– ट्रंप ने ग्रेटा का मजाक उड़ाया था तो ग्रेटा ने अमेरिकी राष्ट्रपति की अकड़ ढीली कर दी थी।
— 6 फ़रवरी चक्का जाम में अगर टारगेटेड हिंसा कराई गई तो विश्व जनमत और भी ख़िलाफ़ हो जाएगा। कहाँ तक एफ़आईआर कराओगे…

अशोक कुमार कौशिक

 सचिन सहित सारी देशी सेलिब्रिटी बोल रही है किसानों के मुद्दे पर विदेशी सेलेब्रिटीज़ को नही बोलना चाहिए क्योंकि यह देश का आंतरिक मामला है। वो एक बार के लिए सही हो सकते थे जब वो किसानों के मुद्दों पर  पक्ष या विपक्ष में अपने विचार तो रखते, लेकिन यह क्या की आपकी जिह्वा तब खुली जब सरकार ने आपकी कलाई मोड़कर आप से देशभक्ति साबित करने को बोला ।

करीबन तीन महीनों से चले आ रहे किसान आंदोलन पर तब तक किसी भारतीय फिल्म या क्रिकेट सेलेब्रिटी की नज़र नही पड़ी लेकिन जब रिहाना जैसी अनेक विदेशी सेलेब्रिटीज़ ने लगातार ट्वीट के जरिये इस किसान आंदोलन का समर्थन व सहयोग करने की या इस पर बात करनी चाही तो अपने बिलों घुसे ये फड़फड़ाते हुए बाहर निकले या कहे इन्हें जबर्दस्ती सरकार के पक्ष में बोलने को मजबूर किया है, इन्हें ये आंदोलन मात्र प्रोपोगंडा ही लगा जबकि 170 के करीब यहां लोग अपनी जान गंवा चुके है।

यही सचिन तेंडुलकर को जब सफाई अभियान का अवार्ड दिया गया था, तब उनके मुंह से एक बार भी ये नही निकला, कि वो इस अवार्ड के हकदार नही हैं, वो कभी सीवर में नही उतरे , उन्हें कभी झाड़ू हाथ में नही ली, बस सरकार ने दे दिया और सचिन ने स्वच्छता अभियान अवार्ड ले लिया।

माफ कीजिए लेकिन आज आप सब लोगो की नजर में  बहुत गिर गए है। अब आप लोगो लिए देश के नही केवल सरकार के माउथपीस बनकर रह गए , आप देश का नही आप इस सरकार का बचाव कर रहे है औऱ आपने साबित कर दिया हैं की आपकी खुद की कोई सोच नही है। आप सरकार के द्वारा दी जा रही सुविधाओं या शक्तियों को बचाने के लिए उसके हर निर्णय का बचाव कर रहे है जबकि 2 महीने से सड़कों पर संघर्ष कर रहे है किसानो के लिए आपके मुँह से एक शब्द नही निकला ।

दुनिया लगातार खेमों में बाँटी जा रही है और खेमे छावनियों में तब्दील हो रहे हैं विरोध को विश्वासघात का और आंदोलन को देशद्रोह का चोला पहनाया जा रहा है तर्क , वार्ता , संवाद , अलोचना यहाँ तक की व्यंग्य की भी गुंजाइश नहीं छोड़ी जा रही जो भी सत्ता ऐसा करती है। वह लोगों को विकल्पहीन कर रही है और यह मूलभूत मानव अधिकारों का हनन है ऐसे माहौल में लोग सड़क पर उतर आने और लाठियाँ खाने के लिए मज़बूर हैं। 

इस समय दुनिया के कई देशों में लोग अपनी सरकारों से नाखुश हैं क्या यह मात्र संयोग है ? हमारी सरकारी व्यवस्थाएँ लगातार असहिष्णु , केंद्रित और पितृसत्तक होती जा रही हैं?राइट और लेफ्ट की विचारधाराएँ लम्बे समय से हैं और आज से पहले उनमें माध्यस्तता की तमाम संभावनाएँ थीं लेकिन अब कट्टरता और आत्म मुग्धता का नया स्तर देखा जा रहा है जो सिर्फ़ लड़ने के लिए उकसावा मात्र रह गया है ।

