-अमित नेहरा -लेखक वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, समीक्षक और ब्लॉगर हैं

भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर का कहर जारी है। मार्च 2021 से पहले वाली लहर इतनी जानलेवा नहीं थी जितनी अब है। हाल-फिलहाल में मैंने कोरोना पर कुछ खास नहीं लिखा है जबकि अप्रैल से जून 2020 तक मैंने कोरोना पर ‘कोविड-19@2020’, ‘अजब कोविड-19 के गजब किस्से’ और ‘COVID-19 DON’T COME AGAIN’ नामक तीन पुस्तकें लिखकर विश्वप्रसिद्ध ई कॉमर्स कंपनी ‘अमेजन’ पर पाठकों के लिए उपलब्ध करवा दी थीं (अब भी आप इन्हें ईबुक के रूप में प्राप्त कर सकते हैं)। जहाँ इनमें ‘अजब कोविड-19 के गजब किस्से’ में कोविड से जुड़े मनोरंजक किस्से हैं वहीं ‘कोविड-19@2020’ और ‘COVID-19 DON’T COME AGAIN’ में इस महामारी के रूप में वैज्ञानिक रूप से विस्तृत जानकारी दी गई है।

मेरे अनेक परिजन, रिश्तेदार, दोस्त और परिचित बार-बार आग्रह कर रहे हैं कि मैं इस बार भी इस महामारी की दूसरी जानलेवा लहर पर भी कुछ लिखूँ।

कुछ कह रहे हैं कि लिखो ये कोई बीमारी-विमारी नहीं है, ये जनता को डराने का ढकोसला है। कुछ बड़े आत्मविश्वास से कह रहे हैं कि ये डब्लूएचओ का षड़यंत्र है, कुछ कह रहे हैं कि ये चीन की शरारत है, कुछ कह रहे हैं कि अन्य बीमारियों से मसलन कैंसर, हार्ट डिजीज, बीपी, शुगर, मलेरिया, साँस के रोगों से, जल जनित और मौसमी बीमारियों से लोग अपेक्षाकृत अधिक मर रहे हैं अतः कोरोना को ज्यादा सीरियस लेने की जरूरत नहीं है। कुछ कह रहे हैं कि ये बिल गेट्स सरीखे लोगों द्वारा अपनी वैक्सीन बेचने का जरिया है। कुछ कह रहे हैं कि यह पूंजीवादी ताकतों का एक ऐसा अंतर्राष्ट्रीय षड़यंत्र है जिसे समझ पाना आसान नहीं है। कोई कह रहा है कि यह सब तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन को तीतर-बितर करने के लिए हो रहा है। कोई कह रहा है कि ये रोग देशी इलाज से आसानी से ठीक हो जाता है। बहुत से लोग अपने-अपने हिसाब से दवाइयां बता रहे हैं। बहुत सी बातें मुझे बताई जा रही हैं, इतनी कि समझ में नहीं आता कि इतने ज्ञानी लोग आखिर अब तक थे कहाँ ?

मुद्दे की बात

देखिये मेरा मानना यह है कि फिलहाल हमें इस बीमारी के पीछे तथाकथित षड़यंत्र की तह में जाने की कोई जरूरत नहीं है। तथ्यात्मक बात यह है कि वैज्ञानिकों ने कोरोना की इस दूसरी जानलेवा लहर में म्यूटेंट N440K का पता लगाया है। शोधकर्ताओं का मानना है कि N440K संक्रमण फैला रहे अन्य सभी स्ट्रेन के मुकाबले 10 से 1,000 गुना तक अधिक संक्रामक है, जिसकी वजह से देश के बहुत से हिस्सों में दूसरी लहर अपने चरम पर पहुंच गई है और बहुत ज्यादा लोग इससे प्रभावित हो रहे हैं।

अतः ये समझ लें कि आप अपने परिवार के लिए सम्पूर्ण दुनिया हैं, जब आप ही नहीं रहेंगे तो क्या डब्लूएचओ, क्या चीन, क्या अमेरिका, क्या बिल गेट्स क्या पूंजीवादी ताकतें ? समझ रहे हैं न…

