परमवीर सिंह की चिट्ठी, चिट्ठी और वैभव कृष्ण की चिट्ठी ?

* दो पुलिस अफसरों के आपसी लड़ाई का मामला
* आर्केस्ट्रा बारो में कितना पैसा है।
* ऊपर से नीचे तक मैनेज होकर चलते है मुम्बई के आर्केस्ट्रा बार 

अशोक कुमार कौशिक 

यह चिट्ठिनामा भी अजब है। मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह, जो, फिलहाल महाराष्ट्र के डीजी होमगार्ड, के पद पर नियुक्त हैं ने एक पत्र लिख कर बताया है कि, महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख इंस्पेक्टर सचिन  वाज़े जो, मुकेश अम्बानी के आवास, एंटीलिया के सामने जिलेटिन भरे विस्फोटक केस में बतौर संदिग्ध मुल्जिम सामने आए हैं, और जेरे तफ्तीश हैं, के माध्यम से हफ्ता वसूली कराते थे। हफ्ता वसूली का रेट भी उक्त पत्र में दिया गया है। कुल 100 करोड़ का टारगेट रखा गया है और उसके वसूलने के तऱीके भी बताए गए हैं। पत्र भेजने के तरीके और उस पर हस्ताक्षर को लेकर भी कुछ संदेह उठाये जा रहे हैं, पर फिलहाल उन तकनीकी बारीकियों में न जाकर, पत्र में लिखे गए, विंदु, उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार की समस्या पर ही केंद्रित करते हैं। 

गृहमंत्री द्वारा वसूली का दायित्व सौंपना, मांझी नाव डुबाये जैसा ही है। यह एक बेहद गम्भीर आरोप है। और जब यह आरोप एक डीजी स्तर का पुलिस अफसर लगाए तो यह और भी गम्भीर हो जाता है। अब यह सब आरोप सही हैं या गलत या किसी साज़िश के अंतर्गत लगाए गए हैं, या यह एक व्हिसिलब्लोअर की व्हिसिल है, यह तो, पूरे घटनाक्रम की जांच के बाद ही पता चल सकेगा। पर यहीं कुछ सवाल भी उठते है कि, इस तथ्य की जानकारी परमवीर सिंह को कब हुयी थी ? क्या उन्हें इस बात की जानकारी कमिश्नर के पद से हटाए जाने के पहले हो गयी थी या यह सब पता बाद में चला ? यदि कमिश्नर के पद पर रहते हो गयी थी तो फिर, उन्होंने सचिन वाज़े के खिलाफ कोई कार्यवाही क्यों नही की और यह बात उन्होंने मुख्यमंत्री की जानकारी में क्यों नही लाया? उन्होंने क्यों नही इस तथ्य की जानकारी होते ही खुद को कमिश्नर पुलिस के दायित्व से मुक्त हो जाने की बात मुख्यमंत्री से मिल कर नही  कही ? 

मुंबई का पुलिस कमिश्नर, गृहमंत्री का विश्वासपात्र हो या न हो पर वह मुख्यमंत्री का भरोसेमंद अफसर ज़रूर होता है। निश्चित ही उन्हें यह बात मुख्यमंत्री को और साथ ही डीजी महाराष्ट्र एवं मुख्य सचिव की जानकारी में लानी चाहिए थी। पुलिस द्वारा अवैध वसूली का आरोप नया नहीं है और यह लगभग हर जगह हर पुलिस बल में समान रूप से संक्रमित है। लेकिन यह भी सच है कि कहीं कहीं वरिष्ठ पुलिस अफसरों का संरक्षण भी इस अवैध कृत्य में रहता है तो कहीं कहीं वरिष्ठ अफसर सख्ती कर के इसे रोकने की कोशिश भी करते हैं। पर यह व्याधि निर्मूल नष्ट हो जाय यह सम्भव नहीं है। जहां तक राजनीतिक नेताओ का प्रश्न है अनिल देशमुख अकेले भ्रष्ट राजनेता नहीं हैं बल्कि इस पंक में सभी राजनेता सने हुए हैं, अपवादों को छोड़ कर। 

