– दोनो भाई बहन ताबड़तोड़ दौरे कर रहे हैं कोविड के खतरे के बावजूद।– 23 बुढऊ राज्यसभा की मलाई खा पेंशन पाकर उसी कांग्रेस के गड्ढे खोद रहे है जिसने उनको फलने फूलने का मौका दिया।– गांधी के मूल्यों को अस्वीकार कर गोडसेवादियों के साथ जाने वालों राजनेताओं के पदलोलुप निर्णयों के उपरांत भी कांग्रेस अभी तक अपरिवर्तित रही है। अशोक कुमार कौशिक आलेख के साथ दी गई फोटो में खड़े नेताओं को देखकर सबसे पहले आपके दिमाग में यही आएगा कि ये भाजपाई नेता होंगे। लेकिन ऐसा नही है श्रीमान, यहां आप धोखा खा गए। ये सब के सब कांग्रेसी नेता है जिसमें अधिकतर बिना जनाधार वाले नेता है। जो सालों से राज्यसभा के सदस्य रहकर सत्ता का सुख भोग रहे थे, लेकिन अब ये सभी भगवा साफा सर पर बांध कर और जीवन में पहली बार मोदी का तारीफ करके कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ( सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी) को डरा रहें हैं कि हमारे लिए व्यवस्था करो नही तो भाजपा ज्वाईन कर लेंगे। या यूं कहे कि कांग्रेसी नेताओं को सत्ता की मलाई खाने की ऐसी आदत है कि इसके बिना नही रहा जाता। सत्ता और सुख सुविधा न मिल पाने की हताशा में जो तथाकथित त्यागी महान राजनेता कांग्रेस को छोड़ चुके हैं, या छोड़ रहे हैं या छोड़ने वाले हैं, ये सब ठीक ही होगें। वैसे तो इनके द्वारा दल छोड़ने के अपने पक्ष में अनगिनत कारण गिनाए जा रहें हैं और गिनाए जाते रहेगें लेकिन मूल बात यही है कि अच्छा ही हुआ कि इन महान राजनेताओं (कायरों) को समय रहते एहसास तो हुआ कि आज की राजनीति जो चाहती है या राजनीति के माध्यम से जो ये चाहते हैं वो कांग्रेस को छोड़े बिना संभव नहीं है। आज की राजनीति का पूरा लाभ उठाना है तो इसके लिये उपयुक्त दल (जो सभी जानते हैं) का चयन बहुत जरूरी है और यह तो स्थापित सत्य है कि इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिये कांग्रेस वो दल नहीं। राहुल गांधी अपने संस्कारों, भाषा और कार्यों के कारण आज की गंदगी के लिये उपयुक्त नहीं है। जबकि इन महान ? कायरों लिये तो समय आगे बढ़ने का है, आगे देखने का है। जैसे-जैसे इन महान राजनेताओं को इस तथ्य का ज्ञान होता रहा वैसे-वैसे इसी तरह से दल परिवर्तन होता रहा है, पहले भी और आज भी। पद और सुविधा लोलुपों के लिये इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है। कांग्रेस के राजनीतिक उद्देश्य का स्वप्न ही इतना आदर्शपूर्ण है कि इन महान राजनेताओं यहां से पलायन करना उचित है और जहां खुद इनके स्वप्न साकार हों उस दल का चयन तो और भी उत्तम है। क्योंकि आज का युग स्वयं के लिये स्वप्न देखने का एवं उन्हें साकार करने का है, आम आदमी के लिये कौन देखे अपनी आंखों से कोई स्वप्न और क्यों देखे, यह कार्य तो हमारे पूर्वजों ने बहुत कर लिया और इसका प्रतिफल उन्हें मिल गया और कई पेड कमेंट्स आज भी उन्हें इसका प्रतिफल दे रहें है। ऐसा प्रतिफल इन कायरों को नहीं चाहिये, इसलिये इनके दल परिवर्तन का निर्णय स्वागत योग्य है। कांग्रेस ने इनको देशव्यापी पहचान दी और इन्होंने उस कांग्रेस को क्या दिया। गांधी के मूल्यों को अस्वीकार कर गोडसेवादियों के साथ जाने वालों एक बात और कि कांग्रेस आप या आप जैसे महान राजनेताओं ?