भेदभावपूर्ण, लोकतंत्र के लिए घातक और चमचारिगी पूर्ण पारित है ये आदेश: डॉ मिश्रा
वैसे तो हाईकोर्ट बड़ी-बड़ी बातें  कहता है कि फांसी पर लटका देंगे, पर जब अपने परिवार वालों की जान की बात आती है, तब दिल्ली सरकार से कमरे बुक कराता है।”
दिल्ली में  ‘सरकार’ मतलब अब एलजी।
यह विधेयक उन लोगों के हाथों में शक्तियां देगा जिन्हें चुनाव में हराया गया है।

अशोक कुमार कौशिक 

इस आलेख में हम तीन मुद्दों को लेकर के चर्चा कर रहे हैं। पहला मुद्दा जजों व उनके परिवार के लोगों के लिए होटल की व्यवस्था, दूसरा मुद्दा जजों के बाद अधिकारियों वह बाबूओ के लिए वीआईपी व्यवस्था तथा तीसरा मुख्य मामला है दिल्ली में सरकार द्वारा लागू किया गया नया एनसीटी ऑफ दिल्ली एक्ट यानी अब दिल्ली में सरकार का मतलब एलजी। 

कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच अरविंद केजरीवाल सरकार ने जजों के बाद अब सरकारी बाबुओं के लिए वीआईपी इंतजाम किया है। दिल्ली सरकार ने मंगलवार को दिल्ली के चार बड़े होटलों को अस्पतालों से लिंक करने का आदेश दिया है ताकि सरकारी अधिकारियों और उनके परिवार के लोगों का इलाज किया जा सके। याद रहे कि दिल्ली उच्च न्यायालय पहले ही जजों के लिए वीआईपी इंतजाम करने को लेकर दिल्ली सरकार को जमकर फटकार लगा चुकी है। 

कोरोना संकट के बीच दिल्ली सरकार के आदेश पर विवाद खड़ा हो गया है, जिसमें उसने राजधानी के पांच सितारा होटल अशोक में हाई कोर्ट के जजों , स्टाफ और सरकारी बाबुओं के साथ उनके परिजन के लिए 100 बुक करने की बात कही थी।

फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हॉस्पिटल से जुड़े हुए डॉ.कौशल कांत मिश्रा केजरीवाल सरकार के आदेश पर भड़के हैं। उन्होंने इसे भेदभावपूर्ण बताते हुए लोकतंत्र के लिए घातक करार दिया है। कहा कि यह (आदेश पारित) तो चमचारिगी करने के लिए दिल्ली सरकार ने दिया है। अगर होटल के 100 बेड रिजर्व करा दिए जाएंगे, तो आसपास रहने वाले गरीब लोग कहां इलाज कराएंगे? दरअसल, ये बड़े और कड़े सवाल उन्होंने हिंदी समाचार चैनल ABP News पर मंगलवार सुबह दिल्ली में कोरोना संकट से जुड़ी एक चर्चा के दौरान उठाए।

दिल्ली सरकार ने विवेक विहार में होटल जिंजर, शाहदरा में होटल पार्क प्लाजा, कड़कड़डूमा के पास होटल लीला एंबियंस, हरि नगर में होटल गोल्डन ट्यूलिप एसेंशियल को सरकारी अधिकारियों और उनके परिवार वालों के लिए रिजर्व किया है। मंगलवार को जारी किए गए आदेश के अनुसार इन होटलों को राजीव गांधी सुपरस्पेशलिटी अस्पताल और दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल से जोड़ा जाएगा ताकि दिल्ली सरकार, स्वायत्त संस्थाओं और निगम के अधिकारियों और उनके परिवार वालों का इलाज किया जा सके।

दिल्ली सरकार के द्वारा जारी किए गए आदेश में कहा गया है कि राजीव गांधी अस्पताल और दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल के निदेशकों को निर्देशित किया जाता है कि वे रिजर्व किए गए होटलों में कोविड पॉजिटिव अधिकारियों और उनके परिवार वालों के लिए स्वास्थ्य व्यवस्था मुहैया करवाएं। साथ ही इस आदेश में यह भी कहा गया है कि रिजर्व किए गए होटलों में दिल्ली सरकार के कोविड पॉजिटिव अधिकारी और उनके परिवार के सदस्य क्वारंटाइन भी कर सकेंगे।

 डॉ.मिश्रा के मुताबिक, “मुझे पता चला है कि दिल्ली सरकार ने एक आदेश निकाला है, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट के जजों के लिए अशोक होटल के 100 कमरे बुक किए गए हैं। मैं इस आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता के रूप में दिल्ली हाईकोर्ट का रुख कर रहा हूं। चाहता हूं कि कोर्ट को पता चले कि यह एक भेदभावपूर्ण आदेश है। वैसे, तो हाईकोर्ट बड़ी-बड़ी बातें करता है। कहता है कि फांसी पर लटका देंगे। पर जब अपने परिवार वालों की जान की बात आती है, तब दिल्ली सरकार से कमरे बुक कराता है।”

