इधर भाजपा नेता यशवंत सिन्हा ने थामा तृणमूल कांग्रेस का दामन।
– शुभेन्दु अधिकारी से लेकर मुकुल रॉय और सुखराम से लेकर नारायण राणे तक बीजेपी के ही घोषित सारे के सारे भ्रष्ट अचानक ही रातों रात पवित्र हो गए। 
– इधर अशोक गहलोत ने अबकी बजट में इंदिरा के नाम  से योजनाओं की झड़ी लगा दी।
– नेहरू व उनके वंशजों (इंदिरा राजीव संजय सोनिया एवं तमाम कांग्रेसियों) ने नेहरूवाद को स्थापित किया 
– आरएसएस का कहना है कि उनका संगठन व्यक्ति-पूजक नहीं है।
– महान बनने की महत्वकांक्षा सबकी होती है मोदी की भी है, ओर शायद नोबेल पुरस्कार की उनकी महत्वाकांक्षा भी पूरी हो जाए।
– पर गया तो एक रोज़ मौर्य वंश भी, चाणक्य का ही सींचा हुआ मौर्य वंश, वो भी अपनो के ही हाथों । 

अशोक कुमार कौशिक

राजनीति भी बड़ी अजीब है जिसे हम गाहे बगाहे जिसे दिन रात कोसते हैं समय आने पर उनसे हाथ मिलाने में जरा भी गुरेज नहीं करते। जो लोग टीएमसी के नेताओ को बड़ी संख्या बीजेपी में जाने को लेकर हैरान हैं, उनके लिए यूपी से ख़बर है। भाजपा में शिवपाल यादव को लेने की कहानी काफी आगे बढ़ चुकी है। मामला रुका सिर्फ इसलिए है कि शिवपाल को कोई जल्दी नही है। वे अभी तेल और तेल की धार देख रहे हैं। वही शिवपाल जिन्हें जी भरकर गरिया कर और गुंडा बताकर बीजेपी ने चुनावी बिगुल फूंका था। इधर भारतीय जनता पार्टी के पूर्व नेता वाजपेयी सरकार में मंत्री रह चुके यशवंत सिंहा ने पश्चिम बंगाल में चुनाव से पहले कल टीएमसी का दामन थाम लिया। इस मौके पर डेरेक ओ ब्रायन, सुदीप बंदोपाध्याय और सुब्रत मुखर्जी मौजूद रहे । शामिल होने से पूर्व सिन्हा ने ममता बनर्जी से उनके घर पर मुलाकात की।

शुभेन्दु अधिकारी से लेकर मुकुल रॉय और सुखराम से लेकर नारायण राणे तक बीजेपी के ही घोषित सारे के सारे भ्रष्ट अचानक ही रातों रात पवित्र हो गए। उन्होंने बस बीजेपी को छू भर लिया। सारे पाप धुल गए। अगर बीजेपी कल को पीरजादा खान और आज़म खान को भी शामिल कर ले तो हैरान मत होइएगा। आज़म के दाहिने हाथ वसीम रिज़वी पहले ही बीजेपी के केसरिया तिलक को माथे लगाकर पवित्र हो चुके हैं। वसीम रिज़वी शिया वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमैन हैं। वे और आज़म दोनो ही वक़्फ़ घोटाले को लेकर सीबीआई जांच के दायरे में हैं। 

इस जांच की सिफारिश योगी सरकार ने ही की है। मगर जांच घोषित होते ही वसीम रिज़वी राम भक्त हो गए। रामलला के हो गए। अब वो मदरसों को आतंकवाद की फैक्ट्री और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को आतंकी संगठन बता रहे हैं। भाजपा को यह फिट बैठता है। सो उनको अभयदान मिल गया है। वे अब बीजेपी के हैं और बीजेपी उनकी है।

भक्त मोटा भाई को चाणक्य बता रहे हैं। तर्क दे रहे हैं कि चाणक्य ने दो सीट लेकर भी सरकार बना ली थी तो नरेश अग्रवाल जैसे राम भक्त को पार्टी में शामिल कर बीजेपी के हिस्से राज्यसभा चुनावो में जीता दिया। 

