-राज्यसभा में प्रधानमंत्री के रोने की चर्चा सब कर रहे हैं पर प्रधानमंत्री भावुक क्यों हुए?ये कोई नही जानता..
– मोदी जी भावुक होना अच्छी बात है लेकिन विषय सही चुनना भी ज़रूरी है ।

अशोक कुमार कौशिक 

क्या बात है बहुत रूलम रूलाई चल रही है? ‘रूदनजीवी’ कब से हो गए आप? 2002 में नहीं रोये, राम मंदिर आंदोलन के चलते मारे गए लोगों के लिए नहीं रोये, किसानों की मौतों पर नहीं रोये, कश्मीर को जेल बनाकर नहीं रोये, पूर्वी दिल्ली के दंगों के वक्त नहीं रोये, नोटबंदी में लाइन में लगकर मरने वालों के लिए नहीं रोये, लॉकडाउन में मजदूरों की बेबसी पर नहीं रोये। 

जब रोना था, जब नहीं रोये। रोये भी तो एक सांसद की विदाई के वक्त! गुलाम नबी आजाद ‘जी’ कहीं नहीं जा रहे हैं। दोबारा चुनकर वापस आ जाएंगे। अगर नबी ‘जी’ से इतनी ही मोहब्बत है तो भाजपा से उन्हें राज्यसभा ले आइए ना। मगर  आप ऐसा नहीं करेंगे। पार्टी लाइन से आप अलग चल ही नहीं सकते। 

इतनी भावुकता कहां से लाते हैं आप? अरे साहब! ये देश ऐसा ही है। सड़क पर पड़े इंसान की मदद करते हुए कोई यह नहीं देखता कि उसका धर्म क्या है? जाति क्या है? देखा नहीं लॉकडाउन के वक्त जब अपने ही अपने को कंधा देने से कतरा गए थे, किसने जनाजों को कंधा दिया था? 

दरअसल राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद का कार्यकाल खत्म हो रहा है, इसे लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छोटा सा भाषण दिया। पीएम मोदी गुलाम नबी आजाद से जुड़ा एक पुराना वाक्या याद कर भावुक भी हो गए। बता दें कि पीएम मोदी ने गुलाम नबी आजाद के बारे में बात करते हुए कहा कि गुलाम नबी जी जब मुख्यमंत्री थे, तो मैं भी एक राज्य का मुख्यमंत्री था। हमारी बहुत गहरी निकटता रही. एक बार गुजरात के कुछ यात्रियों पर आतंकवादियों ने हमला कर दिया, 8 लोग उसमें मारे गए। सबसे पहले गुलाम नबी जी का मुझे फोन आया। उनके आंसू रुक नहीं रहे थे। उस समय प्रणव मुखर्जी जी रक्षा मंत्री थे। मैंने उनसे कहा कि अगर मृतक शरीरों को लाने के लिए सेना का हवाई जहाज मिल जाए तो उन्होंने कहा कि चिंता मत करिए, मैं करता हूं व्यवस्था।

गुलाम नबी आजाद के बारे में बात करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा, “गुलाम नबी जी उस रात को एयरपोर्ट पर थे. उन्होंने मुझे फोन किया और जैसे अपने परिवार के सदस्य की चिंता करते हैं, वैसी चिंता वो कर रहे थे. सत्ता जीवन में आते रहती है लेकिन उसे कैसे पचाना ये कोई गुलाम जी से सीखे. मेरे लिए वो बड़ा भावुक पल था।दूसरे दिन सुबह फोन आया। मोदी जी सब पहुंच गए। इसलिए एक मित्र के रूप में गुलाम नबी जी का घटना और अनुभव के आधार पर मैं आदर करता हूं। मुझे पूरा विश्वास है कि उनकी सौम्यता, नम्रता, देश के लिए कुछ कर गुजरने की कामना उन्हें चैन से बैठने नहीं देगी. देश उनके अनुभव से लाभान्वित होगा।” 

आदमी तब रोता है जब हालात उसके हाथ से बाहर निकल जाते है और वो बेबस हो जाता है, वो चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता तो वो रो देता है । भारतीय संस्कृति में मनुष्य के रोने को बुरा नहीं समझा जाता या यह कह लीजिए कि किसी भी सभ्य समाज में भावुकता को इंसानियत की निशानी समझा जाता है । 

