-अंहकार व दंभ लोक सेवक के कार्य व्यवहार के लिए घातक, इसे रोकने के लिए दंड आवश्यकः मनीष वशिष्ठ

भारत सारथी/ कौशिक

नारनौलः पश्चिम त्रिपुरा जिले में जिलाधीश शैलेश यादव आईएएस के विरूद्ध राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, नई दिल्ली में शिकायत की गई है। शिकायत जिला बार एसोसिएशन के पूर्व प्रधान मनीष वशिष्ठ एडवोकेट द्वारा की गई है।

मनीष वशिष्ठ एडवोकेट ने बताया कि सोशल मीड़िया के विभिन्न प्लेटफार्मस् पर एक वीड़ियो क्लिप देखी, जिसमें पश्चिम त्रिपुरा जिले का जिलाधीश शैलेश यादव बहुत से सशस्त्र पुलिस कर्मियों के साथ, एक विवाह समारोह में घुस कर, बालकों, महिलाओं, एवं पुरुषों के साथ बदसलूकी, मारपीट, गालीगलौच करता हुआ दिखाई दे रहे हैं। उक्त जिलाधिकारी, महिलाओं एवं बालकों के समक्ष भाषा की मर्यादा को तार तार कर दिया है। उस वीड़ियो में देखा जा सकता है कि उक्त शैलेश कुमार यादव, ने एक कागज को बिना पढ़े ही, फाड़ कर, उसे देने वाली महिला के मुँह पर ही फंेक दिया। उसके बाद विवाह संस्कार करवाने के लिए उपस्थित ब्राह्मण को थप्पड़ व लात से मारते हैं। इतना ही नहीं, उक्त शैलेश कुमार यादव ने उस समारोह में उपस्थित दूल्हे के साथ भी मारपीट की तथा दूल्हन के साथ भी अभद्र बर्ताव किया। साथ ही वे पुलिस कर्मचारियों को आदेश देता हैं कि उपस्थित व्यक्तियों को डण्डे से मारो। जिस भी व्यक्ति ने उन्हें अपना स्पष्टीकरण देना चाहा, उन्होंने उसे ही सरकारी कार्य में बाधा पहुँचाने के आरोप में कस्टड़ी में लेने का आदेश दे दिया।

श्री वशिष्ठ ने बताया कि उक्त शैलेश कुमार यादव ने अपने इस अवैध व गैरजिम्मेदाराना कृत्य से अपने पद का दुरूपयोग तो किया ही है, साथ ही उन्होंने समस्त कानूनों को ताक पर रख कर मानव अधिकारों का उल्लंघन भी किया है। उनका कहना है कि यदि उक्त विवाह समारोह में किसी प्रकार से कानून की अवज्ञा हो रही थी, तो एक जिलाधीश का यह दायित्व था कि वे वहाँ उपस्थित लोगों को चेतावनी देते तथा उनके विरूद्ध जो भी कानून सम्मत कार्रवाई थी, वह अमल में लाते। उनको वहाँ उपस्थित व्यक्तियों को स्वयं दण्डित करने का, पुलिस से पिटवाने का, गाली गलौच करने का, गलत धाराओं का आरोप लगा कर हिरासत में लेने का, पंडित, दुल्हा, दुल्हन या उनके परिजनों को पीट कर उनको बेईज्जत करने का कोई अधिकार नहीं था।

मनीष वशिष्ठ का कहना है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समस्त नागरिकों को समानता का अधिकार दिया गया है। उक्त अनुच्छेद के अनुसार सभी नागरिक, चाहे उनमें कोई जिलाधीश के पद पर ही क्यों ना हो, अन्य नागरिकों की भांति ही कानून का पालन करेगा। इसके अतिरिक्त संविधान के अनुच्छेद 21 के अर्न्तगत समस्त नागरिकों को दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार भी दिया गया है। किसी को भी अकारण या किसी झूठे आरोप के तहत, उसकी दैहिक स्वंतंत्रता को खंडित करके, अभिरक्षा में नहीं लिया जा सकता है। किन्तु उक्त शैलेश कुमार यादव ने ना केवल संविधान के अनुच्छेद 14 का अतिक्रमण किया है, अपितु उन्होंने अपना पक्ष रखने वाले व्यक्तियों को, बिना किसी कारण 353 आईपीसी के झूठे आरोप के तहत हिरासत में लेकर, संविधान द्वारा प्रदत, उनके दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार से भी वंचित किया है। इस प्रकार उन्होंने स्वयं भी धारा 166, 220, 323, 294 आईपीसी का अपराध किया है। उक्त शैलेश कुमार का आचरणएक लोकसेवक का नहीं था, अपितु वह एक सांमत की तरह व्यवहार कर रहे थे।

मनीष वशिष्ठ का कहना है कि इस प्रकार का अंहकार व दंभ, एक लोकसेवक के कार्य एवं व्यवहार के लिए बहुत ही घातक है। यदि ऐसी परिपाटी को नहीं रोका गया तो देश की प्रशासनिक व्यवस्था नष्ट भ्रष्ट हो जाएगी तथा देश भर के प्रशासनिक अधिकारी, इसी उदंडता के साथ कार्य करने लगेंगे।

अपनी शिकायत में श्री वशिष्ठ ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग से अनुरोध किया है कि मुख्य सचिव त्रिपुरा सरकार तथा गृह सचिव भारत सरकार उक्त शैलेश कुमार आईएएस के विरूद्ध आवश्यक विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाई संस्थित करें साथ ही उसके विरूद्ध सक्षम न्यायालय में अभियोजन चलाएं एवं मैडिकल बोर्ड बना कर उसका मानसिक परीक्षण करवाने का निर्देश दें। साथ ही पुलिस महानिदेशक को निर्देश दें की शैलेश कुमार के विरूद्ध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 166, 220, 323, 294 के तहतएफआईआर दर्ज करवाएं तथा पीड़ितों का उचित मुआवजा दिलवाने का भी अनुरोध किया है।

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