आदेश की कॉपी लाइव डिबेट के दौरान दिखाते हुए उन्होंने आगे कहा, “अगर ऐसे आदेश सबके लिए निकलने लगेंगे, तो गरीबों का इलाज कहां होगा? यह बहुत बड़ी खबर है।” जारी किए गए इस आदेश के हवाले से उन्होंने बताया, पहली लाइन में लिखा है कि 100 कमरे बुक किए गए हैं। लोकतंत्र में यह कहां तक न्यायोचित है? गरीब, हेल्थ केयर वर्कर और हेल्थ केयर वर्कर मर रहे हैं और इस तरह कमरों का रिजर्वेशन हाईकोर्ट के लिए शर्मनाक बात है। मुझे लगता है कि इस आदेश पर फौरन रोक लगनी चाहिए।

वह बोले- कोई भी अथॉरिटी सरकार को आवेदन/ऐप्लिकेशन दे सकती है। हाईकोर्ट ने सरकार को अगर आवेदन दिया तो सरकार ऐसा पक्षपात करने आदेश कैसे दे सकती है? इसमें अधिक गलती दिल्ली सरकार की है। अगर हाईकोर्ट ने स्टे नहीं लगाया तो उसकी भी गलती होगी और यह मामला सुप्रीम कोर्ट जाएगा। इस तरह के आदेश से “सिविल अनरेस्ट” (समाज में माहौल खराब होगा) पैदा हो सकता है। 100 बेड बुक कराएंगे यहां और इसी के आसपास गरीब लोग होटल में एडमिट नहीं हो सकते। यह किस तरह का आदेश है, जिसे तुरंत रद्द करना चाहिए। ऐसे आदेश से लोगों का मनोबल गिरता है। सरकार इसे वापस ले या हाईकोर्ट स्टे लगाए।

कमरों का खर्च कौन उठाएगा? यह पूछे जाने पर डॉ.मिश्रा ने बताया, “इसमें इस बाबत अधिक जानकारी नहीं है। पर यह आदेश गलत है। दिल्ली सरकार यह केवल चमचागिरी के लिए कर रही है।” आगे ऐंकर विकास भदौरिया ने भी कहा, “डॉक्टरों, हेल्थवर्करों की ऑक्सीजन, बेड के अभाव में मौत तक हो जा रही है। ऐसे में यह आदेश किसी एक खास तबके को (हाईकोर्ट के जजों को) खुश करने के लिए दे देना कहां तक जायज है?” बता दें कि डॉ.मिश्रा दक्षिणी दिल्ली में जाने-माने ऑर्थोपेडिक सर्जन हैं और उन्होंने गणेश शंकर विद्यार्थी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज से अपना ग्रैजुएशन किया था।

चर्चा में शामिल रैडिक्स हेल्थकेयर के सीएमडी डॉ.रवि मलिक ने इस पर कहा- इस बीमारी के दौर में हेल्थ फॉर ऑल (स्वास्थ्य सेवाएं सबके लिए) का फॉर्मूला होना चाहिए। अगर किसी एक तबके कराई गई है, तो सबको करानी चाहिए। बहुत सारे संस्थान है। यहां तक कि हमारे डॉक्टर और नर्स हैं। मैं खुद कोविड अस्पताल चलाता हूं। 15 फीसदी मेरे डॉक्टर और नर्स बेचारे बीमार हैं। जो तबका गरीब है, उसका ध्यान जरूर रखिए। वह बड़े-बड़े अस्पतालों के बिल नहीं झेल पाएगा। सरकार के पास इस चीज के लिए प्रावधान होना चाहिए। साथ ही हेल्थ केयर वर्कर्स का भी ख्याल रखा जाना चाहिए। हम कोरोना झेलते हुए ड्यूटी करते हैं और घर जाकर परिजन को भी संक्रमण दे देते हैं। आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं कि स्थितियां क्या हैं।बता दें कि पिछले दिनों दिल्ली सरकार ने एक आदेश जारी कर अशोका होटल के कमरों को कोविड केयर सेंटर्स में बदलने के लिए कहा था। अशोका होटल में इस सुविधा के लिए प्राइमस अस्पताल को भी लगाया गया था। हालांकि मंगलवार को दिल्ली सरकार के इस आदेश पर ऑक्सीजन संकट की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने जमकर फटकार लगाई थी।