मर्यादा पुरुषोत्तम राम वनवास के कारण नहीं रोए लेकिन जब सीता जी का छल से रावण ने हरण कर लिया तो सीता जी के वियोग में भगवान राम खूब रोये । यह पति का अपनी पत्नी के प्रति प्यार और प्रेमी का अपनी प्रेयसी से बिछड़ने की तड़प थी। राम जी बेबस होकर रो रहे थे क्यूँकि उन्हें यह भी पता नहीं था कि सीता जी कहाँ चली गयी । जब उन्हें पता चला कि सीता जी समुंदर पार है और रावण ने धोखे से छल से उनका हरण कर लिया है , तब वो रोये नहीं बल्कि सीता जी को वापस लाने की मुहिम में लग गए और रावण को युद्ध में हराकर सीता जी वापस ले आए । 

श्री कृष्ण सुदामा की दरिद्रता को देखकर रोए और इतना रोए कि आँसुओ से सुदामा के पैर धो दिए । यह मित्रता का भाव था । श्री कृष्ण इसलिए रोये क्यूँकि उन्हें एहसास हुआ कि वो एक आलीशान ज़िंदगी जी रहे हैं , मथुरा के राजा है और उनका मित्र सुदामा फटेहाल है । वो बेबस थे क्यूँकि पुराने दिन वापस नहीं ला सकते थे लेकिन उन्होंने केवल रोकर काम नहीं चलाया , उन्होंने सुदामा को इतना धन दिया कि सुदामा की आगे की कई नस्लों में कोई दरिद्र नहीं रहा । 

सम्राट अशोक कलिंगा की जीत के बाद रोये । वो लाखों लोगों की मौत पर रो रहे थे , उन्हें महसूस हुआ कि इतनी मारकाट से फ़ायदा क्या हुआ ? वो बेबस होकर रोये थे क्यूँकि मरे हुए लोगों को ज़िंदा नहीं कर सकते थे उन्होंने रोने के बाद प्रण किया कि आगे कोई युद्ध नहीं करेंगे और बाक़ी जीवन बुद्ध धर्म की शरण में गुज़ार दिया । 

महात्मा गांधी चंपारण के किसानो की दरिद्रता देखकर रोये, वो अपनी बेबसी पर रोये कि इतने समय से यह किसान दुखी थे और वो इनसे बेख़बर थे । उन्होंने चम्पारण सत्याग्रह करके किसानो को दुःख से निजात दिलायी । 

पंडित नेहरू नेताजी सुभाषचंद्र बोस की अचानक मृत्यु की खबर सुनकर बहुत रोये । वो रोये क्यूँकि उन्हें आज़ादी क़रीब दिख रही थी और आज़ादी का आशिक़ सुभाष उस आज़ादी को अब देख नहीं पाएगा । नेहरू बेबस थे , नेताजी को वापस नहीं ला सकते थे लेकिन आजीवन नेताजी के परिवार के पालन पोषण में समस्या ना हो इसके लिए बिना किसी को बताए पैसे भेजते रहे । 

महात्मा गांधी की हत्या पर लोहपुरुष सरदार पटेल रोये , वो बेबस होकर रो रहे थे , उनके गृहमंत्री रहते गांधी जी की हत्या हो गयी , इसकी उन्हें पीड़ा थी । उन्होंने संघ पर प्रतिबंध लगाकर सुनिश्चित किया कि आगे से किसी की ऐसे हत्या ना हो । 

संसद में योगी जी रोये , वो बेबस थे , उन्हें डर था कि सपा सरकार में उनका एंकाउंटर या हत्या हो जाएगी । उन्होंने ख़ुद को मज़बूत किया और आज प्रदेश के मुख्यमंत्री है और उनके शासन में एंकाउंटर का रिकार्ड बन चुका है ।

राकेश टिकेत रोये , बेबस होकर रोये । इतने दिन की महनत से जो आंदोलन खड़ा किया था , उसे ख़त्म होता देख रहे थे । वो देख रहे थे कि उनके साथ जो किसान है वो उनकी गिरफ़्तारी के बाद बहुत पिटेंगे , यहाँ गुंडई का नंगा नाच होगा । उन्होंने रोने के बाद स्टैंड लिया कि वो गिरफ़्तारी नहीं देंगे , चाहे कुछ हो जाये , उनके इस स्टैंड का ही परिणाम है कि आज किसान आंदोलन इस मुक़ाम पर है कि देश विदेश के बड़े बड़े सिलेब्रिटी इसको इग्नोर नहीं कर पा रहे हैं और टिकेत अब आंदोलन के प्रमुख चहरा बन गए हैं ।

