में धन-संबल, सब काल से छले गए
हे राघव-माधव-मृत्युजंय पिघलो,ये विनती हमारी है
ये बिना शस्त्र का युद्ध है जो महाभारत से भारी है

यारी निभाते लोग

सुप्रसिद्ध कार्टूनिस्ट पदमभूषण स्व.आर.के.लक्ष्मण ने दशकों पहले एक कार्टून बनाया था। एक नेता जी बिस्तर पर लेटे हैं। उनके चारों तरफ पटटियां-पलस्त बंधे हैं। वो दर्द से कराह रहे हैं। इन नेता जी की बीवी कह रही हैं कि मेरे नेता पति जी कुछ जरूरत से ज्यादा ही आशावादी हैं। मैं इनको पहले से ही चेता रही थी कि अपने निर्वाचन क्षेत्र में मत जाओ। अब ऐसा ही कुछ शाहबाद के जजपा विधायक रामकरण काला के साथ होते होते रह गया। वो अपनी विधानसभा क्षेत्र में यारी नामक गांव में चले गए। उनको न जाने क्यों ऐसा लगा कि यारी गांव में लगी एक फैक्ट्री से प्रदूषण से परेशान हो रहे ग्रामीणों को वो ही इस समस्या से निजात दिलवा सकते हैं। वो इसी सिलसिले में वहां गए थे। जैसे ही उनके आने की सूचना गांव वालों तक पहुंची उन्होंने वहां उनकी अपने तरीके से सेवा कर दी।

वो तो शाहबाद के एमडीएम और शूगर मिल के एमडी वीरेंद्र ने होशियारी और चतुराई दिखा कर, लोगों को पुचकार इस मामले को किसी तरह से शांत करवाया,वर्ना ये मामला और ज्यादा विकट हो सकता था। रामकरण को कम से कम अपने विधानसभा में साथी विधायक देवेंद्र सिंह बबली से ही वहां जाने से पहले सलाह कर लेनी चाहिए थी। बबली ने कहा था कि लोग हमारी ऐसे बाट देखते हैं, जैसे मानूसन में पपीहा और मोर बारिश की। हालात ये है कि हम अपने क्षेत्र में लोहे के परिधान-हैलमेट पहने बिना नहीं घुस सकते।

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