-कमलेश भारतीय

साल अब अपने अंत की ओर बढ़ता जा रहा है । हर साल अंत में लिखा जोकि किया जाता है । क्या खोया, क्या पाया ? हर क्षेत्र का लेखा जोखा । सोचता हूं कि क्या क्या याद रहा ? बच्चन जी के शब्दों में क्या भूलूं , क्या याद करूं?

हाल ही के कुछ महीनों में मीडिया में सुशांत सिंह राजपूत, क॔गना रानौत , दीपिका पादुकोण , रकुल , सारा अली खान समेत न जाने कितने सितारे छाये रहे । कर्ण जौहर आलोचना के केंद्र में रहे । रिया चक्रवर्ती तो पूछो ही न । सबको याद रहेगी । पर आखिर हुआ क्या ? रिया को जमानत मिल गयी । मामला खटाई में या कहूं कि गयी भैंस पानी में । कुछ न निकला । हां , भारत पूछता ही रह गया कि क्या हुआ और पूछ रहा है । पर कोई बताने वाला नहीं । आत्महत्या से हत्या और फिर कुछ भी नहीं निकला । सब खेल खत्म टीआरपी का ।

कंगना रानौत का खूब चर्चा रहा । खुली चुनौती महाराष्ट्र सरकार व उद्धव ठाकरे को जब डायलाग मारा कि आज मेरा घर टूटा है कल तेरा घम॔ड टूटेगा । यहां तक तो ठीक चला लेकिन जब किसान आंदोलन पर बोली तब घिर गयी बुरी तरह । पीछा छुड़ाने की कोई राह नज़र नहीं आ रही । लोग तो कोर्ट तक घसीट ले गये । अपनी सीमा न पहचानने की सज़ा । कंगना को कोई रानी लक्ष्मी बाई से तुलना करने लगा तो कोई फैशन फिल्म के फोटोज दिखाने लगा । बड़ी बात कि जब राज्यपाल से मिलने गयी तो मीडिया ने ऐसा दृश्य पेश किया की कोई बहुत बड़ा राजनेता जा रहा हो । हद है यार ।
सोनू सूद चर्चा में रहे अपने निराले अंदाज में जो रूप फिल्मों में न देखा वह ज़िंदगी में दिखाया । दीपिका से लेकर हर हीरोइन ड्रग्स को लेकर चर्चा में रही । यहां तक कि साल के अंत तक आते आते काॅमेडियन भारती और उनके पति हर्ष ड्रग्स लेने का आरोप साबित होने पर जेल भेजे गये । कुछ तो सच्चाई निकली ।

राजनीति में वर्ष भर चूहे बिल्ली का खेल चलता रहा । राजस्थान के विधायक माल खाने के बावजूद काबू नहीं आए । अब चाणक्य फिर से इनसे हिसाब मांगने चले हैं । ऐसा सुनने में आ रहा है । महाराष्ट्र पर भी टेढ़ी नज़र है ।

किसान आंदोलन ने वर्ष के अंत में सारी सफलताओं पर पानी फेर दिया लगता है । कह रहे हैं कि किसान वाला सवाल आउट ऑफ सिलेबस आ गया । पता नहीं लेकिन चुपचाप बिना बहस के पारित किये प्रस्ताव बड़ा दुख दे रहे हैं राम जी । ऐसा रहा तो आपका मंदिर बनाना भी काम नहीं आयेगा चुनाव में । फिर क्या करें और कैसे इस मुद्दे को भटकाएं ? कुछ सूझ नही रहा । मीटिंग पे मीटिंग और तारीख पे तारीख कुछ काम नहीं आ रही । जायें तो जायें कहां? समझेगा कौन मेरे दिल की जुबान ?

वैसे साल में बहुत कुछ हुआ । कुछ लेखा जोखा आप भी कीजिएगा ।

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