कमलेश भारतीय

आंदोलनकारी किसानों और सरकार के बीच तीन कृषि कानूनों को लेकर आठ दौर की बातचीत हो चुकी और नतीजा अगली तारीख । क्या इन बैठकों का कोई फायदा है ? या सिर्फ दिखावा हो रहा है बातचीत का ? सिर्फ थका कर और छका कर घर वापस भेजने की चाल या हरियाणवी में मीठी गोली दी जा रही है ? क्या सच है , क्या झूठ ?

आठवें दौर की बातचीत में आंदोलन के दौरान जिन किसानों की जानें गयीं , उनको दो मिनट का मौन रख कर श्रद्धांजलि दी गयी लेकिन कोई समाधान नहीं दिया गया । यह श्रद्धांजलि तो आप धरना स्थल पर जाकर ही दे आते । इसके लिए विज्ञान भवन की बैठक किसलिए ? आखिर यह साबित होता जा रहा है कि सरकार किसान आंदोलन के प्रति गंभीर नहीं है । इसे अभी तक विपक्ष का किया धरा ही मान कल उपेक्षित कर रही है जो बहुत महंगा पड़ने वाला साबित बो सकता है । खासतौर पर पश्चिमी बंगाल के चुनाव में । सारी मेहनत बेकार जा सकती है । हरियाणा के निगम चुनाव में असर देख लिया । अतिविश्वास में न रहें । गुरुद्वारे का लंगर मिल जुल कर छकना है तो गुरुद्वारे ही बैठक रख लिया करो । वहां शायद गुरु की मेहर हो जाये ।

इधर कंगना रानौत को नये डाॅयलाग दिये गये और बेचारी फिर विवाद में फंस गयी । उर्मिला मातोंडकर शिवसेना में शामिल हुई और तीन करोड़ रुपये का ऑफिस लिया । इस पर कंगना रानौत ट्वीट कर रही हैं कि मैं बेवकूफ हूं कि नहीं ? मैंने अपना ऑफिस तुड़वाया और तुमने ऑफिस बनाया । यानी सारा दोष उर्मिला का । कंगना तो पाक साफ और धुली हैं गंगाजल में । भाजपा ज्वाइन ही कर लो । क्यों पर्दे के पीछे से खेल रही हो ? खुद डायलाॅग लिखो । लिखे लिखाये डायलाॅग से राजनीति नहीः की जाती और न हो सकती ।
खैर । किसानों ने नारा दिया है कि

कानून वापसी नहीं तो घर वापसी नहीं ,,,

अब बातचीत कैसे ?
इसीलिए मांग है कि बैठक की मीडिया में लाइव कवरेज की जाये ताकि सच झूठ सामने आ जाये

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