इससे लंबा चल रहा है किसान आंदोलन प्रभावित हो सकता है

धर्मपाल वर्मा

चंडीगढ़ – तीन कृषि कानूनों को लेकर चल रहा आंदोलन अब पूरी दुनिया में चर्चा का विषय हो गया है । आंदोलन के लंबे चलने के पीछे एक कारण यह भी रहा है कि यह आंदोलन अभी तक किसी रूप में भी हिसक नहीं हुआ है । किसान संगठनों के नेताओं ने यह कोशिश की है कि कोई भी आंदोलनकारी तोड़फोड़ हिसा गर्मा गर्मी ना करें एक बार ऐसी नौबत आई थी परंतु प्रशासन कहो जो सरकार दोनों ने उस समय सहनशीलता का परिचय दिया जब विभिन्न स्थानों पर किसान संगठनों ने टोल प्लाजा बंद करने मतलब फ्री करने की कोशिश की। इन परिस्थितियों में दोनों तरफ से हिंसा की आशंका हो सकती थी । परंतु बचाव हुआ ।

अब ऐसी खबरें आ रही हैं कि किसान या किसान संगठन या उनके सहयोगी विभिन्न स्थानों पर सत्तारूढ़ भाजपा और जेजेपी के लोगों के कार्यक्रमों में खलल पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। इसे जनसामान्य किसान संगठनों की बौखलाहट के रूप में देखा जा रहा है।

तर्कसंगत लोग जब यह कहते हैं कि लोकतंत्र में हर एक व्यक्ति को अपनी बात कहने का अधिकार है तो फिर सत्तापक्ष को भी इससे वंचित नहीं किया जा सकता । मतलब ऐसा करने से रोकना उचित नहीं है।

इसके पीछे यही लोग तर्क देते देखे गए हैं कि जब सरकार किसानों को सड़क पर ही सही आंदोलन करने से नहीं रोक रही है तो फिर किसानों को सरकार के कार्यक्रमों में दखल नहीं डालना चाहिए मतलब कानून हाथ में नहीं लेना चाहिए।

पिछले दिनों यह खबर आई कि कई गांवों में मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों को लेकर यह दावा किया गया कि किसी भी सूरत में कार्यक्रम नहीं होने दिए जाएंगे , बहुत लोगों को अनुचित नजर आ रहा है । इससे किसानों के प्रति आम जनता का मौजूदा रुख बदलने लगा तो आंदोलन पर इसका बुरा असर पड़ सकता है।

सूत्र बताते हैं कि एक तरफ जहां आंदोलन के नेता बार-बार यह कह रहे हैं कि आंदोलन बिना मांग पूरा हुए वापस नहीं लिया जाएगा मतलब निरंतर जारी रहेगा वहीं अब गठबंधन सरकार ने भी शायद यह फैसला ले लिया है कि वे अपने कार्यक्रम जनसभाएं सभाएं रैलियां जारी रखेंगे ।ऐसे में इस बात को आसानी से समझा जा सकता है कि जब सरकार इस मामले में कृत संकल्प है तो कार्यक्रम होंगे और लोग खलल डालने की कोशिश करेंगे तो फिर हालात बिगड़ेंगे । बल प्रयोग हुआ तो क्रिया की प्रतिक्रिया होगी और इसका असर आंदोलन पर निश्चित तौर पर पड़ेगा इसलिए बहुत लोग किसानों को ही यह सलाह देने लगे हैं कि वे आंदोलन को सफल बनाना चाहते हैं तो ऐसी चीजों से परहेज करें जिसे गैरकानूनी कहा जाए मतलब वे कानून हाथ में न लें ।

यह बात सबके सामने है कि सरकार कानून वापस लेने की बात पर एक बार भी नहीं आई है इसका सीधा सा संदेश यह है कि ऐसी स्थिति में किसानों ने इसे बौखलाहट के रूप में ले लिया तो उनका आंदोलन जरूर प्रभावित होगा । कहीं ऐसा ना हो कि इसी चूक से बड़ी गड़बड़ होने का मार्ग प्रशस्त हो जाए । इस स्थिति को बहुत गंभीरता से सोचने समझने की जरूरत है। क्योंकि सरकार का इस समय यह कहना एक पक्ष है कि इस समय जनता के बीच जाने का उसका मुख्य मकसद कानूनों को लेकर चलाए जा रहे भ्रमऔर भ्रांतियोंको दूर करना है ।

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