इस मामले में एक जानकारी यह है कि परमवीर सिंह के मामले को उजागर करने में पूर्व पुलिस आयुक्त सतपाल सिंह का भी हाथ है । सतपाल सिंह ने अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर परमवीर सिंह के खिलाफ पूरा मसाला जुटाया। शिवसेना और एनसीपी मामला की गहराई का पता लगा तो उसने परमजीत सिंह की छुट्टी पाने में ही अपनी भलाई समझी ।

परमवीर सिंह की चिट्ठी के साथ ही यह याद आया कि ऐसी ही एक चिट्ठी, उत्तर प्रदेश के जिले, गौतमबुद्ध नगर नोयडा, उत्तर प्रदेश, के एसएसपी वैभव कृष्ण ने भी यूपी सरकार को लिखी थी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को सम्बोधित उक्त चिट्ठी में, 5 वरिष्ठ पुलिस अफसरों पर संगठित तौर पर भ्रष्टाचार करने की पूरी जानकारी दी गयी थी। उस चिट्ठी में थी, ट्रांसफर-पोस्टिंग का रैकेट सरकार में कैसे चल रहा है इस पर खुलासा किया गया था। पर उस चिट्ठी पर कोई जांच हुयी या नहीं हुयी यह तो नहीं पता पर उक्त चिट्ठी के बाद वैभव कृष्ण को, एसएसपी गौतम बुद्ध नगर के पद से हटा दिया गया था। वैभव ने यह पत्र पद पर रहते हुए दिया था। परमवीर सिंह को व्हिसिलब्लोअर माना जाय या पद से हटने के बाद की नाराजगी, कि ‘मैं सब पोल खोल दूंगा’ जैसा भाव या चिढ़, यह सब अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है। 

पुलिस विभाग में भी भ्रष्टाचार है इससे किसी को इनकार नहीं है। इस भ्रष्टाचार को यह कह कर जस्टिफाई भी नहीं किया जाना चाहिए कि, भ्रष्टाचार सभी जगहों पर है। यूपी में एक डीजी साहब थे, बीपी सिंघल। वे कहा करते थे कि, पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार को अन्य विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार से अधिक गम्भीरता से लेना चाहिए, क्योंकि पुलिस के पास भ्र्ष्टाचार रोकने, रिश्वत लेने देने के आरोप में कार्यवाही करने की वैधानिक शक्तियां प्राप्त हैं। 

परमबीर सिंह जैसे वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी की बातों में कितना दम है कितनी सच्चाई है यह तो आने वाले समय में मालूम पड़ेगा जब इसकी जांच होगी। लेकिन इस आरोप के बाद यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर मुम्बई महानगर में चलने वाले बारों में कितना पैसा है? या फिर ये कहा जाए की इन बारों से कितनी कमाई है?

