अशोक कुमार कौशिक

देश में किसान आंदोलन का मुद्दा बड़े जोर शोर से चल रहा है। कुछ इसे जायज ठहराते हैं तो किसी का मानना है यह गलत है और इसके पीछे अनेक ताकतों का हाथ है । इसको गलत मानने वाले सिंधु बॉर्डर, शाहजहापुर- खेड़ा बॉर्डर तथा गाजीपुर बॉर्डर पर बैठे किसानों को किसान नहीं मानते उनका तर्क है कि असली किसान तो खेतों में है । यह जो सज्जन इस प्रकार का तर्क देते हैं अब हरियाणा में कंडेला  (जींद) रैली के बाद उनका दिमाग  फ्युज हो गया होगा। उनसे कुछ कहते नहीं बन पा रहा।अब उनकी समझ में आ गया होगा देश में किसानों का गुस्सा जायज़ है हो लड़ाई लड़ने वाले किसान ही है। पर इस प्रकार के लोग आसानी से मानने वाले नहीं उनका तर्क है कुछ भी कहो आएगा मोदी ही।

टिकैत को डकैत कहने में भी लोगो ने एक मिनिट की भी देर नहीं लगाई पर डकैत को डकैत कहने में उन्होंने बहुत देरी कर दी। ऐसी घटिया सोच के लोगों कभी दिमाग से भी सोच लिया करो टिकैत तुम्हें डकैत दिखता है और जो लोग रोजाना तुम्हारी जेब काट रहे हैं उनको क्या बोलोगे?

तुम्हारी बैंक में रखा पैसा मिनिमम बैलेंस मैक्सिमम बैलेंस के नाम पर काट लिया जाता है।  ₹65 में मिलने वाला पेट्रोल ₹95 में डलवाते हो वहां डकैती नहीं दिखती। ₹60 वाला डीजल ₹85 में डाला रहे हो । ₹370 में मिलने वाली रसोई गैस ₹725 में ला रहे हो। ₹70 में मिलने वाला सोयाबीन का तेल ₹140 किलो ला रहे हो । ₹70 मैं मिलने वाला सरसों का तेल ₹150 मे मिल रहा है। ₹200 किलो में मिलने वाली चाय की पत्ती ₹350 किलो में ला रहे हो ।

 62000 की एक्टिवा 98000 में ला रहे हो। 65000 की मोटरसाइकिल 95000 में ला रहे हो। ₹210 की सीमेंट की थैली ₹350 में ला रहे हो । 3600 रुपए वाला लोहे का सरिया 6000 में ला रहे हो । 1600 की बालू रेत (बजरी) की ट्राली 5000 में व क्रेशर 4500 में मिल रहा है। 15 सो रुपए में मिलने वाली हजार ईट 5000 में मिल रही है। 

 यही हाल  कृषि में उपयोग होने वाले मोटर पंप पाइप का है, जो सुबह से लेकर शाम तक आपके जेब कटती है। घरों में उपयोग होने वाली बिजली के बिलों को लेकर जमकर जेब कट रही है। सरकार हर महीने बिजली का बिल देने की बजाय दो दो या तीन 3 महीने में एक साथ दे रही है ताकि उपभोक्ताओं को जमकर लूटा जा सके। यहां भी केवाईसी के नाम पर उपभोक्ताओं को भ्रमित किया गया। वहां आप लोगों की आवाज नहीं उठती? जो राकेश टिकैत योगेंद्र यादव तुम्हारे लिए तुम्हारी फसल के लिए तुम्हारी नस्ल के लिए लड़ र हे है वह तुम्हें डकैत दिख रहा है और जो कारपोरेट जगत के भले के लिए लिए जिद पर अड़ा है, वह तुम्हें देशभक्त दिख रहा है। एक बात ध्यान रखना तुम तब तक ही देशभक्त हो जब तक मोदी भक्त हो किसी दिन तुम्हारे हक अधिकार मांग लेना तो देशद्रोही होते देर नहीं लगेगी। और जिन तगमो से तुम लोगों को नवाजते हो वह तगमे तुम्हें मिलते देर नहीं लगेगी। मांग के देख लेना एक बार पता चल जाएगा। कभी कभी खुद के दिमाग से भी सोच लिया करो। 