अब थोड़ी चर्चा एक और विचारधारा की कर लेते हैं। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अबकी बजट में इंदिरा के नाम  से योजनाओं की झड़ी लगा दी है , लगाना भी चाहिए । एक सामान्य सी जाति (सैनी/माली) सामान्य परिवार के युवा पर जोधपुर के एक शरणार्थी शिविर में नज़र पड़ते ही इंदिरा ने उसे फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया। जोधपुर विश्वविद्यालय और एनएसयूआई राजस्थान के अध्यक्ष से 29 वर्ष की आयु में जोधपुर से सांसद और इंदिरा कैबिनेट में मंत्री तक का सफर ।

नेहरू को गरियाना आसान है लेकिन भारतीय राजनीति में नेहरू की शख्शियत को नकारना मुश्किल है । आप गरिया के नेहरू का कद कम नहीं कर सकते बल्कि आपको नेहरू का कद कम करना है तो नेहरू की खींची राजनीतिक लाइन से बड़ी अपनी राजनीतिक लाइन खींचनी ही होगी यह बात मोदी अच्छे तरीके से जानते हैं ।

नेहरू विलायत से पढ़े थे बैरिस्टर भी थे योग्य कुशल चतुर राजनेता भी थे । नेहरू अच्छे से जानते थे बिना गांधी अम्बेडकर को स्थापित किये भारत में नेहरूवाद स्थापित नहीं हो सकता। नेहरू ने ही गांधीवाद या गाँधीदर्शन और अम्बेडकरवाद स्थापित किया था उसके बाद ही नेहरू व उनके वंशजों (इंदिरा राजीव संजय सोनिया एवं तमाम कांग्रेसियों) ने नेहरूवाद को स्थापित किया ।

इंदिरा या इन्दिरावाद को स्थापित स्वयं इंदिरा ने नहीं किया था बल्कि संजय, राजीव, सोनिया एवं गहलोत जैसे उनके तमाम सिपहसालारों ने इंदिरा को स्थापित किया है । राजीव को स्थापित सोनिया मनमोहन एवं उनके संगठन के सिपहसालारों ने किया है ।

उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में लोहिया पार्क भी है लोहिया अस्पताल भी और लोहिया के नाम से वहां सरकारी योजनाएं भी चलती है । मुलायम व उनके पुत्र अखिलेश अच्छे से जानते है बिना लोहिया को स्थापित किये ना समाजवादी पार्टी का समाजवाद स्थापित हो सकता है ना मुलायम अखिलेश स्थापित हो सकते हैं ।

मायावती ने खुद से पहले बाबा साहेब अंबेडकर और माननीय काशीराम जी की मूर्तियां लगवाई थी क्योंकि बिना अंबेडकर काशीराम को स्थापित किये बहुजन समाज में मायावती स्थापित नहीं हो सकती ।

सार्वभौमिक व अटल सत्य यही है कि अपने पूर्वाधिकारी को स्थापित किये बिना आप स्थापित नहीं हो सकते हैं । राजतंत्र वाले भारत मे भी राजे रजवाड़े स्वयं से पूर्व अपने पिता दादा महाराज को स्थापित करते थे तब वो खुद स्थापित हो पाते थे ।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा में भगत सुखदेव राजगुरु आज़ाद बिस्मिल अशफाक खुदीराम गांधी नेहरू पटेल बोस अंबेडकर और मौलाना आज़ाद नहीं आते है । आरएसएस की विचारधारा में गोड्से व सावरकर की भी सहज स्वीकार्यता नहीं है क्योंकि दोनों महासभाई थे ।आरएसएस अपने संस्थापक डॉ. हेडगेवार के राजनीतिक गुरु डॉ. मुंजे को भी अपनी विचारधारा में पूरा फ़ीट नहीं पाता है। (जिनकी प्रेरणा से हेडगेवार ने आरएसएस की स्थापना की थी) आरएसएस जानता है वो मुंजे को याद करेगा तो ज़िक्र हिन्दू महासभा और महासभा के तमाम महापुरुषों का भी होगा ।