हाई कोर्ट ने फटकार लगते हुए कहा था कि हमने कभी ऐसा कोई आग्रह नहीं किया था। साथ ही कोर्ट ने दिल्ली सरकार को कहा था कि आप सोचिए कि इस महामारी के दौरान ऐसा हम कैसे कह सकते हैं। यहां लोगों को अस्पताल में बेड और ऑक्सीजन नहीं मिल रहे हैं और हम आपसे लग्जरी होटल में बेड मांगेंगे? ऐसा आदेश कैसे जारी किया जा सकता है। सुनवाई के दौरान ही हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को इस आदेश को तुरंत वापस लेने को कहा था। जिसके बाद सरकार ने साफ़ कर दिया कि इस आदेश को तुरंत वापस ले लिया जाएगा। यह आदेश वापिस हुआ या नहीं पर केजरीवाल सरकार ने जजों के बाद अब सरकारी अधिकारियों व बाबुओं के लिए वीआईपी इंतजाम जरूर कर दिया है।
 अब बात करते हैं तीसरे मामले को लेकर। एनसीटी ऑफ दिल्ली एक्ट लागू, जानिए क्या हैं इसके मायने

इस अधिनियम पर केजरीवाल सरकार को आपत्तियां हैं। केजरीवाल सरकार का कहना है कि इससे चुनी हुई सरकार का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। दिल्ली से जुड़े सभी अंतिम निर्णय उप-राज्यपाल लेंगे। दिल्ली में लागू हुआ राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) अधिनियम अब दिल्ली में किसी भी कार्यकारी फैसले पर उप राज्यपाल की राय लेनी होगी । इस अधिनियम को दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने ‘अलोकतांत्रिक’ बताया है

दिल्ली में राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) अधिनियम, 2021 को बुधवार से  लागू कर दिया गया। यह अधिनियम चुनी हुई राज्य सरकार से ज्यादा उप राज्यपाल को प्रधानता दी गई है। गृह मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना के मुताबिक इस अधिनियम के प्रावधान 27 अप्रैल से प्रभावी हो गए हैं। इस अधिनियम में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि दिल्ली में ‘सरकार’ का मतलब ‘लेफ्टिनेंट गवर्नर’। अधिनियम में कहा गया है कि राज्य सरकार को अब कोई भी कार्यकारी फैसला लेने से पहले उप राज्यपाल की राय लेनी होगी। 
संसद से पहले ही पारित हो चुका है यह संशोधन विधेयक।

यह संशोधन विधेयक लोकसभा में गत 22 मार्च को और राज्यसभा में 24 मार्च को पारित हुआ। जाहिर है कि अधिनियम के लागू हो जाने के बाद से उप राज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच टकराव बढ़ना तय है। केजरीवाल सरकार पहले ही इस अधिनियम को ‘अलोकतांत्रिक’ बता चुकी है। दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का इस अधिनियम के बारे में कहना है कि संविधान की व्याख्या के खिलाफ जाते हुए यह बिल पुलिस, भूमि और पब्लिक ऑर्डर के अतिरिक्त एलजी को अन्य शक्तियां भी देगा। यह बिल जनता द्वारा चुनी दिल्ली सरकार की शक्तियां कम कर एलजी को निरंकुश शक्तियां प्रदान करेगा।

अधिनियम पर हैं केजरीवाल सरकार को आपत्तियांइस अधिनियम पर केजरीवाल सरकार को आपत्तियां हैं। केजरीवाल सरकार का कहना है कि इससे चुनी हुई सरकार का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। दिल्ली से जुड़े सभी अंतिम निर्णय उप-राज्यपाल लेंगे जो कि जनादेश का अपमान है। इस अधिनियम के लागू हो जाने के बाद उप राज्यपाल की शक्तियां काफी बढ़ गई हैं। केजरीवाल सरकार को अपने फैसलों के लिए अब बार-बार उप राज्यपाल की मंजूरी का इंतजार करना होगा। 

सरकार चलाने में अब होगा यह बदलाव-  किसी मसले पर केजरीवाल की कैबिनेट यदि कोई फैसला करती है तो उसे अपने फैसले पर उप राज्यपाल की राय लेनी होगी।  उप-राज्यपाल उन मामलों को तय करेंगे जिनमें उनकी राय मांगी जानी चाहिए। विधानसभा के बनाए किसी भी कानून में ‘सरकार’ का मतलब एलजी का उल्लेख करना होगा।  विधानसभा या उसकी कोई समिति प्रशासनिक फैसलों की जांच नहीं कर सकती और उल्लंघन में बने सभी नियम रद्द हो जाएंगे।

केजरीवाल बोले-यह दिल्ली के लोगों का अपमानइस संशोधन विधेयक के लोकसभा में पारित होने के बाद केजरीवाल ने कहा, ‘जीएनसीटीडी संशोधन विधेयक का लोकसभा में पारित होना दिल्ली के लोगों का अपमान है। यह विधेयक लोगों द्वारा चुने गए व्यक्ति के हाथों से शक्तियां छीनने वाला है। यह विधेयक उन लोगों के हाथों में शक्तियां देगा जिन्हें चुनाव में हराया गया है। भाजपा ने लोगों के साथ धोखा किया है।’

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