विश्व रत्न भारत पुत्र हाकी के महान खिलाडी हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को शत शत नमन् . हाकी खेल व खिलाडियो की खेल सुविधायो के लिए प्रयासरत समाजसेवी योगराज शर्मा ने पुण्यतिथी श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा विश्व रत्न भारत पुत्र हाकी के महान खिलाडी हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को विश्व सदा सदा याद रखेगा ———–

-हेमंत चंद दुबे बबलू बैतूल

—- नवम्बर 1979 के अंतिम सप्ताह में मेजर ध्यानचंद का स्वास्थ अत्याधिक बिगड़ने लगा और परिजनों और स्नेही जनों ने इस बात का निर्णय लिया की अब मेजर ध्यानचंद को झांसी से नई दिल्ली बेहतर उपचार के लिए एम्स में भर्ती कराया जाए और इसी निर्णय के अनुसार मेजर ध्यानचंद को परिजनों द्वारा रेल के साधारण डिब्बे से झांसी से नई दिल्ली एम्स लाया गया जहां उन्हें जनरल वार्ड में भर्ती करा दिया गया जहां कुछ दिन उपचार चलते हुए मेजर ध्यानचंद की हालत दिन पर दिन बिगड़ती चली गई और हॉकी के जादूगर और दुनिया के महानतम हॉकी खिलाड़ी ने 3 दिसंबर 1979 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया ।

इस दुखद समाचार को सबसे पहले एम्स के जूनियर डॉक्टर गजेंद्र सिंह चौहान ने मेजर ध्यानचंद के सुपुत्र ओलंपियन अशोक कुमार को यह कहते हुए भरे हुए गले से रूंधती आवाज़ में समाचार दिया की अशोक कुमार दुनिया के महानतम खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद ने अब इस दुनिया को अलविदा कह दिया है और वे अब इस दुनिया में नहीं है जिसने अपने जीवन में खेल के मैदान में कभी हार नहीं मानी आज वह अपने जीवन से हार कर हमें अलविदा कह गया है। डॉक्टर गजेंद्र सिंह चौहान और कोई नहीं बल्कि महाभारत सीरियल के युधिष्ठिर की भूमिका निभाने वाले कलाकार है जिनसे मेजर ध्यानचंद के जीवन की यह दुखद अंतिम याद जुड़ी हुई है।

यह समाचार सुनकर अशोक कुमार स्तब्ध अवाक शब्द विहीन हो गए । थोड़ी देर में अपने को संभालते हुए अस्पताल से दूर स्थित पूसा शव वाहन के प्रबंध के लिए एम्स से मोटर साइकिल से प्रस्थान करते हैं ।इस बीच मेजर ध्यानचंद की मृत्यु का समाचार जंगल में आग की तरह फैल जाता है । अशोक कुमार जब तक लौट के आते हैं तब तक देखते हैं कि पूरा नज़ारा ही बदला हुआ है एम्स केंपस मीडिया कर्मियों खिलाड़ियों शुभचिंतकों और अधिकारियों से भरा हुआ है । प्रख्यात कॉमेंटेटर शोकाकुल जसदेव सिंह अशोक कुमार को गले लगाकर हिम्मत देते है। इसी बीच परिजनों को यह सूचना दी जाती है की मेजर ध्यानचंद के पार्थिव शरीर को नई दिल्ली से झांसी हेलीकॉप्टर से भेजे जाने का प्रबंध किया जा चुका है और इस प्रकार मेजर ध्यानचंद के शव को नई दिल्ली से झांसी हेलीकॉप्टर से लाया जाता है जहां झांसी हवाई अड्डे पर उनके पार्थिव शरीर को उतारने के पश्चात उनके पैतृक निवास स्थान सिपरी बाजार की ओर ले जाने की व्यवस्था होती है