यह ठीक है कि मुम्बई की नाइटलाइफ़ में पहले के डांस बार और अब के ऑर्केस्ट्रा बारों का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। इन डांस या ऑर्केस्ट्रा बारों पर राजनीतिक और पुलिस संरक्षण के आरोप भी कोई नए नही है। लेकिन यदि परमबीर सिंह की बातों को एक बार सच मान लिया जाय तो सीधे गृहमन्त्री के लिए जब 100 करोड़ की अवैध वसूली हर महीने हो रही है तो कुल मिलाकर इन बारों से अवैध वसूली कितनी होगी यह कल्पना से परे है।मुम्बई महानगर में लॉकडाउन हटने के बाद पिछले साल नवंबर महीने में आर्केस्ट्रा बारों को वापस खोलने की अनुमति मिली थी।  उस समय मुम्बई पुलिस कमिश्नर के रूप में परमबीर सिंह ही थे। परमबीर सिंह से पहले मुम्बई पुलिस कमिश्नर रहे संजय बर्वे ने मुम्बई में चलने वाले आर्केस्ट्रा बारों पर काफी लगाम कसी थी। हालात यह थे कि 28 फरवरी 2019 से लेकर 28 फरवरी 2020 तक के संजय बर्वे के एक साल के कार्यकाल में आर्केस्ट्रा बार मालिक त्राहि त्राहि कर उठे थे। इसीलिए आर्केस्ट्रा बारों के मालिकों को जब यह पता चला कि परमबीर सिंह मुम्बई के नए पुलिस कमिश्नर होंगे तो उनके बीच उस समय खुशी की लहर दौड़ गयी थी। आर्केस्ट्रा बार संचालक परमबीर सिंह को अपने मनमाफिक मानते थे। इसीलिए पिछले साल मार्च की शुरुआत होते ही महानगर के आर्केस्ट्रा बार फिर से पूरी तरह से अपने रंग में  आने लगे जो संजय बर्वे के कार्यकाल में मुम्बई महानगर से लगभग ठाणे जिले में शिफ्ट हो चुके थे। 

अभी यह आर्केस्ट्रा बार पूरी तरह से रंग में आते उससे पहले ही देश में कोरोना महामारी के कारण  लॉकडाउन हो गया। अन्य गतिविधियों के साथ साथ यह आर्केस्ट्रा बार भी वीरान हो गए। जो दीपावली के बाद नवम्बर महीने में फिर से शुरू हुए। दिसम्बर आते आते आर्केस्ट्रा बार उस तरह से चालू हो गए मानो इन बारों में कोरोना गाइडलाइंस, सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क आदि का कोई मतलब ही नही था। आर्केस्ट्रा के नाम पर चलने वाले इन डांस बारों में धड़ल्ले से डांस चालू था। देर रात तक चालू रहना आम बात रही। बार संचालक खुलेआम यह कहते रहे कि कमिश्नर की ओर से 31 मार्च तक कि खुली छूट है धंधा करने की। जिसके एवज में हर बार मालिक को एक मोटा पैकेट देना पड़ता है। हालांकि हम इन बातों की पुष्टि नही करते कि बार संचालकों की बातों में सच्चाई है लेकिन जिस प्रकार से इन दिनों  खुलेआम आर्केस्ट्रा बारों में डांस और देर रात तक कि महफ़िल दिखाई पड़ी उससे इनकी बातों में दम तो लगा। 

अब सवाल यह उठता है कि क्या आर्केस्टा बारों के मालिकों को ऊपर लेवल पर अपनी पहुंच बनाने के बाद नीचे के पुलिस अधिकारी चुपचाप इन्हें संरक्षण देते हैं? तो जवाब है की नही। भले ही ऊपर लेवल पर कितनी भी पकड़ हो आर्केस्टा बार संचालकों को नीचे से ऊपर स्तर तक के पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों को मैनेज करना पड़ता है। स्थानीय स्तर पर बीट मार्शल से लेकर पुलिस स्टेशन इंचार्ज तक, एसीपी, डीसीपी, क्राइम यूनिट, समाजसेवा शाखा सबको मैनेज करना ही पड़ता है ।

यदि देर रात तक बार चलाना है तो स्थानीय नाइट पुलिस इंस्पेक्टर का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। अब जब पूर्व पुलिस कमिश्नर ने साफ साफ कहा है कि गृह मंत्रालय के लिये सचिन वाझे हर माह हर बार से दो से तीन लाख रुपये की वसूली करते थे तो बाकी पुलिस अधिकारी स्थानीय बीट मार्शल से लेकर पुलिस कमिश्नर तक एक बार मालिक को कितने लोगों को मैनेज करना पड़ता होगा? कितने पैसे बांटने पड़ते होंगे? फिर कोरोना गाइडलाइंस का पालन कराने की ज़िम्मेदारी पुलिस की न होकर बीएमसी की है। कोरोना काल में इन बार मालिको को बीएमसी अधिकारियों कर्मचारियों की खातिरदारी करना भी मजबूरी है। इन दो विभागों के अलावा एक्साइज विभाग, जीएसटी विभाग को भी बार मालिकों को मैनेज करने पड़ता है। तो आखिर इतने लोगों को मैनेज करने वाले एक बार मालिक की खुद की कमाई कितनी होगी? कोई अपने घर से पैसे लाकर तो इतने लोगों को मैनेज नही कर सकता। 

