-कमलेश भारतीय फिल्मी झांसी की रानी कंगना रानौत पर काॅपीराइट उल्लंघन का केस दर्ज हुआ है । दिद्दा : द वारियर क्वीन ऑफ कश्मीर को लेकर । आशीष कौल का आरोप है कि कंगना रानौत ने अपनी आने वाली फिल्म कश्मीर की योद्धा रानी दिद्दा में उनकी कहानी चुराई है । उन्होंने काॅपीराइट कानून का उल्लंघन किया है । आशीष के मुताबिक इस कहानी के एक्स्क्लूसिव काॅपीराइट उनके पास हैं । कंगना ने उनकी अनुमति के बिना इसका इस्तेमाल किया है । यह कोई पहली बार नहीं हुआ । न कंगना रानौत ऐसी पहली फिल्मकार है जिसने इस तरह सीधे सीधे किसी की कहानी चुरा ली हो । यह बहुत पहले से प्रचलन में है । फिल्मी दुनिया में व्ही शांताराम ने एक फिल्म बनाई थी -गीत गाया पत्थरों ने और इस पर हिमाचल के एक लेखक ने काॅपीराइट का यानी कहानी चुराने का आरोप लगाया था । वैसे मजेदार बात यह कि कितनी ही विदेशी फिल्मों की कहानी चुराने के लिए हमारे मुम्बईकर फिल्म निर्माता मशहूर हैं । अब तो और आगे बढकर साउथ की फिल्मों के रीमेक सामने आने लगे हैं । जरा सी साउथ की कोई फिल्म बिजनेस करती है तुरंत हमारे मुम्बईकर निर्माता करार करने दौड़ पड़ते हैं कि कोई दूसरा बाजी न मार जाये । सीधी सीधी बात कि मुम्बईकर नकल पर चलते हैं , मौलिकता पर नहीं । जब जब फूल खिले का नया रूप राजा हिंदुस्तानी भी हिट रहा । कितने ही उपन्यास हैं जिन्हें पढ़ें तो फिल्म बन सकती है । बनाई भी गयीं । मुंशी प्रेमचंद से लेकर कमलेश्वर तक के उपन्यासों पर फिल्में इसका प्रमाण हैं । कमलेश्वर के उपन्यास काली आंधी पर आंधी फिल्म बनाई गुलज़ार ने जो सुपरहिट रही । गुलज़ार ने मौसम भी बनाई जो हिट रही । सिर्फ नज़रिये की बात । मुंशी प्रेमचंद तो फिल्मनगरी मुम्बई में गये भी थे पटकथा लेखन करने पर लौट आए । उन्होंने एक फिल्म में छोटा सा रोल भी किया पर वहां का माहौल मन माफिक न पाकर लौट आए । यह बात उन्होंने अपने मित्र दया निगम को खत में लिखी । कवि नीरज , संतोषानंद भी मुम्बई न रह पाए । शैलेंद्र ने जरूर जगह बनाई और अंतिम सांस तक टिके रहे और तीसरी कसम जैसी फिल्म भी बनाई जो फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी पर आधारित थी । वैसी फिल्म बना कर वे कर्ज तले दब गये और फिर विदा हो गये । राजेंद्र सिंह बेदी की रचना पर आधारित फागुन फिल्म आई जिसमें धर्मेंद्र ने बहुत शानदार अभिनय किया था । बड़ी बात कि फिल्मी दुनिया में कहानी चुराने की परंपरा पुरानी है और गुलज़ार जैसे कुछ ऐसे फिल्म निर्देशक भी हैं जो ईमानदारी से लेखक को उसका सम्मान देते हैं जो देना भी चाहिए । नरेंद्र मौर्य की एक कहानी सारिका में पढ़ी किसी फिल्मकार ने तो उस पर फिल्म बना दी -साथ साथ वह हिट रही और उस जमाने में लेखक को मिले पांच हजार रुपये । चेतन भगत के उपन्यास पर बनी फिल्म सबसे ज्यादा हिट रही-थ्री इडियट्स । हालांकि बाद मे चेतन भगत ने भी हल्ला मचाया तब निर्माता ने बताया कि इसका आइडिया लेने की रकम चुका दी थी और अब सफल होने पर चेतन ने यह हल्ला किया है । यह है ईमानदारी । कंगना जी आप भी ईमानदारी से आशीष को उसका काॅपीराइट दीजिए । Post navigation यशवंत सिन्हा ने थामा टीएमसी का हाथ, वाजपेयी सरकार में मंत्री रह चुके, अटल युग को किया याद बढती मंहगाई व पेट्रोल डीजल के अलावा गैस सब्सिडी खत्म करने को लेकर कांग्रेस पार्टी का बरवाला में प्रदर्शन।