प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इन आंसुओं की किसानों को बहुत जरूरत है

-कमलेश भारतीय

राज्यसभा से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नवी आजाद सहित जम्मू कश्मीर के अन्य राज्यसभा सदस्यों की विदाई पंद्रह फरवरी को हो रही है । इसी उपलक्ष्य में राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें विदाई दी और भावुक हो कर कहा कि आजाद उनके अच्छे दोस्तों में हैं । अब बारी गुलाम नवी आजाद की आई तो वे भी भावुक हुए बिना न रहे ।

उन्होंने एक खरी बात बताई कि वे उन चंद खुशकिस्मत मुसलमानों में हैं जो कभी पाकिस्तान नहीं गये । वे अपने आपको भारतीय मुसलमान मान कर खुश और गर्वित महसूस करते हैं । उन्होंने यह भी बताया कि वे जीवन में पांच बार चिल्ला कर रोये । वे घटनाएं भी बताईं और एक बार फिर भावुक हुए । इतने संवेदनशील यदि राजनेता हो जायें तो शासन प्रशासन भी अपनी पहचान बना ले लेकिन सेवा, सुरक्षा और सहयोग लिखने के बावजूद प्रशासन की संवेदनहीनता की झलकियां मिलती रहती हैं । प्रशासन को और राजनीति को आखिरी व्यक्ति तक सोचने की जरूरत है । इसी का नाम कभी अंत्योदय किया गया ।

इतनी भावुकता के बावजूद जिस कांग्रेस ने इतना मान/सम्मान दिया उसी कांग्रेस के प्रति भी भावुक होना चाहिए था । जिसने कभी मुख्यमंत्री तो कभी विपक्ष के नेता का सम्मान दिया लेकिन अपने आखिरी समय में गुलाम नवी आजाद कांग्रेस हाई कमान पर चिट्ठी युद्ध शुरू कर चुके हैं । उन्हें हरियाणा प्रदेश काग्रेस का प्रभारी बनाया गया और दो बार देखने सुनने का मौका मिला । एक बार जब कांग्रेस की बस लेकर निकले थे और हांसी आए थे । वे सबसे पहली सीट पर बैठे थे एक हैडमास्टर की तरह लेकिन वे गुटों में बिखरी कांग्रेस को एकजुट नहीं कर पाये । कुलदीप विश्नोई ही हिसार हांसी में बस में सवार नहीं हुए थे । नवीन जिंदल आए थे लेकिन लोकसभा चुनाव लड़ने से विनम्रता से इंकार कर दिया था ।

दूसरा मौका आजाद को सुनने का मिला चंडीगढ़ में हरियाणा कांग्रेस भवन में जब प्रदेशाध्यक्ष के वे सुश्री सैलजा को कार्यभार संभालने आए थे । तब बहुत अच्छी बात कही थी अपने अनुभव से कि मैं तो कहता और सोचता हूं कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद दो तीन साल का ही होना चाहिए । असल में अशोक तंवर के विद्रोह के बाद उनके ये विचार थे । सचमुच किसी को इतना समय नहीं देना चाहिए कि वह अपने आपको पार्टी से ऊपर मानने लगे और यही भूल अशोक तंवर से अनजाने में हुई ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इन आंसुओं की किसानों को बहुत जरूरत है । वे किसानों के लिए भी कुछ भावुक हों तो संभवतः किसान आंदोलन के बारे में गंभीरता से सोचें और इसे समाप्त करवाने की दिशा में कदम उठायें ।

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