सबसे ज़्यादा दुःखद ये है कि मीडिया, कलाएँ, विश्वविद्यालय और न्यायालय जो नैतिकता और सत्य के पक्षधर रहे हैं जिनकी जिम्मेदारी है कि वह एक जागरूक जन समाज बनाए वह भी विभिन्न दबावों और प्रलोभनों के चलते लोगों के प्रति अपनी ज़वाबदेही भूल चुके है औऱ सरकारो के दबावों में अपने ईमान भी बेच चुके है आज उन सभी सेलिब्रिटी से एक ही बात कहना चाहता हूँ कि सरकार से कब तक डरोगे बिगाड़ के डर से क्या ईमान की बात नही करोगे।

 जब अमेरिका में एक अश्वेत व्यक्ति की बेरहमी से हत्या उन्ही के एक पुलिसकर्मी द्वारा कर दी जाती है तब सारी दुनिया में मानो जैसे भूचाल आ जाता है। हर तरफ से संवेदनाएं प्रकट होने लगती हैं। #blacklivesmatter हैशटैग से पूरा सोशल मीडिया पाट दिया जाता है फेसबुक, व्हाट्सएप्प, ट्विटर और इंस्टाग्राम, हर तरफ से लोग मानवता का पाठ सिखाने लगते हैं। मानवाधिकार संगठनों द्वारा मानव अधिकारों का हवाला दिया जाता है।साहब के परम मित्र तत्कालीन राष्ट्रपति Doland  Trump  की उस घटना के चलते विश्व मीडिया में थू-थू होती है।

वहीं दूसरी तरफ भारत से भी लोगों द्वारा, नेता-अभिनेताओं द्वारा, खिलाड़ियों द्वारा अलग अलग प्रकार से इस कृत्य की चहुँओर निंदा की जा रही थी व रोष व्यक्त किया जा रहा था। खिलाड़ी मैदान पर काली पट्टी बांध के खेलते नज़र आ रहे थे। 

तब उस पूरे घटनाक्रम में यह बात गौर करने वाली थी कि आप इस देश से बैठ कर अपनी भावनाओं को जन-मानस के बीच व्यक्त करके किसी और देश के आंतरिक मामलों में दखल अंदाज़ी कर रहे थे। जाने-अनजाने ही सही, लेकिन ऐसा असल में था। लेकिन आज जब अपने ही देश में इस जुल्मी सरकार द्वारा 150 से ज़्यादा किसानों की बेरहमी से हत्या कर दी गयी तब ऐसा प्रतीत हुआ मानो इन फ़र्ज़ी ढोंगियों को सांप सूंघ गया हो। सरकार व उसके नुमाइंदों ने चंद बिकाऊ मीडिया का सहारा लेकर किसानों को आतंकवादी, खालिस्तानी और नक्सलवादी-माओवादी; न जाने क्या क्या बना दिया।

उनकी समस्या को सुनना तो दूर, उन पर जुल्म की इंतेहा यह हो गयी कि आंदोलन को दंगे में बदलने का प्रयास किया जाता है। अपने ही कुछ लोगों द्वारा उन पर हमला करवा दिया जाता है। उनसे पानी-बिजली को छीन लिया जाता है। ऐसे जाड़े-पाले में उन पर आँसू गैस व पानी की बौछार की जाती है।

और अब जब साहेब व उनकी सरकार की विश्व पटल पर किरकिरी होने लगती है तब इस प्रकरण में आता है एक नया मोड़। कई अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लोग इस मसले में सरकार को घेरते हैं। किसानों का साथ न देने व उन पर हो रहे अत्याचारों का हवाला देते हुए उनसे सवाल करते हैं, तब इस देश की गुमराह की हुई जनता को फिर से गुमराह किया जाता है और उनके खिलाफ खड़ा किया जाता है।

इस मुहिम में सरकार को समर्थन प्राप्त होता है कई बड़े कलाकारों व खिलाड़ियों का; जिनका देश-प्रेम जगजाहिर है। खिलाड़ियों को लेकर मेरा यही मानना है कि आप इस प्रकरण से दूर ही रहें तो बेहतर है। आप भी देश के झंडे तले खेलते हैं व इसका मान बढ़ाते हैं लेकिन अभी फिलहाल सरकार आपकी भावनाओं का सहारा लेकर खेल रही है।

जिस किसी ने भी मोदी सरकार को ग्रेटाथनबर्ग के खिलाफ एफआईआर कराने की सलाह दी है, निश्चित रूप से वह देश और मोदी  का दुश्मन है। ग्रेटा अब विश्व मीडिया में छा गई है। लोग उसे ट्रंप के संदर्भ में भी याद कर रहे हैं। ट्रंप ने ग्रेटा का मजाक उड़ाया था तो ग्रेटा ने अमेरिकी राष्ट्रपति की अकड़ ढीली कर दी थी।