सच्चाई तो यह है कि एक बार मालिक दुनिया भर की तकलीफ परेशानी उठाकर इतने लोगों को मैनेज करके इसलिए चलता है कि उसे आर्केस्ट्रा बारों से मोटी कमाई है। भले ही बारों में डांस करना और पैसे उड़ाना गैर कानूनी हो पर यहां पर डांसरों पर खुलेआम नोटों की बारिश होती है। डांसरों पर जो पैसे उड़ते है उनमें से 40 प्रतिशत पैसे बार मालिकों के हिस्से में आता है। ऐसा नही है कि बार मालिक की कमाई का मात्र यही साधन है। बार मालिक की सबसे बड़ी कमाई तो डांसरों के हिस्से में से चोरी है। यह ऐसे होती है उदाहरण के लिए किसी डांसर पर उसके ग्राहक ने 20 हज़ार उड़ा दिए। फ्लोर पर पैसे बटोरने के लिए विशेष स्टाफ तैनात होते हैं। उनका काम होता है डांस खत्म होते ही झटपट फ्लोर से नोट बटोरना अब उस बटोरे गए नोट को गिनती कर उसकी चिट्ठी बनाकर डांसर लड़की को दे दी जाती है। उसमें यह खेल होता है कि यदि ग्राहक ने 20 हज़ार उड़ाए तो उसे 15 16 हज़ार की चिट्ठी पकड़ाई जाती है। जो चिट्ठी लड़की के हाथ में होगी उसमें से 40 प्रतिशत कमीशन तो बार मालिक को मिलेगा ही साथ में जो एक ग्राहक से चार पांच हज़ार का उसने गबन किया वह पूरा उसका। इसके अलावा यहां पर शराब, कोल्ड ड्रिंक्स, चाय आदि का भाव भी दोगुने से चार गुना तक होता है। जो ग्राहक शराब का सेवन नहीं करते उनके लिए जो चाय या कोल्ड ड्रिंक भी दी जाती है उसके लिए भी  300 से 500 रुपये तक वसूले जाते हैं। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक बार मालिक की कमाई बार से कितनी होती है। हालांकि उसे अपनी कमाई का एक मोटा हिस्सा सारे विभागों को मैनेज करने में खर्च करना पड़ता है। यदि वह इन विभागों को मैनेज नही करेगा तो पूरी तरह से प्रतिबंधित डांस नहीं करा सकेगा। डांस नही होंगे तो नोटों की बारिश कैसे होगी। 

कानूनी रूप से डांस कराना, नोट उड़ाना, 4 से ज़्यादा लड़कियां रखना, आमतौर पर रात 1.30 के बाद व कोरोना काल मे 11 बजे के बाद बार चालू रखना मना है। लेकिन इन नियमों को मानकर बार मालिकों को अपना धंधा चला पाना लगभग नामुमकिन है, इसीलिए इन्हें इतने सारे विभागों के साथ साथ अपने आसपास के समाजसेवियों को भी मैनेज करना पड़ता है। आर्केस्ट्रा बारों से बार मालिकों को फिर भी मोटी कमाई है इसीलिए इस कमाई पर हर किसी की नज़र होती है। इसीलिए मुम्बई के पूर्व पुलिस कमिश्नर द्वारा राज्य के गृह मंत्री पर लगाए गए आरोपों के बाद राजनीतिक भूचाल आ गया है।

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