-कमलेश भारतीय

क्या सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाना राजद्रोह है ? नहीं । सुप्रीम कोर्ट ने फिर यह फैसला दिया है । जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला के मामले में । उन्हें कितने समय तक नज़रबंद रखा गया । लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला कि विरोध की आवाज़ राजद्रोह नहीं मानी जा सकती ।

इसी प्रकार एक्ट्रेस तापसी पन्नू, अनुराग कश्यप और एक अन्य फिल्मकार के प्रतिष्ठानों पर आयकर विभाग के छापे भी यही इशारे कर रहे हैं कि यदि हमारा विरोध करोगे तो ऐसी कार्रवाई के लिए तैयार रहना पड़ेगा । ये एक्टर्ज सरकार के फैसलों की आलोचना करने वालों में शामिल हैं । स्वरा भास्कर पर भी कार्रवाई हो सकती है । वह भी सरकार की आलोचना करने में मुखर है । इसीलिए डी डी की एंकरिंग से उसे बाहर कर दिया गया । वह रंगोली कार्यक्रम प्रस्तुत करती थी । वैसे पुण्य प्रसून वाजपेयी और अजीत अंजुम का हश्र भी पता होगा । ये दोनों तेज़ तर्रार पत्रकार हैं और चैनलों से बाहर कर कर दिये गये हैं क्योंकि गोदी मीडिया के रंग में नहीं रंगे । यह सबसे बड़ा कसूर है ।

वैसे घोषित आपातकाल नहीं है । पर हवा है और हवा की आवाज़ है । राहुल गांधी ने आपातकाल को बहुत बड़ी गलती मान कर माफी मांगी है । अब तो माफी मांगने की जरूरत ही न रही । आपातकाल लगाया ही नहीं गया फिर माफी कैसी और किससे ?

क्या लोकतंत्र विरोध के बिना फल फूल सकता है ? क्या लोकतंत्र में विरोध करना गुनाह है ? लोकतंत्र के हर स्तम्भ को आप नियंत्रित करने की कोशिश में लगे हो कि नहीं? मीडिया को पालतू बना लिया । कोई सच दिखाना और सुनाना नहीं चाहता । अब सोशल मीडिया के लिए भी नयी गाइडलाइंस । किसलिए ? हर माध्यम पर नकेल की कोशिश क्यों ? आपातकाल पर आंसू बहाना बंद कीजिए । तब लालकृष्ण आडवाणी ने ही कहा था कि हमने तो सिर्फ मीडिया को चेताया था लेकिन यह तो दंडवत् ही हो गया । यह है चेतावनी । जरा याद कीजिए । जिस सूचना व प्रसारण मंत्री ने आपातकाल मे फिल्मों पर नियंत्रण किया , उसे दोबारा जीत नहीं मिली ।

सोचिए और रुक कर फैसला कीजिए । आज मायावती कहां हैं ? कोई जानता है ? विरोध की आवाज़ कहां दबा दी गयी? अखिलेश कितने मुखर रह गये? यदि तापसी पन्नू विद्रोही है तो कंगना रानौत क्यों नहीं ? उसकी बिल्डिंग तोड़ने का भी दुख है पर तापसी और कंगना में फर्क क्यों ? एक ने महाराष्ट्र सरकार को परेशान किया तो ठीक और दूसरी ने आपको परेशान किया तो गलत और राजद्रोह भी बन सकता है । यह दोगली नीति क्यों ?

मेरी आवाज़ ही पहचान है
मेरी आवाज़ को न दबाइये
यही लोकतंत्र की पहचान और जान है,,,,

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