एफआईआर से ग्रेटा का क्या बिगड़ेगा, रिहाना का क्या बिगड़ेगा, मिया ख़लीफ़ा का क्या बिगड़ेगा…कमला हैरिस की भतीजी मीना हैरिस का क्या बिगड़ेगा….?? ग्रेटा ने तो फ़ौरन ही प्रतिक्रिया दे दी कि वो अपना बयान वापस नहीं लेने वाली, बल्कि भारतीय किसानों के लिए और भी अंतरराष्ट्रीय जनमत जुटाएगी। मीना हैरिस ने कहा – न तो मुझे डराया जा सकता है और न चुप कराया जा सकता है। रिहाना, ग्रेटा थनबर्ग, मियाखलीफा के बाद मीनाहैरिस अपने बयान पर कायम हैं। बोलो अब क्या करोगे अमेरिका का… वहां की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की भतीजी मीना हैरिस ने भारत में उठे विवाद और एफआईआर के बाद ताजा हमला बोला है…मीना ने किसान आंदोलन का समर्थन किया था।

सरकार को मान लेना चाहिए कि उसके विदेश मंत्रालय और भाजपाइयों ने सोशल मीडिया पर जो मूर्खता की है, उससे मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण हो गया। मोदी सरकार की विदेशों में जो नाज़ी वाली छवि बन रही है, ग्रेटा के खिलाफ उठाए गए क़दम से और पुख़्ता हो जाएँगे। भारत को फासिस्ट देश घोषित करने से कोई रोक नहीं पाएगा। लाख अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस का बयान समर्थन में आए, दुनिया के लोग अलग ढंग से सोचते हैं। रिहाना, ग्रेटा, मीनाहैरिस और मियाख़लीफ़ा उसी सोच का प्रतिनिधित्व करते हैं।

सरकार की इस मुहिम में प्रोपेगेंडा चलाया जाता है कि देश के आंतरिक मामलों में विदेशी ताकतें व व्यक्ति हस्तक्षेप न करें। इस देश के लोग अपनी समस्याओं को भली भांति जानते हैं व सुलझाने में सक्षम हैं।

मेरा बस उनसे यही सवाल है कि – 

1. जब अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड की बेरहमी से हत्या हुई तब किस हक से तुम लोगों ने उस देश के आंतरिक मसले में हस्तक्षेप किया?? 
2. तुम होते कौन थे उस अश्वेत की मौत पर शोक मनाने वाले?? 
3. तुम होते कौन थे उस पुलिसकर्मी व न्यूयॉर्क पुलिस पर सवाल खड़ा करने वाले?

जिन किसानों ने व उनके फौजी बच्चों ने अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ी, तब तुम्हें उन लोगों में देश-भक्त दिखाई देता था। वो शहीद कहलाते थे। लेकिन आज जब वही किसान अपने हक़ की खातिर सरकार  के खिलाफ लड़ रहे हैं, तो तुम उन्हें आतंकवादी कह रहे हो।

आपको शर्म से डूब के कहीं मर जाना चाहिए। अगर किसानों के लिए अपने दिल में इतनी नफरत भर रखी है तो कसम है तुम्हें कि उनके द्वारा उगाए हुए अनाज-सब्जी, दूध-दही – घी को तुम त्याग दो। तुम खाना नहीं बल्कि गोबर खाने के ही लायक हो। किसान अपनी लड़ाई लड़ेगा और जीतेगा भी लेकिन आज तुम लोगों ने अपने ज़मीर को जीते जी मार दिया। अब लगता है सरकार और किसानों के बीच बातचीत लगभग बंद सी हो गई है और किसानों ने 6 फरवरी को चक्का जाम करने का ऐलान किया है। सरकार पूर्व 26 जनवरी की तरह 6 फ़रवरी को भी चक्का जाम में अपने लोगों के द्वारा टारगेटेड हिंसा को प्रायोजित करती है तो  विश्व जनमत और भी ख़िलाफ़ हो जाएगा। तब कहाँ तक एफ़आईआर कराओगे…

यह देश किसी के बाप की जागीर नहीं है। तानाशाही बिल्कुल नहीं चलेगी इसलिए सुधर जाओ और होश में आ जाओ। किसान को इतना मूर्ख मत समझिये…जो बिगड़ैल बैल की नाक में नकेल डाल कर उसे काबू में कर सकते हैं, वो इस घमंडी सरकार की नाक में भी नकेल डाल देंगे, चिंता मत करिए।

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