नेहरु ने कहा था संस्थान का नाम भोपाल पॉलीटेक्निक कीजिये, या सबसे प्रिय साथी वल्लभ भाई का नाम दीजिए। मैं जीवित हूँ और अपने नाम पर ही कोई संस्थान खोलूँ ऐसा कैसे?
– इस देश के हर सेक्टर के दिग्गज लोगो का नाम पर आपको गिनती के प्रतिष्ठान मिलेंगे ।
– भगत सिंह की माता को पंजाब माता की कर सम्मानित किया था
– भारत में स्थानों/संस्थाओं के साथ नेताओं के नाम चस्पा करने की परम्परा पुरानी रही है।
– गांधी से लेकर दीन दयाल उपाध्याय तक, सभी ने जब मौका मिला – नामकरण करने का अवसर लपका
– मोदी ने स्टेडियम नाम करते ही सोशल मीडिया में उनका बचाव शुरू।
– आरोप शुरु हैं कि नेहरू और इंदिरा ने प्रधानमंत्री रहते स्वयं को भारत रत्न दे दिया था। 
– परंपरा से हटने पर मायावती की जमकर आलोचना हुई है।
– दलितों अति पिछड़ों ,महिलाओं का सम्मान क्या होता है यह देश को छ्त्तीसगढ़ से सीखना चाहिए

अशोक कुमार कौशिक

 दो बातें जो इस देश की संस्कृति और परंपरा में शामिल नहीं रहीं। एक किसी के नाम पर उसके जीवनकाल में राष्ट्रीय या निजी संपत्ति का नामकरण, दो महान विभूतियों का नाम पहले से बनी हुई सम्पत्ति से हटाकर अपना नाम रख देना। शामिल यह रहा है कि जनोपयोगी और जनहित की सम्पत्ति का निर्माण कराना और उसे देश के लिये समर्पित और देशसेवा में विशेष योगदान रखने वाले व्यक्ति के नाम से लोकार्पित करना।

हाँ हिटलर का अपवाद ज़रूर है। उसने अपने जीते जी स्टेडियम का नाम बदल कर अपने नाम पर रखा। अपने देश मे तो परंपरा से हटने पर मायावती की जमकर आलोचना हुई है। बेहतर होता कि कोई नई सम्पत्ति बनाकर खुलेआम कोई नाम रख दिया जाता। शौक ही पूरा करना मकसद हो तो हो जाता।

आजादी के बाद 1947 से 1958 तक देश के शिक्षा मन्त्री रहे मौलाना आज़ाद और साथ में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे। मौलाना आज़ाद का जन्म नाम सैय्यद गुलाम मुहियुद्दीन अहमद बिन खैरुद्दीन अल हुसैनी था। बड़ा लम्बा नाम था न? खैर, मेरा लेख उनके नाम व जीवन परिचय पर नहीं वरन उनके द्वारा किए गए एक उद्घाटन और उस उपलक्ष्य में दिये गए भाषण पर है। 1953 में भोपाल रियासत (1956 में मध्यप्रदेश के आकार लेते वक्त तक भोपाल केंद्र के अधीन एक रियासत था) में सरदार वल्लभ भाई पॉलीटेक्निक कॉलेज का उद्घाटन करने आए थे। उद्घाटन के बाद भाषण देते वक्त उन्होंने एक संस्मरण बताया। “जब हमने भोपाल में इस पॉलीटेक्निक कॉलेज की स्थापना का मन बनाया तब प्रधानमंत्री नेहरू से अनुमति चाही कि इस कॉलेज को आपके नाम पर खोला जाए। जानते हो उनका क्या जवाब था? या तो आप उसका नाम भोपाल पॉलीटेक्निक कीजिये, या नाम ही रखना है तो हाल ही में हमने हमारे सबसे प्रिय साथी वल्लभ भाई को खोया है उनका नाम दीजिए। मैं जीवित हूँ और अपने नाम पर ही कोई संस्थान खोलूँ ऐसा कैसे? वल्लभ भाई के प्रति उनका यह प्रेम और सिद्धांतों के प्रति ऐसी दृढ़निश्चयी सोच देखकर आनन्द आ गया।”

उपरोक्त बातें 2013 में भोपाल के दैनिक भास्कर में इस पॉलीटेक्निक कॉलेज के 60वें स्थापना दिवस के उपलक्ष्य पर एक आर्टिकल में छपा था। आज भी यह बात मुझे याद है। वैसे इससे एक बात और पता चलती है कि नेहरू या काँग्रेस ने कभी सरदार पटेल को भुलाया नहीं बल्कि उनके नाम को रोशन ही किया, बस इन्दिरा के सरदार पटेल की जयंती के दिन ही देहान्त के बाद उनकी चर्चा करना छोड़ दिया। 