मोदी जी चार बार रोये लेकिन एक बार भी बेबस होकर नहीं रोये । एक बार भी उन्होंने रोने के बाद उन हालात को सुधारने में या ठीक करने में कोई कदम नहीं उठाया । पहली बार वो NDA के प्रधानमंत्री के प्रत्याशी बनने पर आडवाणी जी के लिए भावुक होकर रोये । आडवाणी जी की प्रधानमंत्री बनने की इच्छा को पूरा देश जानता है , मोदी जी चाहते तो उनकी इच्छा पूरी कर सकते थे लेकिन नहीं की। प्रधानमंत्री पद ना सही उन्हें राष्ट्रपति बनवा देते , किसी प्रदेश का राज्यपाल ही बना देते , कोई पद ना सही सम्मान ही दे देते , वो भी नहीं दिया ।

मोदी जी दूसरी बार ज़ुकरबार्ग से बात करते हुए अपनी माताजी जी की निर्धनता , उनकी तकलीफ़ को याद करके रोये लेकिन उसके बाद भी अपनी माताजी को अपने साथ प्रधानमंत्री निवास में नहीं लाए । जिस माँ ने उन्हें बर्तन माँझकर पाला पोसा , उस माँ को बुढ़ापे में अपने साथ ना रखकर मोदी जी देश और दुनिया को कौन सा संदेश दे रहे हैं ।

मोदी जी तीसरी बार नोटबंदी पर रोए थे , कुछ ही दिन पहले उनका नोटबंदी पर जापान में दिया गया एतिहासिक भाषण सब देख चुके थे , सबको अंदाज़ा था कि उन्हें लोगों की तकलीफ़ से कितनी तकलीफ़ है । फिर भी मोदी जी के हाथ में था कि नोटबंदी का फ़ैसला वापस लेकर जनता को राहत दे सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया ।

अब चौथी बार वो ग़ुलाम नबी आज़ाद के रिटायर होने पर भावुक होकर रोए है। ग़ुलाम नबी आज़ाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता है , वो फिर से सांसद बन सकते है , मोदी जी चाहे तो उन्हें भाजपा से किसी भी प्रदेश की राज्य सभा सीट से भेज सकते हैं , भाजपा से ना भेजना चाहे तो राष्ट्रपति से नॉमिनेट करा सकते है फिर इस पर भावुक होने की ज़रूरत क्या थी ?? 

मोदी जी भावुक होना अच्छी बात है । भारत के लोग भावुकता प्रेमी हैं लेकिन मूर्ख नहीं है । वो भावुकता को भी समझते हैं और भावुकता की आड़ में की जाने वाली नौटंकी को भी । ग़ुलाम नबी आज़ाद का रिटायरमेंट भावुकता का विषय नहीं है , उत्तराखंड की तबाही भावुकता का विषय है जिस तबाही को नज़र अन्दाज़ करके आप असम और बंगाल का चुनावी प्रचार कर रहे हैं । किसान आंदोलन में किसानो की शहादत भावुकता का विषय है , जिन्हें आप श्रद्धांजलि देने तक से परहेज़ कर रहे हैं । लाखों किसानो का सड़क पर सर्द रातों में बैठना भावुकता का विषय है जिस पर आप बात करने तक को तैयार नहीं है । चीन का भारत की ज़मीन पर अतिक्रमण भावुकता का विषय है जिसे आप चुप होकर बर्दाश्त कर रहे हैं । 

आप का रोना ठीक नहीं है। जब राजा ही रोने लगे तो प्रजा कहां जाएगी साहेब? आप तो उसे ठीक से रोने भी नहीं देते। अगर कोई रोता है तो आपका आईटी सेल उसे टुकड़े-टुकड़े गैंग, देश विरोधी, पाकिस्तान परस्त, खालिस्तानी बता देता है। कुछ दे नहीं सकते तो कम से कम रोने की आजादी तो दे दीजिए साहेब। 

आपको तो कुछ भी कहने की आजादी है। आप तो ‘मन की बात’ की कह कर अपना दिल हल्का कर लेते हैं। आप हंस सकते हैं, दूसरों पर कटाक्ष कर सकते हैं, रो भी सकते हैं। दूसरा ऐसा करे तो ईडी, सीबीआई पीछे लग जाती है साहेब। आपको तो पता ही होगा अभिसार शर्मा और न्यूज क्लिक के दफ्तरों पर ईडी ने छापे डाले  हैं। वे भी तो अपनी बात कह रहे हैं। कहने दीजिए न साहेब। अपनी बात कहना लोकतंत्र का हिस्सा है। कहीं ऐसा तो नहीं आप भी मानते हैं कि देश में कुछ ज्यादा ही लोकतंत्र आ गया है?