* आरोप  है कि पार्टी ने आधार नंबर से वोटरों के फोन नंबर निकाले हैं।
*खबर मीडिया व सोशल मीडिया से गायब।
* नागरिक की निजता का हनन ।
* जब तक पूंजीगुट नहीं चाहेंगे ये सरकार नहीं हट सकती। 
* राजतंत्र या तानाशाहो के खिलाफ क्रांतियां इसलिए होती है क्योकि वहां विपक्ष नही होता । 

अशोक कुमार कौशिक 

मद्रास हाईकोर्ट में एक याचिका के माध्यम से आरोप लगाया गया है कि भारतीय जनता पार्टी ने पुडुचेरी के चुनाव प्रचार के लिए आधार डिटेल्स का गलत इस्तेमाल किया है।  27 मार्च की यह खबर मुख्यधारा के मीडिया से ही नहीं, सोशल मीडिया से भी गायब रही। आरोप यह भी है कि पार्टी ने आधार नंबर से वोटरों के फोन नंबर निकाले हैं। जाहिर है, यह बात चुनाव आयोग के संज्ञान में लाई गई होगी, लेकिन उसने इसे गंभीरता से नहीं लिया। 

लेकिन अदालत ने मामले को ‘बहुत गंभीर’ माना है और चुनाव आयोग से इस मामले में जांच करने और 30 मार्च तक फुल रिपोर्ट फाइल करने को कहा है। चुनाव आयोग ने तो यहां तक कह दिया कि ‘क्या चुनाव टालें?’ चुनाव आयोग का मामले को गंभीरता से नहीं लेने से उन आरोपों में दम नजर आने लगता है, जिनमें कहा जाता है कि चुनाव आयोग एक विशेष राजनीतिक पार्टी के लिए नरम रुख रखता है। अगर आधार से वोटरों की सूचनाएं निकाल कर उनका इस्तेमाल चुनाव प्रचार के लिए किया गया है, तो बहुत ही गंभीर मामला है। 

यह भी जरूरी नहीं है कि सिर्फ पुडुचेरी में ही ऐसा किया गया होगा? संभव है प्रत्येक उन राज्यों के आधार की सूचनाओं का भी चुनाव प्रचार के लिए इस्तेमाल किया गया हो सकता है, जहां चुनाव हो चुके हों और जहां वर्तमान में चुनाव चल रहे हैं। अगर ऐसा किया गया है या किया जा रहा है तो यह और ज्यादा गंभीर मामला बन जाता है।

 नागरिक का आधार कार्ड गोपनीय दस्तावेज होता है। अगर उसमें दर्ज सूचनाओं का कोई राजनीतिक दल या कंपनी अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करती है, तो यह नागरिक की निजता का हनन है। ऐसा करना अपराध की श्रेणी में आना चाहिए और है भी। 

उम्मीद की जानी चाहिए कि चुनाव आयोग आरोप की गंभीरता से जांच करेगा और अदालत में सही रिपोर्ट देगा। अगर ऐसा नहीं किया गया तो आने वाले समय में चुनाव महज एक खेल बन कर रह जाएगा। आधार की गोपीनयता भंग हो रही है, तो इसके रहने का कोई औचित्य नहीं दिखता है।

 लोग दुनियाभर के गणित लगाते है की ये सरकार रहेगी , चली जायेगी , ये चुनाव जीतेगी , वो शायद नहीं जीतेगी आदि आदि। लेकिन इन सभी अंदाजों से बहुत दूर बॉटम लाइन निष्कर्ष ये है की – जब तक पूंजीगुट नहीं चाहेंगे ये सरकार नहीं हट सकती। 

2009 में यूपीए की जीत इसलिये करवाई गयी थी ताकि वो ये सब काम करे जो की आज वर्तमान सरकार कर रही है। लेकिन 2009 में दोबारा जीतने के बावजूद भी मनमोहन सरकार पूँजी की लूट को वो गति नहीं दे पायी जिसकी पूंजीपतियों को दरकार थी।

