उमेश जोशी

आज फिर बैरंग लौटना पड़ा। राज्यपाल सत्यदेव नारायण आचार्य ने नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा समेत कांग्रेस के 30 विधायकों को मिलने का वक़्त नहीं दिया। इससे पहले भी वक़्त मांगा गया था लेकिन राज्य के संवैधानिक प्रमुख के पास काँगेस विधायकों से मिलने का वक़्त ही नहीं है। 

महामहिम किसी भी आम व्यक्ति से बेहतर जानते हैं कि प्रतिपक्ष के बिना लोकतंत्र पंगु है। लोकतंत्र की गरिमा बनाए रखने के लिए प्रतिपक्ष को उचित स्थान और सम्मान देना ज़रूरी है। महामहिम की बाध्यता नहीं है कि वे प्रतिपक्ष की हर बात मानें लेकिन प्रतिपक्ष की संवैधानिक भूमिका के मद्देनजर उसकी बात सुनना ज़रूरी है। हरियाणा के राज्यपाल सत्यदेव नारायण आचार्य प्रतिपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी काँग्रेस के 30 विधायकों को मिलने का वक़्त ही नहीं दे रहे हैं। आज सभी विधायकों ने 11 बजे तक समय मिलने की प्रतीक्षा की; जब राजनिवास से कोई फ़ोन नहीं आया तब नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में सभी विधायक एमएलए होस्टल से राजनिवास की ओर पैदल रवाना हो गए। पुलिस ने राजनिवास से पहले बैरिकेड लगा कर रास्ता रोक दिया और विधायक बारिश में खड़े रहे। 

काँग्रेस चाहती है कि राज्यपाल विधानसभा का विशेष सत्र बुलाएँ जिसमें  काँग्रेस पार्टी गठबंधन सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाना चाहती है। काँग्रेस का कहना है कि सरकार किसान आंदोलन के बाद जनता का विश्वास खो चुकी है इसलिए अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला किया गया है। 

हरियाणा की 90 सदस्यों वाली विधानसभा में दो स्थान खाली हैं। कुल 88 सदस्यों में 45 सदस्यों पर बहुमत होता है। 10 जेजेपी और पाँच निर्दलीयों सहित बीजेपी के पास 55 विधायक हैं फिर भी ना जाने क्यों, बीजेपी अविश्वास प्रस्ताव लाने की चर्चा से भयभीत नज़र आ रही हैं। स्वयं मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और कृषि मंत्री जेपी दलाल स्पष्टीकरण दे रहे हैं कि सरकार को कोई खतरा नहीं है; सरकार पूरे पांच साल चलेगा। इस स्पष्टीकरण के क्या अर्थ हैं? सभी जानते हैं कि 55 विधायकों वाली सरकार सुरक्षित है। लेकिन इस स्पष्टीकरण में खट्टर और दलाल का अदृश्य भय छुपा हुआ है।  ये दोनों जानते हैं कि अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग के समय कई विधायक पाला बदल सकते हैं। यही वजह है कि विशेष सत्र बुलाने की काँगेस की गुहार नहीं सुनी जा रही है।

काँग्रेस यह मानती है कि कुछ विधायक मुखौटा लगा कर घूम रहे हैं। जनता के बीच जाते हैं तो किसानों का ढोल बजाते हैं; किसान आंदोलन को समर्थन देने की हांक लगाते है लेकिन सरकार से समर्थन वापस नहीं ले रहे हैं। यदि वे सचमुच किसानों के साथ हैं तो किसान विरोधी सरकार को ताकत क्यों दे रहे हैं। काँग्रेस जानती है कि विधानसभा में वोटिंग के समय मुखौटा लगाए विधायकों को अपना असली चेहरा दिखाना ही होगा। काँगेस को यह भी विश्वास है कि अविश्वास प्रस्ताव में या तो सरकार गिरेगी या किसानों से झूठी हमदर्दी दिखाने वाले विधायकों का भरोसा गिरेगा और हमेशा के लिए किसानों के सामने बेनकाब हो जाएंगे। 

 विशेष सत्र के दौरान तीन कृषि कानूनों के विरोध में एक प्रस्ताव लाने की योजना है। इसके अलावा काँग्रेस एपीएमसी एक्ट में संशोधन कर एमएसपी सुनिश्चित करने से संबंधित विधेयक भी लाना चाहती है। 

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