28 मार्च को शाम 6: 33 से 8:57 के बीच करें होलिका दहन गुरुग्राम: श्री माता शीतला देवी मंदिर श्राइन बोर्ड गुरुग्राम के पूर्व सदस्य एवं आचार्य पुरोहित संघ के अध्यक्ष पंडित अमर चंद भारद्वाज ने कहा कि होलिका दहन फाल्गुन पूर्णिमा की शुभ बेला में करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। ऐसी भी मान्यता है कि होलिका की अग्नि उसी व्यक्ति को जलानी चाहिए जो पुरोहित हो अथवा जिनके माता-पिता अब इस दुनिया से विदा हो चुके हो। वैसे इसमें क्षेत्रीय परंपराओं का अपना अलग-अलग मत और महत्व होता है। इस वर्ष 2021 में फाल्गुन पूर्णिमा 28 मार्च को होने की वजह से होलिका दहन भी इस दिन किया जाएगा और इसी दिन होली जलने के साथ होलाष्टक समाप्त हो जाएगा। पंडित अमरचंद ने बताया कि भद्रा का समय होलिका दहन नहीं किया जाता। इस वर्ष दोपहर 1 बजे तक भद्रा समाप्त हो जाएगा। इस कारण प्रदोष काल एवं केंद्रीय श्री सनातन धर्म सभा गुरुग्राम के विद्वान पंडितों द्वारा रचित कैलेंडर के अनुसार शाम 6 बज कर 33 मिनट से 8 बज कर 57 मिनट के बीच होलिका दहन किया जा सकता है। वहीं होलिका दहन के दिन शुभ योगों में से सर्वोत्तम योग सर्वार्थ सिद्धि योग भी लगा हुआ है। इसलिए इस वर्ष होलिका पूजन और दहन कष्टों से मुक्ति पाने के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। दोपहर में होलिका दहन स्थल को पवित्र जल से शुद्ध करने के साथ उसमें लकड़ी सूखे उपले और सूखे कांटें डालें। शाम के समय पूजन करें। होलिका के पास और किसी मंदिर में दीपक जलाएं। होलिका में कपूर भी डालें ताकि चलते समय कपूर का धुआं वातावरण को शुद्ध कर सके। शुद्ध जल सहित अन्य पूजा सामग्रियों को एक-एक कर होलिका को अर्पित करें। होलिका दहन के समय परिवार के सभी सदस्यों को होलिका की 3 अथवा सात बार परिक्रमा करें। इसके बाद घर से लाए हुए जौ, गेहूं, चने की बालों को होली की ज्वाला में डाल दे। होली की अग्नि और भस्म लेकर घर आएं घर में पूजा स्थल पर रखें। इस अनुष्ठान से सर्वसिद्धि योग की प्राप्ति होगी। पंडित अमरचंद भारद्वाज ने कहा कि होलिका दहन के दिन सुख समृद्धि और पारिवारिक उन्नति के लिए श्रद्धालु होलिका की पूजा करते हैं। कहते हैं होलिका मन की बुरी नहीं थी लेकिन अपने भाई हिरण्यकश्यप के प्रभाव की वजह से प्रहलाद को चिता पर लेकर बैठ गई थी ताकि प्रहलाद अग्नि में जल कर परलोक चला जाए लेकिन दैवयोग से होलिका स्वयं जल कर मृत्यु को प्राप्त हो गई। लेकिन ब्रह्माजी की कृपा से होलिका को भी पूजनीय स्थान प्राप्त हो गया और होलिका दहन के लिए इकट्ठी की गई लकड़ियों के बीच होलिका, भगवान विष्णु और अग्नि देव की पूजा की जाती है। इसके बाद होली का उत्सव मनाया जाता है Post navigation 28 मार्च को होली पर तीनों काले क़ानूनों का होगा दहन -चौधरी संतोख सिंह कोविड-19 अपडेट….कोविड-19 ने ली एक और जान, आंकड़ा पहुंचा 364 तक