इस देश में कपिल देव, गावस्कर व तेंदुलकर के नाम पर कितने क्रिकेट स्टेडियम है? इस देश मे ध्यानचंद के नाम पर कितने हॉकी स्टेडियम है? इस देश मे पीटी उषा के नाम पर कितने ट्रेक एंड फील्ड है?नही मालूम न ।

हॉस्पिटल ,स्कूल से लेकर तमाम यूटिलिटी बिल्डिंग के नाम कितने डॉक्टर और टीचर्स के नाम पर रखे गए है ।आप उंगली पर गिन सकते है इस देश के हर सेक्टर के दिग्गज लोगो का नाम पर आपको गिनती के प्रतिष्ठान मिलेंगे । इसका एक कारण है की इस देश के नेता अपने नागरिकों को इस लायक ही नही समझते कि उनके नाम पर कोई भवन या स्टेडियम का नाम रख दे क्योंकि उनकी नजर में वो ऐसे गुलाम है जो झक मार कर उनका आदेश मांनेगे और नेता लोकतंत्र की आड़ में राजतंत्र ही चलाएंगे।

आजादी मिली तो नेहरू गांधी फैमिली महात्मा गाँधी के मना करने के बावजूद नामकरण का भूत चढ़ गया ।एयरपोर्ट, सड़क, पार्क, मेट्रो चौक, ट्रस्ट सबका नाम परिवार पर कर मारा ।  70 और 80 के दशक विपक्ष को लगता था कहीं देश का नाम इंडिया की जगह इंदिरा या हिंदुस्तान की ‘राजीवस्थान’ न हो जाए। फिर 1999 में भाजपा यह सब बदलने का बोलकर आई । बोली व्यक्ति से बड़ा दल और दल से बड़ा देश है खुद मोदी  अपने आप को व्यक्तिपूजा के घोर विरोधी बोलते थे किसी ने मंदिर बना दिया तो उसको मना कर दिया और खुद को निष्काम योगी मानकर दिन रात नेहरू और गाँधी फैमिली को गरियाते रहते है लेकिन वो इसके सबसे बड़े समर्थक निकले। और विरोधी कहते हैं काँग्रेस ने सिर्फ परिवार के नाम पर संस्थानें बनाईं हैं। तनिक पड़ताल तो करिये बंधुओं, काँग्रेस द्वारा हज़ारों निर्माणों में सरदार पटेल समेत अन्य विभूतियों के नाम भी मिल जाएंगे और 70 वर्षों का हिसाब भी मिल जाएगा।

 मोदी  ने स्टेडियम को अपने नाम क्या किया, तीन दिन से सोशल मीडिया में उनका बचाव करते भक्त कांग्रेस के नेताओं के नामों पर स्थापित संस्थाओं की लिस्ट जारी करने में लग गये हैं। यह भी आरोप दिख रहे हैं कि नेहरू और इंदिरा ने प्रधानमंत्री रहते स्वयं को भारत रत्न दे दिया था। 

भारत रत्न इंदिरा जी को पाकिस्तान पर ऐतिहासिक सैन्य विजय प्राप्त करने तथा बांग्लादेश के नाम से एक नये राष्ट्र के निर्माण में उनकी भूमिका की पृष्ठभूमि में 1971 में दिया गया था। प॔. जवाहरलाल नेहरू को यह सम्मान 1955 में दिया गया था। तकनीकी रूप से आरोप लगाया जा सकता हैं कि उन्होने प्रधानमंत्री के पद का उपयोग कर स्वयं इसे हासिल कर लिया। किन्तु यह सच नहीं होगा। नेहरू को यह  सम्मान स्वतंत्रता आंदोलन तथा उसके बाद देश के नव-निर्माण में उनकी भूमिका के कारण दिया गया था। और वे अकेले नहीं थे। उनके साथ डाॅ. राजेंद्र प्रसाद, डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डाॅ. ज़ाकिर हुसैन, गोविन्द वल्लभ पन्त, डाॅ. बिधान चन्द्र राॅय जैसे लोगों को भी भारत रत्न सम्मान दिया गया था। और ये सारे के सारे उस समय राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, गृह मंत्री, मुख्य मंत्री जैसे पदों पर आसीन थे। सिर्फ नेहरू का उल्लेख करना पूर्वाग्रह-ग्रसित माना जाएगा।

भगत सिंह की माता को पंजाब माता की कर सम्मानित किया था पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने। आज़ाद भारत के लोगों की जबान पर क्रांतिकारियों के नाम भी छाए रहे कारण यह रहा कि नेहरू की सोच में संकीर्णता नहीं थी।