(कायरों) के इस तरह के पदलोलुप निर्णयों के उपरांत भी अभी तक अपरिवर्तित रही है और भविष्य में भी अपरिवर्तित ही रहेगी शायद। राहुल के लिये पुराने कांग्रेसी मूल्य आज भी मूल्यवान हैं। अवसरवादिता, सत्ता चाह, फरेब, कुटिलता, निम्न भाषा के प्रयोग इत्यादि की उनके यहां जगह नहीं है। यही प्रमुख कारण रहा है कि समयानुसार मूल्यों और सिद्धांतों से समझौता न करने से राहुल वर्तमान समय में उपेक्षणीय हो गये हैं आप जैसे अधिकांश पदलोलुपों की दृष्टि में। सबसे बड़ी बात यहां भी कि राहुल और उनके सिद्धांत अपरिवर्तनीय है इस उपेक्षा के बाबजूद भी, यहां तक कि राजनैतिक कैरियर भी दांव पर लग जाये, उसका भी रंज नहीं है उनको। क्या आज वास्तव में आवश्यकता नहीं है ऐसे अपरिवर्तनीय सिद्धांतों वाले की, शायद हाँ। तथापि धन्य है वर्तमान में इतनी सच्ची, पुरानी और ऐसी आत्मघाती सोच रखने वाले की मानसिक दृढ़ता की। धन्य है राहुल और प्रियंका जो गांधी- नेहरू- इंदिरा विरासत को आज भी जिंदा रखने के लिये संघर्षरत हैं। दोनो भाई बहन ताबड़तोड़ दौरे कर रहे हैं कोविड के खतरे के बावजूद । 23 बुढऊ राज्यसभा की मलाई खा पेंशन पाकर उसी कांग्रेस के गड्ढे खोद रहे है । गुलाम नबी को मंत्री पद , महासचिव , मुख्यमंत्री तक के पद मिले । आनंदशर्मा , मनीष तिवारी को मंत्री पद ,भूपेन्द्र हुड्डा को मुख्यमंत्री पद उनकी वजह से हरियाणा में कांग्रेस के कईं कद्दावर नेता 2014 में पार्टी छोड़ गए । उनके बेटे को मनमोहन सरकार में मंत्रिपद । विवेक तन्खा को राज्यसभा के टिकट । कपिल सिब्बल मनमोहन के दोनो कार्यकाल में मंत्री पद । राजबब्बर को राज्यसभा सदस्यता और उत्तरप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष का पद लंबे समय तक । आलेख के साथ दी गई तस्वीर के ठीक बीच मे देखिये, कौन है यह आदमी ? वो ही न जिन्होंने 0 लास की थ्योरी दी थी औऱ कांग्रेस का बेड़ा गर्क कर दिया था । जिसे मीडिया ने दिन रात चलाया और अन्ना जैसे आन्दोलनजीवी को सँजीवनि दे दी और पूरा करप्शन का परसेप्शन यूपीए के विरूद्ध बन गया ,पहचाना की नही। यह वो ही कपिल सिब्बल है जिनके उलूल जुलूल बयानों से कांग्रेस गाहे बगाहे परेशानी में फंसती रहती है जिन्होंने दिल्ली के एक लोकसभा सीट को छोड़कर कभी जमीनी राजनीति नही की , जिन्होंने अपना प्रोफेशन राजनीति के लिए कभी नही छोड़ा । जिन्होंने केवल अपने लोकसभा सीट के गणित के लिए पूरी कांग्रेस की तुष्टीकरण की तरफ मोड़ दिया । आज वो भगवा पगड़ी पहने कांग्रेस को धर्मनिरपेक्षता सीखा रहे है। अब जरा लेफ्ट चलिये आपको महाज्ञानी आनंद शर्मा दिखेंगे जिन्होंने शायद ही कभी लोकसभा चुनाव लड़ा हो लेकिन वीरभद्र सिंह जैसे खांटी ज़मीनी नेता को सदा राजनीति के पाठ पढ़ाते रहते थे। कांग्रेस ने उनको हिमाचल प्रदेश जैसी छोटी प्रदेश के बाद राज्यसभा सांसद से लेकर केंद्रीय मंत्री तक बनाया। वो आज कांग्रेस को बंगाल में राजनीति का