फसल उत्पादन की बढ़ोतरी के साथ पर्यावरण संरक्षण बहुत जरूरी
एचएयू वैज्ञानिकों एवं प्रदेश के कृषि अधिकारियों की वर्कशॉप में नई समग्र सिफारिशों के लिए हुआ मंथन

हिसार : 29 अपै्रल – वर्तमान समय में फसल उत्पादन बढ़ाने के चक्कर में प्रतिदिन रसायनों के अंधाधूंध प्रयोग व जल दोहन से प्राकृतिक संसाधन नष्ट हो रहे हैं। साथ ही भूमि की उर्वरा शक्ति भी घट रही है। इसलिए वैज्ञानिकों को अनुसंधान कार्य करते समय प्राकृतिक संसाधनों के उचित संरक्षण का विशेष ध्यान रखना होगा। उक्त विचार चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बी.आर. काम्बोज ने व्यक्त किए। वे विश्वविद्यालय में ऑनलाइन माध्यम से आयोजित विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों, विस्तार विशेषज्ञों एवं हरियाणा सरकार के कृषि अधिकारियों की वर्कशॉप(खरीफ)को संबोधित कर रहे थे।
कार्यक्रम में हरियाणा सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग हरियाणा सरकार की अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. सुनीता मिश्रा विशिष्ट अतिथि मौजूद रही। कार्यशाला में कृषि महानिदेशक डॉ. हरदीप सिंह आईएएस भी मौजूद रहे। मुख्यातिथि ने कहा कि वैज्ञानिकों का दायित्व बनता है कि वे किसानों को भूमि की उर्वरा शक्ति बनाए रखने और मिट्टी में सूक्ष्म तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए जागरूक करें। उन्होंने किसानों से फसल विविधिकरण को बढ़ावा देने की अपील की ताकि उनकी आमदनी में इजाफा हो सके। परम्परागत खेती से लागत अधिक व आमदनी कम होती है। इसलिए किसान फसल चक्र को अपनाएं। कुलपति ने भविष्य में इस तरह की कार्यशाला में प्रदेश के प्रगतिशील किसानों को भी शामिल करने का आह्वान किया ताकि प्रदेश के अन्य किसानों को भी इनकी सफलता से पे्ररणा मिल सके। उन्होंने जल संरक्षण के लिए विभिन्न फसलों की बेड प्लांटिंग प्रणाली अपनाने पर जोर दिया। इस अवसर पर कुलपति ने विश्वविद्यालय द्वारा विकसित विभिन्न किस्मों का खाद्य सुरक्षा में निरंतर योगदान नामक पुस्तक का भी विमोचन किया।
फसल अवशेष प्रबंधन सबसे बड़ी चुनौती : अतिरिक्त मुख्य सचिव सुनीता मिश्रा
कार्यशाला को संबोधित करते हुए कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव सुनीता मिश्रा ने कहा कि मौजूदा समय में प्रदेश सरकार के सामने जल संरक्षण और फसल अवशेष प्रबंधन की समस्या ज्वलनशील मुद्दा है। राज्य सरकार ने जल संरक्षण और फसल विविधिकरण के लिए मेरा पानी मेरी विरासत नामक योजना लागू की है जो बहुत ही कारगर साबित हो रही है। इसके अलावा फसल अवशेष प्रबंधन के लिए भी सरकार की ओर से कदम उठाए जा रहे हैं। कृषि महानिदेशक डॉ. हरदीप सिंह, आईएएस ने कहा कि किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए प्रदेश सरकार प्रयासरत है। ऐसे में कृषि अधिकारी किसानों को परम्परागत खेती की बजाय आधुनिक खेती के तौर तरीकों व नवीनतम तकनीकों की जानकारी देते हुए उन्हें जागरूक करें। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा रबी व खरीफ फसलों में कीटनाशकों व उनके प्रयोग के लिए की गई सिफारिशें बहुत ही कारगर हैं। इसलिए किसानों को इन्हें अवश्य अपनाना चाहिए। उन्होंने प्रदेश सरकार द्वारा किसानों के लिए चलाई जा रही विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं की भी जानकारी दी।
नई सिफारिशों के लिए हुआ मंथन : विस्तार शिक्षा निदेशक
विश्वविद्यालय के विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. रामनिवास ने वर्कशॉप की विस्तृत जानकारी देते हुए निदेशालय द्वारा आयोजित की जाने वाली विभिन्न गतिविधियों के बारे में अवगत कराया। उन्होंने बताया कि इस वर्कशॉप का आयोजन विश्वविद्यालय द्वारा विभिन्न फसलों के लिए की गई सिफारिशों पर मंथन करते हुए कुछ नई सिफारिशों को लागू करवाने को लेकर किया गया है। अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. सहरावत ने विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई विभिन्न फसलों की नई किस्मों की जानकारी देते हुए मौजूदा समय में चल रहे अनुसंधान कार्यों के बारे में विस्तारपूर्वक बताया। प्रदेश के कृषि विभाग की विस्तार गतिविधियों को लेकर कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अतिरिक्त कृषि निदेशक(विस्तार)डॉ.एस.के. गहलावत ने विस्तारपूर्वक जानकारी दी। इस वर्कशॉप के दौरान प्रदेश के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के सभी जिलों के कृषि उपनिदेशक, सभी कृषि विज्ञान केंद्रों के समन्वयक व विश्वविद्यालय के विभिन्न कॉलेजों के अधिष्ठाता, निदेशक एवं विभागाध्यक्षों ने फसलों की समग्र सिफारिशों के लिए अपने विचार रखे। कार्यक्रम में कुलसचिव डॉ.राजवीर सिंह, स्नातकोत्तर अधिष्ठाता डॉ. अतुल ढींगड़ा, कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ.ए.के. छाबड़ा, सह-निदेशक डॉ. सुनील ढांडा के अलावा निदेशक, विभागाध्यक्ष और सभी जिलों के कृषि उपनिदेशक, कृषि अधिकारी ऑनलाइन माध्यम से शामिल हुए।