जिला बचाओ संघर्ष समिति ने पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के नाम  सत्र न्यायालय न्यायाधीश नारनौल को ज्ञापन सौंपा। 
— जिला बार एसोसिएशन के अधिवक्ता जुलूस के रूप में उपायुक्त नारनौल के कैंप कार्यालय पहुंचे।
– उपायुक्त को ज्ञापन देने के बाद लोग जुलूस की शक्ल में आजाद चौक पहुंचे।
– सांसद चौधरी धर्मवीर सिंह से मुलाकात कर हालात बता ज्ञापन दिया

अशोक कुमार कौशिक

 नारनौल । आज को जिला बार एसोसिएशन नारनौल द्वारा संगठित संघ जिला बचाओ संघर्ष समिति ने माननीय पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के नाम से प्रेषित ज्ञापन जिला सत्र न्यायालय न्यायाधीश नारनौल को उनके कार्यालय में सौंपा। उसके उपरांत जिला बार एसोसिएशन के सभी अधिवक्ता एक जुलूस की शक्ल में जिला उपायुक्त नारनौल के कैंप कार्यालय पहुंचे। उनके साथ शहर नारनौल, नांगल चौधरी, अटेली व  निजामपुर के सभी व्यापारिक प्रतिष्ठान के प्रतिनिधि व संस्थानों के पदाधिकारी भी जुलूस में सम्मिलित हुए और उन्होंने भी इस संघर्ष समिति के माध्यम से जिला बचाओ संघर्ष को अपना समर्थन दिया। जिला उपायुक्त को ज्ञापन देने के उपरांत सभी लोग व अधिवक्ता गण एक जुलूस की शक्ल में आजाद चौक नारनौल पहुंचे और वहां उन्होंने अपने अपने उद्बोधन देखकर वापस जिला न्यायालय में आए। 

जुलूस की प्रक्रिया बहुत ही शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुई। जिसमें पूरे शहर व आसपास के क्षेत्र की जनता के मध्य सरकार के इस निर्णय के विरोध में बहुत भारी आक्रोश दिखाई दिया। सभी लोगों ने सरकार के इस निर्णय की आलोचना की जिसके माध्यम से भौगोलिक दृष्टि से इस छोटे से जिले को विभाजन की तरफ ले जाया जा रहा है और जिले के निवासियों का आपसी भाईचारा बिगाड़ कर उन्हें एक अलगाव की स्थिति में धकेला जा रहा है। सरकार का यह निर्णय एक अपवाद में केवल मात्र एक उपमंडल के लिए है। जिसकी वजह से आम जनता में और अधिक विरोध दिखाई दे रहा है क्योंकि सरकार द्वारा पूरे प्रांत के लिए वह 70 से अधिक उप मंडलों के लिए कोई एक समान पॉलिसी नहीं बनाई जा रही है और ना ही एक समान सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही। 

इसी जिला बचाओ संघर्ष समिति को समर्थन देने के लिए श्री सैनी सभा नारनौल द्वारा अपने प्रांगण रेवाड़ी रोड नारनौल में एक धार्मिक व सामाजिक संगठनों की बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक की अध्यक्षता सैनी सभा के प्रधान भगवानदास सैनी ने की जिसमें जिला मुख्यालय नारनौल में कार्यरत लगभग 23 विभिन्न समाजों के प्रधानों ने भाग लिया और इस बैठक में भी सरकार के द्वारा जिले के विभाजन की तरफ बनाए जा रहे कदम का भरपूर विरोध किया गया और जिले का नाम नारनौल नामकरण किए जाने के लिए संघर्ष जारी रखने व जिले की वर्तमान भौगोलिक स्थिति के अंतर्गत वर्तमान में चल रही न्यायिक व प्रशासनिक व्यवस्था को यथास्थिति में चलाए जाने के लिए संघर्ष का बिगुल बजा है। 

इसी के साथ साथ जिला बार एसोसिएशन के प्रधान अशोक यादव के नेतृत्व में जिला बचाओ संघर्ष समिति के एक प्रतिनिधिमंडल ने शहर में आए हुए सांसद चौधरी धर्मवीर सिंह से मुलाकात की और उन्हें सारे हालात बताएं और अपना ज्ञापन भी प्रस्तुत किया जिस पर उन्होंने सकारात्मक कार्रवाई के लिए आश्वासन दिया है कि वह सरकार तक इस क्षेत्र के निवासियों की भावनाएं पहुंचाएंगे। 

