-कमलेश भारतीय हिंदी पत्रकारिता का विस्तार तो सन् 1990 के बाद बहुत हुआ और नौकरियां भी खूब मिलीं लेकिन पत्रकारिता के मूल्य /आदर्श नहीं रहे । यह कहना है वरिष्ठ पत्रकार, नवभारत टाइम्स, हिंदुस्तान अमर उजाला, जी न्यूज, आजतक , कादम्बिनी सहित अनेक संस्थानों में काम कर चुके डाॅ गोविंद सिंह का । वे आजकल आईआईएमसी यानी भारतीय जनसंचार संस्थान में प्रोफेसर एवं डीन हैं । डाॅ गोविंद सिंह ने बताया कि वे हिंदी अनुवादक भी रहे और अमेरिकी दूतावास की पत्रिका स्पैन के संपादक भी रहे। मूल रूप से पिथौरागढ़, उत्तराखंड के सुदूरवर्ती गांव सौगांव निवासी गोविंद सिंह की शिक्षा अपने गांव से ही शुरू हुई. हाईस्कूल की पढाई घर से बाहर डेरा करके, खुद रोटी पानी भी बनाते पढ़े। आपके पिता जी दूसरे महायुद्ध में बर्मा के उत्तरी हिस्से में बंदी बना लिये गये थे और चौदह साल बाद घर आ सके । बाद में ही सारे बच्चे हुए. इनकी बड़ी बहन व भाई चंडीगढ़ आ गये तो इन्हें भी वहीं बुला लिया और इस तरह बी ए हुई गवर्नमेंट काॅलेज सेक्टर, ग्यारह से और एम ए हिंदी और एम फिल पंजाब विश्वविद्यालय से और पीएचडी की डाॅ लक्ष्मी नारायण शर्मा के निर्देशन में । इसी दौरान वीर प्रताप के सांस्कृतिक संवाददाता भी रहे। यहीं पत्रकारिता शुरू हुई । पहला लेख दैनिक ट्रिब्यून में छपा. तब तक काॅलेज की पत्रिका, हिमोत्कर्ष में भी रचनाएं आ चुकी थीं. -पहली नौकरी ?-देहरादून स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के एक संस्थान में हिंदी अनुवादक की। वहां आठ माह ही रहा । फिर पहुंचा मुम्बई में टाइम्स ऑफ इंडिया. ट्रेनी जर्नलिस्ट के रूप में और फिर नवभारत टाइम्स में जाॅब लग गयी। -इसके बाद कहां ?-मुम्बई मुझे पसंद नहीं आया और दिल्ली मेरी ट्रांसफर नहीं हुई तब कोलकाता पहुंचा हिंदी अधिकारी बन कर। बाद में दिल्ली के इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड में आ गया। -फिर पत्रकारिता में कैसे लौटे?-मन तो पत्रकारिता में ही था। नवभारत टाइम्स में सहायक संपादक बना और नौ साल रहा। चार साल संपादकीय पेज प्रभारी और पांच साल रविवार्ता का संपादन किया । -इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कैसे?-जी न्यूज में रिसर्च हैड बल्कि यह काम शुरू ही मुझसे हुआ। डेढ़ साल बाद आज तक में चला गया। फिर वापस प्रिंट में आउटलुक से। -क्यों ?-प्रिंट ही पसंद रहा। इलेक्ट्रानिक रास नहीं आया। फिर आउटलुक में। फिर अमेरिकन दूतावास की पत्रिका स्पैन का संपादन और फिर अमर उजाला में सहयोगी सम्पादक और कार्यकारी सम्पादक रहा. बाद में हिंदुस्तान व कादंबिनी का कार्यकारी संपादक भी रहा । आजकल पत्रकारिता पढ़ा रहा हूं । -फिर वापस प्राध्यापन में भी आए?-चूंकि दिल्ली विश्वविद्यालय में गेस्ट फैकल्टी रहा, इसलिए हल्द्वानी में उत्तराखंड ओपन यूनिवर्सिटी में सीधे प्रोफेसरी मिल गयी। बाद में डेपुटेशन पर जम्मू सेंट्रल यूनिवर्सिटी में भी चार साल रहा। इतने महानगर देखे और नौकरियां कीं, सबसे अच्छा शहर कौन सा?-कोलकाता। सांस्कृतिक शहर। कोई भागदौड़ नहीं। सब ऑफिस के बाद भी आराम से टहल कर घर जाते हैं, चाय की चुस्कियां के बीच कला-संस्कृति पर बातचीत करते हुए। पत्रकारिता में स्पैन के संपादन में दो साल बहुत बढ़िया रहे और अमेरिकन पत्रकारिता सीखने को मिली। वह हमारी पत्रकारिता से अलग है। -चंडीगढ़ याद आता है ?-क्यों नहीं? मेरे भाई व बहन अब भी वहीं रहते हैं और सारी पढ़ाई लिखाई वहीं हुई। आना जाना भी रहता है। मुझे बनाने में उसी का योगदान सबसे ज्यादा रहा. -कितनी किताबें अब तक ?– अनुवादित और संपादित किताबें हैं । अभी अपनी दो किताबें तैयार कर रहा हूं। -इतनी जल्दी-जल्दी नौकरी क्यों बदल लेते थे?-जहां मन नहीं लगता था, वहीं आगे देखने लगता था। इस तरह नौकरियां बदलता चला गया। ईश्वर कृपा से वे मिलती भी गयीं. -अब की पत्रकारिता के बारे में क्या कहेंगे? -सन् 1990 के बाद त्रकारिता की धार ख़त्म हो गयी । देश के परिवर्तन में इस पत्रकारिता का बहुत योगदान था। अब व्यावसायिक माहौल है।-आपके प्रिय पत्रकार कौन? -धर्मवीर भारती जिन्होंने धर्मयुग को ऊंचाई दी। एक महान साहित्यिक पत्रकार जिन्होंने हिंदी पत्रकारिता को अनुशासन सिखाया। उन्हें टाइम लिए बिना मिल नहीं सकते थे। दूसरे राजेंद्र माथुर जो गजब के जानकार संपादक थे। पढ़ने लिखने वाले ऋषि तुल्य संपादक। -अब की पत्रकारिता?-पूर्णतया व्यावसायिक। अति आर्थिकता ने सारा स्वरूप ही बदल दिया। तरह तरह के लोग पेशे में आ गये- नए बिजनेसमेन, राजनेता। इससे हिंदी का विस्तार तो हुआ, नौकरियां भी मिलीं लेकिन पत्रकारिता के आदर्श व मूल्य कहीं खो गये । -लक्ष्य ?-अब पत्रकारिता ही पढ़ाऊंगा। अपनी पुस्तकें लिखूंगा । -कोई पुरस्कार?-हिन्दी पत्रकारिता में योगदान के लिए राष्ट्रपति के हाथों गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार और शिमला का बलराज साहनी और कुल्लू का भुट्टीको पुरस्कार. उत्तराखंड गौरव पुरस्कार समेत अनेक सम्मान/पुरस्कार। हमारी शुभकामनाएं डाॅ गोविंद सिंह को । आप इस नम्बर पर प्रतिक्रिया दे सकते हैं : 9917379039 Post navigation किसान 12 मई को चुनेंगे अस्थियां, गंदे नाले में विसर्जित करेंगे चाहे देश का नाम रख दो अब क्या फायदा ?