बुद्धिमानी इसी में है कि कोरोना वायरस से जितना सम्भव हो बचें। इसके लिए कोविड-19 के प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन कीजिये। भीड़ में जाने से बचिये, साफ-सफाई का ध्यान रखें और किसी के साथ निकट सम्पर्क में आने पर फेस मास्क का प्रयोग करें। हाथों को नियमित अंतराल पर साबुन से धोते रहें। मुँह, नाक और आँखों को बेवजह छूने से बचें। बस इतनी सी सावधानी से आप काफी हद तक संक्रमण से बच जाएंगे। अगर संक्रमित हो गए हैं तो भी घबराने की आवश्यकता नहीं है भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी निर्देशों और सलाहों पर अमल करें। हर जिले में कोविड हेल्पलाइन नंबर है उसपर सम्पर्क करके अपना इलाज शुरू करें। संक्रमण का पता चलते ही आइसोलेशन में चले जाएं। ज्यादातर लोग 14 दिन के अंदर स्वस्थ हो जाते हैं। सकारात्मक बने रहना बहुत जरूरी है।

वेक्सिनेशन

ये भी बहुत बड़ा सिरदर्द है कि वैक्सीन लगवाएं या नहीं ? औरों की क्या कहूँ, मैं खुद काफी दिन इसको लेकर असमंजस में रहा कि मैं वैक्सीन लगवाऊं या नहीं ? बहुतों ने कहा वैक्सीन लगवाओगे तो बीमारी को खुद ही न्यौता दे दोगे। कुछ ने कहा लगवा लेनी चाहिए। इस बारे में मैंने उन सीनियर डॉक्टरों से बातचीत की जिनकी काबिलियत पर मैं सबसे ज्यादा भरोसा करता हूँ।
उनसे हुई बातचीत से दो बातें सामने आईं

पहली, वैक्सीन की दोनों डोज लगवाने से यह सुनिश्चित नहीं होता कि आपको संक्रमण नहीं होगा।

दूसरी, अगर आपने वैक्सीन लगवा ली है और आपको संक्रमण हो भी जाता है तो आपके जिंदा रहने के चांसेज बढ़ जाते हैं, क्योंकि आपका शरीर इस वायरस को पहचान कर उससे लड़ सकता है। यानी संक्रमण तो फैलेगा मगर इतना नहीं कि आप गम्भीर रूप से बीमार हो जाएं या मरने की नौबत आ जाए। हालांकि कुछ केस सामने आये हैं जिनमें वैक्सीन की दोनों डोज लगवा चुके व्यक्तियों की मौत हो गई। इसकी वजह यह है वैक्सीन कारगर तो है मगर शत-प्रतिशत कारगर नहीं है।

वैक्सीन या दवाई के दुष्प्रभाव तो होते हैं लेकिन वेक्सिनेशन में कोई बुराई नहीं है (ये मेरे विचार हैं, आखिरी फैसला आपको ही खूब सोच विचार करके करना है)। इतना कह सकता हूँ कि बीमारियों की वैक्सीन के निर्माण में विज्ञान खूब तरक्की कर चुका है। चेचक, पोलियो, बीसीजी, रेबीज, पीला बुखार, डिप्थीरिया, टेटनस, हूपिंग कफ, खसरा, जन्मजात रूबेला और कण्ठमाला समेत बहुत सी बीमारियों पर वेक्सिनेशन से विजय पाई गई है। याद रहे इन बीमारियों के लिए होने वाले शुरुआती वेक्सिनेशन का विरोध भी हुआ था और लोगों में इसके प्रति दहशत भी थी।

अंत में
अनावश्यक खाद्य पदार्थों, अत्यधिक दवाइयों, आक्सीजन आदि का संग्रह न करें। देश में संसाधनों की कमी नहीं है लेकिन इससे वितरण प्रणाली कुछ समय के लिए अस्त-व्यस्त हो जाती है। इसके साथ-साथ परिजनों, रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ बातचीत जारी रखिये। कोरोना का एक बड़ा साइड इफेक्ट यह हुआ है कि इससे मनोरोग भी बेतहाशा बढ़ गए हैं। अतः मानसिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा जाना बेहद जरूरी हैं।

और हाँ, बीमारी के बारे में षड़यंत्र बताने वालों को सहानुभूतिपूर्वक और ध्यान से सुनते रहें, इस नजरिये से कि वे गलत हैं या सही मेहनत तो वे बेचारे कर ही रहे हैं। रही बात किसान आंदोलन को इस बहाने दिल्ली बोर्डरों से उठाने की तो हकीकत यह है कि वहाँ जमे किसानों के तेवर किसी भी आपदा या बल प्रयोग से ढीले होने वाले नहीं दिख रहे।

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