गांधी से लेकर दीन दयाल उपाध्याय तक, सभी दलों ने – जिसे जब मौका मिला – नामकरण करने का अवसर लपक कर हथियाया। सभी नामों की लिस्ट बनाना समय की बर्बादी है। आमतौर पर नामकरण एक तरह से नेताओं के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का तरीका रहा है। उन व्यक्तियों के योगदान को रेखांकित करने का तरीका।कलकत्ता को दिल्ली से जोड़ने वाले नेशनल हाईवे क्र. 2 को अंग्रेज़ ग्रैन्ड ट्रंक (जी.टी.) रोड कहते थे। समय समय पर इसे उत्तरपथ, फौजों के कारण जरनैली सड़क और सड़क-ए-आज़म का नाम भी मिला। एक समय काबुल तक पहुंचाने वाली इस सड़क को आज़ादी के बाद इसके निर्माता के नाम पर शेरशाह सूरी मार्ग कर दिया गया था।

बिला-शक अपवाद भी रहे हैं – हर काल और हर क्षेत्र में, हर राजनैतिक दल के दौर में। दूध का धुला कोई नहीं है।

 दो बातें अवश्य काॅमन रहीं – नामकरण किसी पुराने नाम को मिटाकर नहीं किया गया और दूसरा, सारे नामकरण नेताओं की स्मृति में किये गये – मरणोपरांत। भारतीय संस्कृति में किसी के जीते जी में इस तरह के नामकरण करना (या फोटो पर माला अर्पण करना) अशुभ माना जाता रहा है (या कम से कम अशोभनीय या अवांछित)।  पहला चर्चित अपवाद मायावती जी रहीं। दूसरे अब मोदी बने हें। बीच में एक कम चर्चित अपवाद और आया था जब छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार ने हर ग्राम पंचायत में दो-दो लाख की राशि दे कर ‘अटल चौक’ बनवा दिये थे। अटल बिहारी बाजपेई तब तक जीवित और स्वस्थ थे। 

भारत में स्थानों/संस्थाओं के साथ नेताओं के नाम चस्पा करने की परम्परा पुरानी रही है। अंग्रेज (क्वीन) विक्टोरिया और राजाओं (किंग जाॅर्ज और एडवर्ड जैसे) के नामों का उपयोग करते थे। अब अधिकांश नाम बदल दिये गये हैं वह अलग बात है। 

दलितों अति पिछड़ों ,महिलाओं का सम्मान क्या होता है यह देश को छ्त्तीसगढ़ से सीखना चाहिए। जब देश का प्रधानमंत्री एक अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम का नाम खुद के नाम पर रख रहा था ठीक उसके 24 घण्टे बाद छ्त्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पहली बार घरेलू उड़ानों के लिए तैयार बिलासपुर एयरपोर्ट का नाम बिलासा देवी केवट एयरपोर्ट रख दिया। यह देश भर के मल्लाहों का सम्मान है निषाद समुदाय का सम्मान है, महिलाओं का सम्मान है।

मैंने सुना था आप जिस आदमी का सबसे ज्यादा विरोध करते हो एक दिन उसके जैसे हो जाते हो । नेहरू और गाँधी को कोसते कोसते कब मोदी उनके जैसे हो गए खुद बीजेपी के ज़मीनी कार्यकताओं को भी पता नही चला।इस देश का सबसे ज्यादा नुकसान पूंजीवाद और सामंतवाद ने नही लेकिन व्यक्तिवाद ने किया है। यह देश समाजवाद को किनारा करके पूंजीवाद की सारी सीमा लाँघ करके व्यक्तिवाद की और बढ़ चला है । अगर आपको अभी भी लोकतंत्र लग रहा है तो नींद से जग जाइये। तो “मित्रों” साहब के राज में बीजेपी, कांग्रेस, संस्था,मुद्दा,नेता,जनता सब हारेंगे और केवल व्यक्तिवाद जीतेगा।

उस कोहराम की भी कल्पना की जा सकती है अगर कांग्रेस की सरकार होती और किसी का नाम हटाकर कांग्रेस के किसी नेतृत्व का नाम रख दिया गया होता वह भी जीवित व्यक्ति।

जिसका अपना कोई शानदार औऱ पसंदीदा अतीत नहीं रहा , जिसके पास देश को गढ़ने के लिए वर्तमान की कोई रूपरेखा नहीं है, जिसके पास देश औऱ देशवासियों के भविष्य के नाम पर कुछ चंद उद्योगपतियों के नाम की आर्थिक ग़ुलामी है। 

मोदी जी, ख़ुद बनाइए स्कूल अस्पताल, यूनिवर्सिटी, उद्योग, शहर ,रेलवे, पोत आदि आदि औऱ फिर अपना नाम दर्ज कीजिए उनपर स्वर्ण अक्षरों में । हालांकि तब भी पैसा तो अवाम क़ा ही लगेगा। जैसे क़ि नेहरू, इन्दिरा औऱ राजीव के समय लगा था । लेकिन बनाइए तो ।

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि स्टेडियम की क्षमता बढ़ाया जाना सुखद, सकारात्मक और गर्व की बात है। सरकार इसके लिए खुले दिल से साधुवाद की पात्र है।

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