जिला बचाओ संघर्ष समिति द्वारा शुरू किया गया अभियान दिन प्रतिदिन जोर पकड़ता जा रहा है और इसे समाज के विभिन्न वर्गों तथा सरपंच एसोसिएशन, नंबरदार एसोसिएशन, जिला परिषद के सदस्यों, पंचायत समिति के चेयरमैन एवं सदस्यों सभी जनप्रतिनिधियों,  इंडस्ट्रियल एसोसिएशन, नीजि स्कूल एसोसिएशन द्वारा एक उचित और आवश्यक कदम बताते हुए समर्थन किया है ताकि जिले का जिले में आपस में सामंजस्य व भाईचारा बना रह सके। किसी के साथ कोई असमानता का व्यवहार ना हो । पूरे जिले में एक समान एक साथ सबका विकास हो सके। अपवाद के रूप में जो सरकार द्वारा पत्र जारी किए गए हैं उन्हें निरस्त कराने के लिए यह संघर्ष तब तक जारी रहेगा ।

जब तक सरकार इन्हें वापस नहीं ले और नारनौल का जिले का नामकरण जिला नारनौल ना हो जाए इसी संघर्ष की प्रक्रिया में कल  9 फरवरी मंगलवार को नारनौल, मंडीअटेली, नांगल चौधरी व निजामपुर के सभी बाजार व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद रहेंगे। निजी शिक्षण संस्थान भी बंद रहेंगे। सभी क्षेत्रों वर्गों संस्थानों से इस जिला बचाओ संघर्ष समिति को दिन-प्रतिदिन अधिक से अधिक समर्थन मिल रहा है ।जिसके लिए संघर्ष समिति के सदस्यों ने आम जनता का अपने हृदय से आभार प्रकट किया और यह आश्वासन दिया है कि वह जनता द्वारा दिखाए गए विश्वास को कायम रखेंगे और अंतिम क्षण तक अपना संघर्ष जारी रखेंगे।

*जिला बचाओ संघर्ष का सच…*

उधर नीरज संघी प्रधान, रिटेल क्लॉथ मर्चेंट एसोसिएशन, नारनौल का कहना है की वह जिला मुख्यालय नारनौल में रखने का पक्षधर हूँ। वह जिला मुख्यालय महेंद्रगढ़ जाने का विरोध करेंगे, लेकिन मेरी दुकान या बाजार बंद करके नहीं, बल्कि अपनी कमीज पर विरोध स्वरूप काला रिबन टांग कर अपना विरोध दर्ज करवाऊंगा। किन्तु एक जिम्मेदार नागरिक व व्यापारी होने के नाते जो जिला बचाने के नाम की मुहिम चली है, उसका सच भी आम जनता व व्यापारियों के सामने आना चाहिए।

उनका आरोप है कि जिला बचाने का संघर्ष, जिला मुख्यालय बचाने के लिए नहीं अपितु कुछ ही व्यक्तियों की आमदनी बचाने का, उनका कामधंधा बचाने का संघर्ष है। कुछ छपास रोग से पीड़ित छुटभैये नेताओं की छपास की खाज मिटाने का व अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने का संघर्ष है। यदि इन लोगों की जिला बचाने की मंशा होती तो ये लोग जिस दिन महेंद्रगढ़ के वकीलों ने तम्बू ताना था, उसके दूसरे दिन ही नारनौल में तम्बू तान देते। किन्तु जब जिला बनाने के संघर्ष के दौरान, महेंद्रगढ़ के कुछ वकीलों पर तहसीलदार ने पहली एफआईआर दर्ज करवाई थी, उस एफआईआर के विरोध में व महेंद्रगढ़ के वकीलों के समर्थन में, नारनौल की बार एसोसिएशन ने एक दिन कोर्ट का बहिष्कार किया था। उसके बाद महेंद्रगढ़ के वकीलों का संघर्ष चलता रहा, उन्होंने बाजार बंद करवाये, रोड़ जाम किया, लेकिन उसके विरोध में नारनौल से कोई स्वर नहीं उठा। ना वकीलों ने उठाया ना ही व्यापारियों ने उठाया। 