ककहरा सीखा रहे है। यह इतने दोगले है कि इन्हें केरल में मुस्लिम लीग से गठबंधन नजर नही आ रहा था लेकिन वाम दलों का आईएसएफ को सीट देना आज अखर रहा है। अब बात करे “गुलाम” साहब की जिन्होंने पूरी जिंदगी इंदिरा, नेहरु और गांधी की कृपा से निकाल दी लेकिन आज इनके अंदर का लोकतंत्र जग गया है। इन्हें कांग्रेस में वंशवाद नजर आ रहा है। गुजरात दंगो के समय साहब में इनको शैतान नजर आ रहा था। अब एक राज्यसभा की सीट के लिए भगवान नजर आ रहा है । मतलब जिस पार्टी ने आपको बनाया उसे ही नीचा दिखा रहे है। गुलाम नबी मोदी की तारीफ कर रहे हैं जबकि गुलाम नबी को धारा 370 हटाने के वक्त इन्ही मोदी ने कश्मीर में घुसने नही दिया था। श्रीनगर एयरपोर्ट से वापस कर दिया था । वही मोदी गुलाम नबी के लिए राज्यसभा से उनकी विदाई पर आँसू बहा रहे थे । राज बब्बर, मनीष तिवारी, भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसे नेताओं के बारे में बात करना लेख को लंबा करना होगा, कांग्रेस को इस मामले में बीजेपी से सीखना चाहिए। वो वक्त पड़ने पर जसवंत सिंह और कल्याण सिंह जैसे नेताओं को निकाल बाहर कर देती है। सत्ता में हो या न हो लेकिन अनुशासन से कोई समझौता नही करती है। अब समय आ गया है। राहुल गाँधी को पार्टी रुपी नदी की सारी कीचड़ और गंदगी साफ कर देना चाहिए। देर से ही सही इस सुखी नदी में निर्मल और स्वच्छ जल तो आएगा। आजादी के पहले से इस परिवार के पास शान ओ शोकत और इतनी दौलत रही है कि अम्बानी अडानी जैसे चोकीदार रख सकते थे। जहाँ आज अमूमन हर नेता गरीबी से परेशान हो राजनीति में आता है, और अथाह दौलत कमाता है । वहीं ये एक ऐसा परिवार है जिसने उस वक्त अपना एक अनमोल भवन देश की आजादी के लिए दान कर दिया और शान से जीने वाले पूरे नेहरू परिवार ने अपने जीवन का काफी समय जेलों में काटा । राहुल आज भी चाहे तो दुनिया के किसी भी कोने में सेकड़ो नोकर चाकर रख एक आलीशान जीवन जी सकता है। जहाँ ना गाली मिलेगी ना धक्के खाने पड़ेंगे , तो फिर ये परिवार दो शहादत के बाद भी क्यों धक्के खा रहा है? आज लगभग तीन महीनों से किसानों का का इतना बड़ा आंदोलन चल रहा है. देश में बेरोजगारी, महँगाई, सरकारी कंपनियों और संपत्तियों का निजीकरण, डीजल, पेट्रोल, गैस के रेट अपने चरम सीमा पर है, और पांच राज्यों में चुनाव की घोषणा भी हो चुकी है। लेकिन ये सभी नेता सरकार को घेरने और जनता के इन मुद्दों को उठाने और कांग्रेस के लिए काम करने के बजाय 23 नेताओं का एक गुट बनाकर मोदी की तारीफ कर रहें हैं और कांग्रेस पार्टी पर दबाव बना रहे हैं। इन्ही 23 नेताओं बिहार चुनाव के एन पहले पार्टी के खिलाफ बयानबाजी की थी । अब फिर 5 राज्यों में चुनाव है और ये आस्तीन के सांप फिर निकल आये। ऐसी नकली आजादी से पार्टी की गुलामी ही ठीक है। इन्ही 23 नेताओं बिहार चुनाव के एन पहले पार्टी के खिलाफ बयानबाजी की थी । मेरा मानना है कि कांग्रेस को ऐसे नेताओं से जितनी जल्दी छुटकारा मिल जाए उतना अच्छा होगा। Post navigation कृषि कानून , चुनाव में नारा और गुलाम नवी विद्रोह की आवाज़ राजद्रोह नहीं