30 तारीख मंगलवार को संयुक्त किसान मोर्चा की सरकार से होनी है बात. हरियाणा निगमों के आने हैं चुनाव परिणाम

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

आखिर मंगलवार 30 दिसंबर 2020 को किसान संगठनों और सरकार के बीच दोपहर दो बजे बातचीत का समय तय हो गया है और बातचीत होगी लेकिन गत वार्ताओं की तरह इस वार्ता में भी कोई परिणाम आने की आशा कम ही है।

आज हमारे देश की कोरोना से बड़ी समस्या किसान आंदोलन बना हुआ है और दिन-प्रतिदिन किसानों के समर्थन में जनता के आने का सिलसिला भी बना हुआ है, जिससे किसान अपनी परेशानियां और थकान को कम महसूस कर उत्साह में भरे नजर आ रहे हैं। हालांकि उनके क्रियाकलापों से कभी-कभी यह भी लगता है कि उनका संयम कुछ टूट रहा है। किसानों की एक ही मांग है कि कृषि कानूनों को निरस्त किया जाए। साथ ही अब वे पराली कानून और बिजली कानून में भी संशोधन या समाप्ति चाहते हैं।

सरकार की ओर से आज तक यह नहीं माना गया है कि ये बिल किसानों के लिए नुकसानदेह हैं। उनकी ओर से यही कहा जा रहा है कि किसान कानून किसानों के लिए लाभप्रद है। इससे आगे बढक़र सरकार का यह भी कहना है कि ये सब किसान विपक्ष द्वारा भ्रमित किए हुए हैं। ऐसी अवस्था में यह विचार ही नहीं आता कि समझौता होने की संभावना है।

छठे दौर की बातचीत के पश्चात वार्ताओं का सिलसिला टूट गया था। हालांकि सरकार कह रही थी कि हम हर समय बातचीत को तैयार हैं लेकिन किसानों का छठे दौर की बातचीत में भी कहना था कि वार्ता नहीं हां या ना। और लगता ऐसा है कि अब भी किसान उसी सोच पर अडिग हैं। ये बात किसानों द्वारा सरकार को लिखे पत्र द्वारा सिद्ध होती दिख रही है।

दोनों ही पक्षों की ओर से आज मीटिंगों का दौर जारी है। किसान भी मीटिंगें कर रहे हैं और वे तो करते ही रहते हैं, क्योंकि वे सभी बैठे तो धरने पर हैं। सरकार की ओर से भी मीटिंगें चल रही हैं और शायद खबर लिखने के समय भी अमित शाह की अध्यक्षता में मंत्रियों के साथ कल बातचीत के बारे में रणनीति तय की जा रही हैं।

इन सभी बातों को देखकर लगता तो नहीं कि कल कोई निर्णय होगा लेकिन फिर भी हम यह आशा अवश्य करेंगे कि देश, प्रदेश और मानवता के उत्थान के लिए कहीं न कहीं समझौता हो जाए।

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