-कमलेश भारतीय

पहले कांग्रेस चिंतन शिविर लगाया करती थी । जिसमें खुलकर विचार विमर्श होता और नयी रणनीति बनती । फिर किचन कैबिनेट भी अपना काम करती । कांग्रेस हाईकमान सोनिया गांधी को किचन कैबिनेट में दिल्ली की तीन तीन बार मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित भी थीं जिनका एकछत्र राज्य अरविंद केजरीवाल ने खत्म कर दिया । वे फिर न उठ पाईं । हरियाणा की सुश्री सैलजा भी किचन कैबिनेट में रहीं लेकिन अब वे राज्यसभा में भी नहीं हैं । वे सीधा लोकसभा चुनाव अम्बाला में हार गयीं । वैसे हारे तो सभी नेता लोकसभा चुनाव । क्या हुड्डा पिता पुत्र भी इस हार को टाल न सके । इसके बाद से सैलजा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष । दीपेंद्र राज्यसभा में और किसान आंदोलन में अच्छा काम कर रहे हैं और राहुल व प्रियंका के कार्यक्रमों में बराबर सक्रिय दिखते हैं ।

इन दिनों कांग्रेस हाईकमान आलोचना के केंद्र में हैं । खासतौर पर इसे जी 23 ग्रुप के रूप में जाना जा रहा है क्योंकि ये वे तेइस नेता हैं जिन्होंने कांग्रेस नेतृत्व को लेकर चिट्ठी लिखी थी । कांग्रेस में स्थायी अध्यक्ष बनाये जाने की मांग उठाई थी । यह कोई अनुचित मांग नहीं थी । राहुल गांधी ने अपनी मर्जी से अध्यक्ष पद छोड़ा और आनन फाइन में सोनिया गांधी को अस्थायी या कहिए केयर टेकर अध्यक्ष बना दिया गया बाद में निर्वाचन आयोग ने भी कांग्रेस को स्थायी अध्यक्ष बनाने के लिए चेताया । अभी तक कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष के भरोसे चल रही है । इसलिए किसी स्थायी अध्यक्ष को चुने जाने की मांग गलत नहीं कही जा सकती । यदि राहुल गांधी अध्यक्ष बनने की तमन्ना रखते हैं तो फिर छोड़ा ही क्यों था यह पद ? कांग्रेस को बीच मंझधार क्यों छोड़ा? लेकिन यह भी सच है जो प्रियंका गांधी ने कहा कि राहुल के साथ कौन गये थे लोकसभा चुनाव में प्रचार करने ? किसने राहुल की बात स्वीकार की टिकटों के बंटवारे में ? सब तो अपने अपने बेटों की टिकट के लिए लड़ रहे थे । क्या करना तो क्या अशोक गहलोत ये फिर हमारे हरियाणा के कुलदीप बिशनोई । कांग्रेस में नये चेहरे और कार्यकर्त्ता की टिकट कहां ? इसलिए मोहभंग शुरू हुआ कांग्रेस से । ज्योतिरादित्य सिंधिया गये और सचिन पायलट जाते जाते रह गये । मोहभंग हुआ और कितने नेता कांग्रेस का हाथ झटक गये और कमल थाम लिया ।

आज ये तेइस नेता जम्मू में जाकर कह रहे हैं कि कांग्रेस कमज़ोर है । इस पर विचार मंथन की जरूरत है । यह एक प्रकार का चिंतन शिविर ही कहा जा सकता है । ये नेता यह भी कह रहे हैं कि हम इसे मिल कर मजबूत करेंगे तो कीजिए न । पांच राज्यों के चुनाव घोषित हुए हैं । जाइए इन राज्यों में । कीजिए कांग्रेस का हाथ मजबूत । यदि हर राज्य में हारते जाओगे तो मजबूत कैसे होगी कांग्रेस? आनंद शर्मा कहते हैं कि हम खिड़की से नहीं आए पर सारी उम्र राज्यसभा में ही बिता दी । जनाधार है तो हिमाचल में चुनाव लड़ते कभी । गुलाम नवी आजाद भी ज्यादातर राजयसभा में ही सुशोभित रहे । जम्मूू कश्मीर में मुख्यमंत्री पद पर विराजमान किये गये । जनाधार वाले नेता हैं भूपेंद्र सिंह हुड्डा । मनीष तिवारी ऐसे समय में अस्पताल में दाखिल हो गये थे जब कांग्रेस टिकट पर लुधियाना में हार साफ नज़र आ रही थी । राज बब्बर को यूपी का अध्यक्ष बनाया गया । उनका चेहरा नहीं चला । कितने लोग हैं जो कमज़ोर कांग्रेस के मजबूत नेता हैं ? इन तेइस में ? ये कह रहे हैं कि नये चेहरों को लाइए । पहले आप तो युवाओं के लिए जगह छोड़िए । माना कि कांग्रेस हाई कमान चापलूस किस्म के नेताओं से घिर गयी हैं तो आप जगाइए न । राहुल अकेले चुनाव प्रचार पर हैं । कोई तो साथ आइए । कमज़ोर कह कर कमज़ोर न करते जाइए कांग्रेस को । अपनी पार्टी की सुध लीजिए । भाजपा सन् 2024 के लोकसभा चुनाव की रणनीति बनाने में जुटी है और आप मिलकर कांग्रेस को कमज़ोर कहने में जुटे हो । यह कैसा मुकाबला है ?

मुकाबला हमसे न करो , मुकाबला खुद से करो
मेरी सब पे नज़र है
क्या कोई अपनी खबर है ?

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