करीब दो वर्ष पहले सरकार ने सप्ताह में एक दिन जिला उपायुक्त व पुलिस अधीक्षक को महेंद्रगढ़ जाने के आदेश दिए और फैमिलीकोर्ट शुरू किया गया, लेकिन किसी ने विरोध में एक नारा नहीं लगाया। फिर अचानक सरकार एक चिठ्ठी हाईकोर्ट को लिख कर महेंद्रगढ़ में एडीजे बैठाने की स्थिति के बारे में पूछती है तो उसके अगले ही दिन जिला बचाओ संघर्ष समिति का गठन वकीलों द्वारा कर दिया जाता है। यदि आम जनता इसे समझने का प्रयास करे तो वो अपना दिमाग लगाए की यह संघर्ष समिति उस दिन ही गठीत क्यों नहीं की गई, जिस दिन महेंद्रगढ़ वाले वकील व सामाजिक संघठन, महेंद्रगढ़ को जिला बनाने की या महेंद्रगढ़ में मुख्यालय स्थापित करने की मांग उठा रहे थे। जब कुछ लोगों के काम व आमदनी पर कुल्हाड़ी चलने की नौबत आई तो आंदोलन की रूपरेखा तैयार की गई।

जब 5 फरवरी को सरकार की एक चिट्ठी और आती है कि सप्ताह में एक दिन जिले के अधिकारी महेंद्रगढ़ बैठेंगे तो उस चिठ्ठी को जनता के सामने इस अर्थ में दर्शाया जा रहा है कि अब जिला मुख्यालय को खतरा हो गया है।  आज एक दिन अधिकारी बैठने का आदेश हुआ है, फिर पूरा मुख्यालय ही महेंद्रगढ़ चला जायेगा। व्यापार डूब जाएगा। व्यापारी खत्म हो जाएंगे। 

इसी कड़ी में वे व्यापारी नेता, जिनका ना कोई व्यापार है व ना कोई प्रतिष्ठान है, वो रोज वकीलों के संघर्ष स्थल पर जाने लगे। आज उनमें से एक व्यापारी नेता को वकीलों ने अपनी संघर्ष समिति का सदस्य बना दिया। उस कथित व्यापारी नेता ने बिना किसी व्यापारी की सहमति के एक दो वकीलों की मौजूदगी में गत मंगलवार 9 फरवरी को बाजार बंद करवाने की घोषणा कर दी। अभी सब व्यापारी कोरोना महामारी की मंदी से उबरे भी नहीं हैं, की ये बन्द और थोपा जा रहा है। 

नारनौल के बाजार में ज्यादातर दुकाने कपड़ों व जूतों की हैं। 13 दिसम्बर के बाद ब्याह सावे बन्द हो जाने के कारण बाजार में काम ठप्प सा था। करीब सवा दो महीने के लंबे अंतराल के बाद 16 फरवरी को साहे खुल रहे हैं, जिनके लग्न टीके 11 फरवरी से शुरू हो जाने हैं। ऐसे में वो कथित व्यापारी नेता ना केवल व्यापारियों का नुकसान करवाने पर तुले हैं, अपितु शादी ब्याह वाले परिवारों की मुश्किलें भी बढ़ाने पर तुले हैं। उन्होंने कहा कि वह फिर कह रहे है कि वह जिला मुख्यालय नारनौल में रखने का पक्षधर हूँ, लेकिन एक व्यापारी नेता होने के नाते मंदी के इस दौर में व्यापारियों के हितों के साथ खड़ा हूँ। ध्यान रहे व्यापारी जनता की परेशानियों को बढ़ाता नहीं है, बल्कि उनकी परेशानियों का हल निकालने के लिए ततपर रहता है।इसलिए जनता इस सच को पहचाने ये जिला बचाने का संघर्ष नहीं है। ये व्यक्तिनिष्ठ आंदोलन है, जो कुछ लोगों के हितार्थ ही है। झगड़ा मात्र आमदनी पर कुठाराघात का है। यदि महेंद्रगढ़ में एडीजे बैठाने की सम्भावनाओं पर विचार की चिठ्ठी ना आती तो ये आंदोलन भी नहीं होता ना ही ये संघर्ष समिति बनती। और ना ही किसी कथित व्यापारी नेता को अपनी नेतागिरी चमकाने का मौका मिलता।

उन्होंने आह्वान किया कि व्यापारी भाई मंगलवार को अपनी दुकान प्रतिष्ठान अवश्य खोलें। हाँ जिला मुख्यालय महेंद्रगढ़ ना जाये, इसके लिए विरोध स्वरूप अपनी कमीज पर एक काला रिबन टांग लें। जिससे जिला बचाओ संघर्ष समिति का समर्थन भी हो जाएगा और जिला मुख्यालय महेंद्रगढ़ ना जाने का विरोध भी हो जाएगा।