किसान आंदोलनकारियों से बात करने की फुर्सत नहीं, पर भाजपा नेताओं की खुशामद जारी. प्रदेश की जनता मांग रही विश्वासघात का हिसाब, मूर्ख बनाने की कोशिश न करें दुष्यंत

जजपा नेता और हरियाणा सरकार में उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला को भाजपा नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों से बातचीत करने का ढोंग व फोटो खिंचवाने की बजाय अपने पद से त्यागपत्र देते हुए प्रदेश की खट्टर सरकार से समर्थन वापिस लेना चाहिए। दुष्यंत के पास सत्ता की मलाई में हिस्सेदारी के लिए भाजपा नेताओं से नगर परिषद और नगर पालिकाओं के चुनावी गठबंधन और राजनीतिक सौदेबाजी करने के लिए तो समय है लेकिन किसान आंदोलनकारियों से बात करने की फुर्सत नहीं, जो उनकी प्राथमिकताओं को दर्शाती है।

प्रदेश की जनता को भलीभांति याद है कि हरियाणा के विधानसभा चुनाव से पहले जजपा और दुष्यंत चौटाला किस प्रकार से भाजपा सरकार में भ्रष्टाचार, सरकारी नौकरियों में हेराफेरी और किसानों की परेशानियों की बात करते थे, फिर विधानसभा चुनावों में भी जजपा और दुष्यंत चौटाला ने भाजपा को मदद करने के लिए अपने प्रत्याशी उतारे थे, जिन्होंने अनेक विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा को जीतने में मदद की।

हरियाणा की भाजपा-जजपा सरकार द्वारा किसान आंदोलन को कमजोर करने के लिए जो सड़क खोदने, आंसू गैस-वाटर कैनन-लाठीचार्ज करने के बाद उन्हें बदनाम करने के लिए खालिस्तानी-चीन-पाकिस्तान के समर्थन से चलने वाला आंदोलन बताने जैसे शर्मनाक हथकंडे अपनाये गए गए, उसे किसान वर्ग और प्रदेश की जनता ने अपनी आँखों से देखा है, लेकिन उस सब के बावजूद जजपा और दुष्यंत चौटाला शर्मनाक रूप से सत्ता से चिपके बैठे हैं। सच्चाई यह है कि देश का किसान अपनी आजीविका, रोजी रोटी और खेत खलिहान को बचाने के लिए अपने जीवन की लड़ाई लड़ रहा है, लेकिन भाजपा के विरोध में वोट मांग कर भाजपा की गोदी में बैठी जजपा ने अपने मतदाताओं को धोखा दिया है। 

ये लड़ाई केवल 62 करोड़ किसानों की नहीं बल्कि देश के 130 करोड़ लोगों की है। इसलिए जनता की भलाई और किसान आंदोलन की सफलता के लिए जजपा और उसके नेताओं से मेरा खुला सार्वजनिक आह्वान है कि वे सत्ता का लालच छोड़ कर भाजपा से तुरंत अपना नाता तोड़ें। यदि दुष्यंत भाजपा का साथ छोड़ने को तैयार नहीं हैं तो उनके तमाम विधायकों को किसान आंदोलन को समर्थन देते हुए विधायक दल की बैठक बुलाकर नया नेता चुनकर खट्टर सरकार से समर्थन वापिस ले लेना चाहिए। यदि पिछले विधानसभा में जजपा प्रत्याशी और जजपा पदाधिकारी किसान आंदोलन के साथ हैं तो उन्हें भी जजपा से अपना नाता तोड़ लेना चाहिए। ऐसा न करने पर प्रदेश का किसान उन्हें माफ़ नहीं करेगा और वे किसानों के गुनहगार माने जाएंगे।

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