 तुम्हारा गेहूं चावल संतरा पानी के भाव बिक रहा है। दूध  बिसलेरी के पानी की कीमत के बराबर। पशु आहार की थैली जो 12 सौ रुपए में मिलती थी वह  ₹2300 में एक की थैली। ₹1000 ज्यादा दे रहे हो छोटे से छोटा किसान साल भर में 12 थैली पशु आहार खिलाता है यानी साल भर में कम से कम 12000 तो पशु आहार पर ही दे देते हो। बाकी सुबह से शाम तक जीएसटी हजारों रुपए आपसे लूटने के बाद आपको दो 2000 की तीन किस्त किसान सम्मान निधि में डालकर आपको अंधभक्त बनाया जाता है।

शपथ ग्रहण के पहले ही दिन काले धन के लिए कमेटी बनी। क्या काला धन आया? कितने लोगों को रोजगार दिया है तुम्हारे गांव में तुम्हारे मोहल्ले में एक बार नजर दौड़ा कर देखना। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की भर्ती के नाम पर डिग्री धारियों का के साथ क्रूर मजाक किया गया। हरियाणा में एक मेट्रिक पास सीनियर को एक एम ए-बी एड, इंजीनियर पानी पिलाता है? अगर रोजगार मिल रहा है तो डीसी रेट पर व अप्रेंटिस के नाम पर। क्या यह सरकार की ठेकेदारी प्रथा नहीं है? सरकार का दावा है डिजिटल भारत के नाम पर सीएससी – अटल सेवा केंद्र और ई दिशा केंद्र खोल दिए गए जिन पर जनता को जमकर लूटा जाता है ।

आधार कार्ड, पैन कार्ड, वोटर कार्ड के बाद अब फैमिली आईडी बनवाने में ही जनता को उलझा के रख दिया है ताकि वह इनमें जानबूझकर की गई गलतियों को ठीक करवाने में अपना समय और पैसा खर्च करता रहे सरकार की खामियों की तरफ उसकी नजर जा ये ही नहीं । इसलिए भाई देशभक्त बनो व्यक्तिभक्त नहीं। कभी कभी खुद के दिमाग से भी सोच लिया करो। लोग मुझे फोन लगा लगा कर कह रहे हैं की आप को गुमराह किया जा रहा है और आंदोलन के लिए विदेश से फंडिंग आ रही है। ये सज्जन क्या यह बताएंगे की जींद जिले के कंडेला में अब तक की सफल किसान रैली कौन से देश के फंडिंग से हुई और इस में भाग लेने वाले लोग कौन थे? अरे अंध भक्तों आंखों पर पट्टी  बांध के मत रखो कुछ अपने दिमाग से भी सोच लो । देश के किसान का मिजाज बदल रहा है।

ऐसी सोच के लोगों को मेरी सलाह है कि कभी अपना दिमाग भी लगाओ.. गुरुद्वारो में सालों साल से लंगर चल रहे है, कोविड-19 में उन्होंने लोगों को घर ले जा जाकर खिलाया। ऐसे देश भक्तों पर तुम फंडिंग का आरोप लगाते हो? इसलिए कि तुम्हें तुम्हारे दिमाग से सोचने नहीं नहीं दिया जाता। तुम्हारे दिमाग में देशभक्ति की चासनी और गोदी मीडिया के माध्यम से कचरा भरा जा रहा है।

 गरीब सवर्ण अपने हक के लिए लड़े तो वह मनुवादी हो गए, गुर्जर अपने हकों के लिए आंदोलन करें तो वे डकैत हो गये, यादव बोलें तो चारा चोर हो गये, जाट अपने हकों के लिए आंदोलन करें तो वे बलात्कारी हो गये, सिक्ख किसान अपने हकों के लिए आंदोलन करें तो वे खालिस्तानी हो गये, दलित अपनी बात बोलें तो वे भीमटे हो गये, किसान बोलें तो वो आँतकवादी हो गये,  मुस्लिमों को तो जन्मजात गद्दार का सर्टिफिकेट दे ही रखा हैतो फिर इस देश में राष्ट्रवादी है कौन???

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