कोरोना न उम्र देखकर हुआ न मौत ने उम्र पूछी.
भले ही देर से फिर भी सही फैसला किया.
एक मई तक कैसे कटेगा एक-एक दिन

फतह सिंह उजाला

कोरोना कॉविड 19 के भारत में इंपोर्ट होने के साथ  और समय बीतते-बीतते इसने प्रचंड रूप धारण कर लिया । बीते करीब सवा वर्ष में देश के साथ देश, प्रदेश वासियों ने कोरोना कोविड-19 को लेकर जो कुछ भी झेला और खोया ? वह किसी से भी छिपा नहीं रह सका है ।

वर्ष 2021 में कोरोना कॉविड 19 पर कंट्रोल करने और इसके फैलने की चेन को तोड़ने के लिए भारत में दो-दो वैक्सीन भी बनाई गई । सवाल यह है कि उम्र देखकर करोना किसी को नहीं हुआ और न हीं मौत के लिए किसी की उम्र पूछी । तो फिर यह फैसला कितना उचित था कि 45 वर्ष से ऊपर के लोगों को वैक्सीनेशन की डोज दी जाए। एक वर्ष से छोटे बच्चे से लेकर 100 साल के बुजुर्ग तक को कोरोना ने अपनी चपेट में ले लिया । वही किसी की जान निगलने से पहले कोरोना ने किसी की उम्र का भी लिहाज नहीं किया। इन हालात में 45 वर्ष से अधिक आयु के ही लोगों को कोरोना की वैक्सीन लगाना बहस का एक नया मुद्दा बन गया कि जन्म से लेकर 45 वर्ष तक के लोगों को कोरोना कॉविड 19 से बचाने के लिए वैक्सिंग नहीं देने का मतलब कोरोना कॉविड 19 की चेन को मजबूत बनाए रखना ही था ?

बहरहाल अब एक मई 2021 से 18 वर्ष से ऊपर के सभी लोगों को वैक्सीनेशन की डोज दिया जाना बहुत देर से लिया गया फैसला है । इस दौरान एक मई तक एक-एक दिन काटना किसी पहाड़ को तोड़ने से कम नहीं होगा । जिज्ञासु सवाल एक नहीं अभी भी अनेक हैं कि देश में जब से कोविड-19 से बचाव के लिए वैक्सीनेशन ड्राइव आरंभ किया गया तो उम्र का पैमाना किस तथ्य और खोज के आधार पर तय किया गया । जबकि बिना उम्र देखें कोरोना ने हर उम्र के व्यक्ति को अपना शिकार बनाया है । कोविड-19 पीड़ितों और कोरोना को फैलने से रोकने के लिए तथा कोरोना काल के दौरान फील्ड में जाकर कवरेज करने वाले 45 वर्ष से कम आयु के मीडिया कर्मियों, पुलिसकर्मियों, स्वास्थ्य कर्मियों के परिजनों का ऐसा कौन सा कसूर था कि वैक्सीनेशन की डोज देने में नजरअंदाज कर दिया गया।

बीते करीब सवा वर्ष के दौरान बार-बार एक ही बात दोहराई गई की कोविड-19 की चेन को तोड़ना है। इसके लिए जनता, नाईट कर्फ्यू ,लॉकडाउन, धारा 144 सहित और भी उपाय अमल में लाए गए। यहां तक की कोरोना कोविड-19 को रोकने के लिए खाकी के हाथों खूब लाठियां भी चलाई गई , क्या लाठियां चलने से या फिर डंडे बरसने से कोविड-19 की चेन टूट पाई , शायद नहीं। सत्तासीन पार्टी की सरकार के साथा-साथ अन्य पार्टियों की सरकारों को भी आम जनमानस की खूब खरी-खोटी सुनने को मजबूर होना पड़ा। वर्ष 2021 में मार्च और इसके बाद अप्रैल माह के आरंभ होते ही कोविड-19 ने अपना भयंकर विकराल और प्रचंड रूप के साक्षात्कार करवा दिए। इसी बीच में कृषि कानूनों को लेकर किसान आंदोलन सहित विभिन्न राज्यों में चुनाव प्रचार के दौरान जूटने और जुटाई जाने वाली भीड़ के साथ ही कोविड-19 को रोकने के लिए फिर से दिन प्रतिदिन नए-नए फरमान को लेकर भी आम जनमानस में अंदर ही अंदर रोष का गुब्बार भरता दिखाई दिया । इसी बीच एक और बहुत बड़ी बहस सहित चर्चा का मुद्दा यह भी बना कि आखिर कोविड-19 में ऐसी क्या कमजोरी है कि इसकी वजह से घर पर अथवा आवास पर या किसी झोपड़ी में या फिर किसी आलीशान हवेली में एक भी मौत नहीं हुई ? कोविड-19 की जितनी भी मौत के आंकड़े अभी तक सामने रखे गए हैं वह आंकड़े कोविड-19 के कारण अस्पतालों में होने वाली मौत के ही आंकड़े हैं ।

बहरहाल कहने और लिखने को लोगों की चर्चा के मुताबिक बहुत कुछ है , लेकिन केंद्र सरकार के द्वारा नवरात्र और रमजान में जो फैसला किया गया वह हताश होती आ रही जिंदगी मैं जरूर एक नई जान डालने का काम करेगा । दूसरे शब्दों में देर से लिया गया पीएम मोदी और केंद्र सरकार का सही फैसला ही कहां जाना उचित है । फिर भी हल्का सा एक सवाल जरूर है जो इस फैसले के बाद भी जवाब की तलाश में भटकता ही रहेगा ? कि 18 वर्ष से कम आयु के तमाम युवा वर्ग को क्यों नजर अंदाज किया जा रहा है । जब कोविड-19 की चेन को तोड़ना ही है तो फिर यह 18 वर्ष से कम आयु के युवा वर्ग को कोविड-19 से बचाने के लिए वैक्सीनेशन की डोज देने में क्यों नजर अंदाज किया जा रहा है ? बहुत चर्चित और प्रचलित कहावत है की सावधानी हटी और दुर्घटना घटी । तो ऐसे में कोविड-19 की चेन को जब तोड़ना ही है तो फिर यह 18 वर्ष से कम आयु वर्ग की शर्त को भी तोड़ने का फैसला लेने पर गंभीरता से विचार करना ही होगा और इसके लिए 10 दिन का समय बहुत अधिक और पर्याप्त भी है।

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