–  “जिम्मेदारियां” जिंदगी भर पीछे लगी रहती हैं मध्यम वर्ग के, इनके लिए ही कहा है जिसका कोई नहीं किनारा उसका नाम है जीवन धारा.
– ये बड़ा वर्ग है जिसके बारे में कोई बजट नहीं है, कोई सरकार ध्यान नहीं देती, यह अपनी लड़ाई खुद ही लड़े जा रहा है।

अशोक कुमार कौशिक 

जब भी सरकार, मीडिया, विपक्ष बात करते है तो वे उन उन लोग की बात करते है जो कि गरीबी रेखा के नीचे आते है या किसानी करते है। किसानों की बात हर कोई करता है, दिहाड़ी मजदूर की बात हर कोई करता है। मगर आज आपका ध्यान उन लोगो पर भी लाना चाहता हु जो मासिक 5000 से लेकर 30000 तक कमाते है । देश का एक बड़ा हिस्सा जो कि किसानी, दिहाड़ी मजदूरी नहीं करता है मगर उनकी मासिक आय यही होती है । उन पर कोई सरकार कोई मीडिया बात नहीं करती है।

एक उदाहरण से समझिए, एक व्यक्ति जो कि 1960 में जन्म लेता है और आईटीआई, बी. ए. करने के बाद किसी कारखाने में नौकरी करना आरंभ करता है जिसके लिए उसका मेहनताना 250 रुपयों से आरंभ होता है सन् 2005 तक आते आते यह वेतन 5000 तक पहुंच जाता है और 2020 तक यह वेतन 19000 पर अंत लेते हुए व्यक्ति का रिटायरमेंट हो जाता है। इस व्यक्ति के 2 बच्चे है जिसमे से  एक बच्चे ने बी ई किया है और नौकरी की तलाश कर रहा है बड़ी बेटी को शादी हो चुकी है। व्यक्ति को किसी भी प्रकार की पेंशन नहीं मिल पा रही है, बच्चे को नौकरी नहीं मिल रही है तो क्या वह मध्यमवर्गीय है या गरीब?

 इस व्यक्ति जैसे करोड़ों लोग हमारे देश मे रोज़ अपनी परिस्थिति से जूझ रहे है। कोई माली का काम कर रहा है, कोई सुरक्षा कर्मी है, कोई चपरासी है, कोई डाटा एंट्री कर रहा है, कोई सुपरवाइजर है, कोई ड्राईवर है जिनका वेतन 15000 से अधिक नहीं होता है और वे मध्यम वर्ग में आते है। क्या उन्हें कोई अधिकार नहीं है कि वह अच्छा जीवन जिए? जैसे तैसे व्यक्ति अपने जीवन को काट लेता है और बच्चो को थोड़ी अच्छी शिक्षा दिलवा देता है। मगर खुद का घर नहीं बना पाता है, ऐसे कई लोग आपसे नित्य संपर्क में होंगे जिनके चेहरे पर तो हंसी होती है मगर मन में हमेशा डर रहता है। कभी मां बाप के गुजर जाने का, कभी रिश्तेदारों का, कभी बच्चो की फीस का, कभी बेटी की शादी का, कभी बीमारी का, मेरी राय मे यह वर्ग सबसे अधिक शोषित है क्योंकि यह गरीबों की तरह झोपड़ी मे नहीं रहता है, यह सम्मान के साथ किराए के मकान में या छोटे से संयुक्त परिवार एक या दो कमरे वाले मकान में रहना पसंद करता है।

यह एक इतना बड़ा वर्ग है जिसके बारे में कोई बजट ध्यान नहीं दे रहा है, कोई सरकार ध्यान नहीं दे रही है यह वर्ग अपनी लड़ाई खुद ही लड़े जा रहा है। इस वर्ग को गेहूं भी खरीदना पड़ती है और साईकिल भी, इसे गरीबी भी देखना पड़ती है और सबको अपना उच्च स्तर भी बताना पड़ता है। यह वर्ग वह होता है जो पूर्णतया अपने बच्चो के उपर निर्भर करता है कि उसका आगे का जीवन कैसा होगा, अब यह सोचिए की उसके बच्चे पढ़ लिख लिए और उन्हें नौकरी नहीं मिल रही है, मिल रही है तो 8000 रुपयों की, व्यापार के लिए पैसा नहीं है लोन के लिए बैंक मना कर देती है। धीरे धीरे ऐसे करोड़ों परिवार गरीबी रेखा के नीचे आ जाएंगे और हम देखते ही रह जाएंगे। इस वर्ग को बचाना बेहद जरूरी है यह वर्ग किस्तो में टीवी, फ्रिज, मोटरसाईकिल खरीदता है, हर वस्तु पर टैक्स देता है मगर इसका कल्याण कभी नहीं होता है  क्योंकि कोई सरकार इन्हे नहीं पूछती है यह धर्म जाति के आधार पर बटे होते है।