इस वीभत्स लूट का अंदाजा आप इस बात से लगाइये की 2018 में आयी एक खबर के मुताबिक़ तमाम पूंजीपति घराने तत्कालीन  ( 2014-2018)  (वर्तमान) सरकार द्वारा किये जा रहे निजीकरण की स्पीड से नाखुश थे। उनके हिसाब से निजीकरण की स्पीड और तेज होनी चाहिए थी।

इसीलिए वर्तमान सरकार को मीडिया पर पूरा नियंत्रण और पैसे की बारिश ( विधायक सांसद खरीद फरोख्त ) की गयी ताकि निजीकरण की इस आंधी को  दोनों सदनों में बहुमत या अन्य किसी सवैंधानिक नियम क़ानून के बहाने के चलते रोका ना जा सकें। आज जबकि वर्तमान सरकार उन्ही पूंजीगुटों के एजंडे को पूरी गति से आगे बढ़ा रही है तो इस सरकार के हटने का या पूंजीगुटों के इससे मोहभंग का कोई भी कारण नहीं नज़र आता। 

इसे एक उद्दाहरण से ऐसे समझिये – मई 2014 में सरकार बनने के ठीक आठवें दिन बीमा और डिफेन्स में फॉरेन डाइरेक्ट इन्वेस्टमेंट की लिमिट ( 49 & 74 in 2020) परसेंट कर दी गयी थी। अब सोचिये क्या ये इस सरकार की कोई दूरदर्शी आर्थिक नीति थी क्या जो की इन्होने इतनी जल्दी ये काम किया ? नहीं , इसे पूंजीगुटों का प्रेशर कहतें हैं। जिसे पूरा करना ही होता है , सरकार इसी शर्त के साथ सत्ता में आयी थी भाई। तो असली खेल ये है। बाकी के खेल खिलद्दड़ , चुनाव , फलाना ढिमकाना आदि आदि तो जनता को बहलाने के टूल हैं।

कार्ल मार्क्स से ये लोग इतना इसलिए डरतें हैं – वो स्पष्ट कहकर गए थे  – जो समूह उत्पादन के साधनो को कंट्रोल करता है , वही समूह राजनितिक सत्ता ( न्यायालय, पुलिस, फ़ौज और नौकरशाही) को कंट्रोल करता है। इसलिए पूंजीवादी लूट को टॉप गियर पर चलाने के लिए सबसे पहली मृग मारीचिका डेमोक्रेसी और जनतंत्र की भूल भुलैय्या की रचना करके की जाती है। ताकि लोग इस आशा में जीतें रहें की चुनावों से कुछ परिवर्तन हो सकता है। और जब ये मारीचिका भी बेअसर हो जाए तो अगला चरण मिलिट्री स्टेट का होता है। तो बने रहिये हमारे साथ, अभी तो बस शुरुआत है।

राजतंत्र या तानाशाहो के खिलाफ क्रांतियां इसलिए हो जाती है क्योकि वहां विपक्ष नही होता । किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए एक मजबूत  विपक्ष होना आवश्यक है ओर उसका बने रहना सत्ता के हित के लिए भी है क्योंकि सत्ता कभी भी सब को सन्तुष्ट नही करती और जो असन्तुष्ट होते वो अपने उदगार विपक्ष के माध्यम से निकाल लेते है। अतः विपक्ष एक प्रेशर कुकर की सीटी के जैसे काम करता है ओर लोकतंत्र में एक व्यवस्था बनाये रखता है। 

सत्ता अगर विपक्ष विहीन होगी तो विपक्ष का काम जनता करने लग जाती है और क्रांति हो जाती है जैसे हम देखते है राजतंत्र में क्रांतियां होती है क्योंकि वहां विपक्ष नही होता । अतः क्रांतियों से बचने के लिए विपक्ष का होना अति आवश्यक है और सत्ता को चाहीये की विपक्ष की अहमियत बनी रहे नही तो फिर पंजाब जैसी घटनाएं होने लगती है और आम लोग विपक्ष बन जाते है जो एक सभ्य देश के लिए अच्छा नही है ।

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