10-15 वर्ष तक आरएसएस भगतसिंह को भी ज्यादा याद नहीं करता था क्योंकि वो हिंदुस्तान सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक व चंद्रशेखर आज़ाद के संगठन से जुड़े थे ।गांधी का तोड़ निकालने आरएसएस ने भगतसिंह को याद करना शुरू किया क्योंकि आरएसएस जानता है कांग्रेस अगर भगतसिंह को ज्यादा तवज्जो देगी तो गांधी नेहरू की आभा कम होगी। सरदार पटेल (मोटेरा) स्टेडियम का नाम बदलकर नरेन्द्र मोदी नाम रखे जाने से आरएसएस खफा है ।

आरएसएस का मानना/कहना है कि उनका संगठन व्यक्ति-पूजक नहीं है बल्कि वो सिर्फ और सिर्फ भगवा-ध्वज को पूजते हैं । प्रधानमंत्री मोदी भी आरएसएस से आते हैं और अच्छे से जानते है कि आरएसएस में व्यक्ति-पूजा वर्जित है, लेकिन स्थापित होने अथवा महान बनने की महत्वकांक्षा सबकी होती है मोदी की भी है । मोदी यह भी जानते होंगे कि अपने पूर्वाधिकारियों को स्थापित किये बिना वो स्थापित नहीं हो सकते । (इसी बात के ढेरों उदाहरण मैंने ऊपर दिए हैं) 

मोदी यह भी जानते हैं कि उनके मातृ-संगठन में व्यक्ति-पूजा वर्जित है और मोदी के बाद उनके ना बेटे है ना बेटियां है (इंदिरा संजय राजीव सोनिया की तरह) ना कोई उनके सिपहसालार है (अशोक गहलोत की तरह) जो उनके (मोदी के) बाद उनको (मोदी को) स्थापित कर सके । (क्योंकि आरएसएस भाजपा आज तक हेडगेवार, गोलवलकर, मुखर्जी, दीनदयाल, अटल व भैरोंसिंह को स्थापित नहीं कर पाए हैं मोदी को कैसे स्थापित कर पाएंगे) 

बस यही वजह है कि मोदी अपने मातृ-संगठन आरएसएस की विचारधारा से परे जा कर भगत, सुखदेव, राजगुरु, आज़ाद, बिस्मिल, अशफ़ाक़, खुदीराम, गांधी, नेहरू, पटेल, बोस व अंबेडकर के आगे नतमस्तक होते हैं । जिस दिन मोदी मौलाना अब्दुल कलाम आजाद के सामने नतमस्तक होंगे सही मायनों में वो उस दिन भारतीय राजनीति में पूर्ण स्थापित हों जाएंगे और शायद नोबेल पुरस्कार लेने की उनकी महत्वाकांक्षा भी पूरी हो जाए। मोदी होंगे भी एक दिन मौलाना आज़ाद के सामने नतमस्तक और उनका भी स्तुतिगान करेंगे । और , तमाम महापुरुषों की तरह मौलाना-आज़ाद को गरियाने वाले अंधभक्तों को उस दिन भी सर छुपाने की जगह नहीं मिलेगी ।

 देखो भक्तों ऐसा है कि गया तो एक रोज़ मौर्य वंश भी। चाणक्य का ही सींचा हुआ मौर्य वंश। वो भी अपनो के ही हाथों । मौर्य वंश का अंतिम सम्राट वृहद्रथ अपने ही सेनापति पुष्यमित्र शुंग के हाथों मारा गया। कोई बाहरी नही आया था। जाना सभी को है। राजीव गांधी के ज़माने में 415 सीटें हासिल कर रिकॉर्ड बनाने वाली कांग्रेस भी एक रोज़ चली ही गई और महज 2 सीटों से सरकार बनाकर पूरे देश में सत्ता का परचम लहराने वाली बीजेपी भी एक रोज़ निपटेगी ही।

ये तो प्रकृति का नियम है, पर इतिहास याद क्या रखेगा? सत्ता की जोड़तोड़ के लिए कुछ भी कर  गुजरने की सनक या फिर सत्ता के अहंकार की नदी में सिद्धांतों के अंतहीन अस्थि-विसर्जन की दास्तां या फिर दोनों ।

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