वैसे “मिडिल-क्लास” होना भी किसी वरदान से कम नही है कभी बोरियत नहीं होती । जिंदगी भर कुछ ना कुछ आफत लगी ही रहती है। मिडिल क्लास वालो की स्थिति सबसे दयनीय होती है, न इन्हे तैमूर जैसा बचपन नसीब होता है न अनूप जलोटा जैसा बुढ़ापा,फिर भी अपने आप में उलझते हुऐ व्यस्त रहते है।

मिडिल क्लास होने का भी अपना फायदा है चाहे BMW का भाव बढे या AUDI का या फिर नया i phone लांच हो जाऐ, उन्हें जरा भी फर्क नही पङता। मिडिल क्लास लोगों की आधी जिंदगी तो झड़ते हुए बाल और बढ़ते हुए पेट को रोकने में ही चली जाती है।

इन घरो में पनीर की सब्जी तभी बनती है तो जब दुध गलती से फट जाता है और मिक्स-वेज की सब्ज़ी भी तभी बनती हैं जब रात वाली सब्जी बच जाती है। इनके यहाँ फ्रूटी,कॉल्ड ड्रिंक एक साथ तभी आते है जब घर में कोई बढिया वाला रिश्तेदार आ रहा होता है। मिडिल क्लास वालो के कपङो की तरह खाने वाले चावल की भी तीन वेराईटी होती है । डेली,कैजुवल और पार्टी वाला।छानते समय चायपत्ती को दबा कर लास्ट बून्द तक निचोड़ लेना ही मिडिल क्लास वालो के लिऐ परमसुख की अनुभुति होती है । ये लोग रूम फ्रेशनर का इस्तेमाल नही करते,सीधे अगरबत्ती जला लेते है ।

मिडिल क्लास भारतीय परिवार के घरों में Get together नही होता, यहां ‘सत्यनारायण भगवान की कथा’ होती है । इनका फैमिली बजट इतना सटीक होता है कि सैलरी अगर 31के बजाय 1 या 7 को आये तो गुल्लक फोड़ना पड़ जाता है। 

मिडिल क्लास लोगो की आधी ज़िन्दगी तो “बहुत महँगा है” बोलने में ही निकल जाती है । इनकी “भूख” भी होटल के रेट्स पर डिपेंड करती है दरअसल महंगे होटलों की मेन्यू-बुक में मिडिल क्लास इंसान ‘फूड-आइटम्स’ नहीं बल्कि अपनी “औकात” ढूंढ रहा होता है।

इश्क मोहब्बत तो अमीरो के चोचलें है मिडिल क्लास वाले तो सीधे “ब्याह” करते हैं इनके जीवन में कोई वैलेंटाइन नहीं होता। “जिम्मेदारियां” जिंदगी भर बजरंग-दल सी पीछे लगी रहती हैं । मध्यम वर्गीय दूल्हा दुल्हन भी मंच पर ऐसे बैठे रहते हैं मानो जैसे किसी भारी सदमे में हो।

अमीर शादी के बाद हनीमून पे चले जाते है। मिडिल क्लास लोगो की शादी के बाद टेंन्ट बर्तन वाले ही इनके पीछे पड़ जाते है। मिडिल क्लास बंदे को पर्सनल बेड और रूम भी शादी के बाद ही अलाॅट हो पाता है!

 मिडिल क्लास के बारे में बस ये समझ लो कि जो तेल सर पे लगाते है वही तेल मुंह में भी रगङ लेते है। एक सच्चा मिडिल क्लास आदमी गीजर बंद करके तब तक नहाता रहता है जब तक कि नल से ठंडा पानी आना शुरू ना हो जाए। रूम ठंडा होते ही AC बंद करने वाला मिडिल क्लास आदमी चंदा देने के वक्त नास्तिक हो जाता है और प्रसाद खाने के वक्त आस्तिक । दरअसल मिडिल-क्लास तो चौराहे पर लगी घण्टी के समान है, जिसे लूली-लगंड़ी, अंधी-बहरी, अल्पमत-पूर्णमत हर प्रकार की सरकार पूरा दम से बजाती है।

मिडिल क्लास को आजतक बजट में वही मिला हैं जो अक्सर हम मंदिर में बजाते हैं ( घंटा ) फिर भी हिम्मत करके मिडिल क्लास आदमी पैसा बचाने की बहुत कोशिश करता हैं लेकिन बचा कुछ भी नहीं पाता।हकीकत में मिडिल मैन की हालत पंगत के बीच बैठा हुआ उस आदमी की तरह होता है जिसके पास पूड़ी-सब्जी चाहे इधर से आये,चाहे उधर से, उस तक आते-आते खत्म हो जाता है। मिडिल क्लास के सपने भी लिमिटेड होते है “टंकी भर गई है मोटर बंद करना है”। गैस पर दूध उबल गया है चावल जल गया है इसी टाईप के सपने आते है 

इस वर्ग को बचाना बेहद जरूरी है ताकि इनकी आय में वृद्धि हो, इनके बच्चो का संघर्ष ख़तम हो।

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