सड़क के दोनों किनारों पर हजारों हजार लोग अपने देश के सदी के महानायक को अंतिम विदाई देने खड़े रहते हैं क्योंकि संसार का सूरज ढल चुका है और धरती का चांद ध्यानचंद बन्द आखो से अपनी रोशनी के साथ आसमान के चांद की रोशनी में जा मिला है ।रात्रि में परंपरा के अनुसार सूर्यास्त के बाद दाह संस्कार संभव नहीं हो पाता अतः ध्यान चंद जी का पार्थिव शरीर को उनके सिपरी बाजार स्थित पैतृक निवास स्थान में रखा जाता है ।

मेजर ध्यानचंद के अभिन्न मित्र , वैद्यनाथ प्राण दा के संस्थापक झांसी के तत्कालीन संसद सदस्य और मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन को राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित करवाने वाले पुरोधा पंडित विश्वनाथ शर्मा भी दिल्ली से झांसी रेल से पहुंच जाते है और और फिर परिजनों से चर्चा करने के बाद यह निर्णय लेते हैं कि मेजर ध्यानचंद का अंतिम संस्कार श्मशान घाट में न करके मेजर ध्यानचंद के निवास के समीप स्थित मेजर ध्यानचंद की कर्म और खेल भूमि हीरोज मैदान पर किया जाएगा किंतु उनके इस निर्णय से प्रशासनिक अधिकारी सहमत नहीं थे ।

पंडित विश्वनाथ शर्मा इस बात को लेकर वहां धरने पर बैठ गए। प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा इस बात की दलील दी जाती है कि सार्वजनिक स्थल पर अंतिम संस्कार की अनुमति नहीं दी जा सकती है ।इस बात पर पंडित विश्वनाथ जी शर्मा जन समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि मैंने परिवार वालों से बात की और यह घोषित कर दिया कि ध्यानचंद का अंतिम संस्कार यही हीरोज ग्राउंड पर होगा ।उन्होंने कहा की गांधीजी नेहरू जी आदि का संस्कार यदि सार्वजनिक स्थल पर हो सकता है तो फिर देश के दुनिया के महानतम खिलाड़ी ध्यानचंद का क्यों नहीं ?

ध्यानचंद जी का भी उतना ही राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व है जितना भारत के किसी महान नेताओं का जिनका अंतिम संस्कार सार्वजनिक स्थानों पर किया गया ।इस तर्क के आगे प्रशासनिक अधिकारी निरुत्तर हो गए और इसके साथ वहा उपस्थित जनसैलाब ने पंडित विश्वनाथ जी शर्मा की बात का समर्थन करते हुए मेजर ध्यानचंद की याद में गगनभेदी नारों से पूरा आसमान को गुंजा दिया उमड़ते जनसैलाब और जन भावनाओं को देखते हुए प्रशासनिक अधिकारियों ने आखिरकार हीरोज मैदान पर मेजर ध्यानचंद के अंतिम संस्कार की अनुमति प्रदान कर दी।

मेजर ध्यानचंद ने केवल हॉकी नही खेली बल्कि उन्होंने अपने देश की संस्कृति और देश का मान भी अपने खेल कौशल से आगे बढाया । 1936 बर्लिन ओलिंपिक खेलो का आयोजन तानाशाह हिटलर के नेतृत्व में हो रहा था जो दुनिया को यह जतलाना चाहता था कि उसकी नस्ल दुनियां की सर्वश्रेष्ठ नस्ल है जो किसी से परास्त नही हो सकती और ऐसी परस्थितियों में भारत का मुकाबला हॉकी फाइनल मैच में जर्मनी से हुआ और भारत मेजर ध्यानचंद की टीम ने हिटलर के सामने ही जर्मनी को परास्त कर दिया और इस विजय से दुनियां को भारत का यह संदेश दे दिया कि कोई भी नस्ल या रंग बड़ी नही होती वरन कौशल विन्रमता और अपनी संस्कृति से देश जाना पहचाना जाता है और मेजर ध्यानचंद हिटलर के सामने यह सब इसलिए कर पाए कि वे उस धरती में पले बढ़े हुये और उस मातृभूमि का नेतृत्व करते थे जिसे भारत कहते है ऐसे भारत पुत्र मेजर ध्यानचंद जब चिरनिद्रा में गये तब मोहन बागान क्लब कोलकाता की ओर से भी मेजर ध्यानचंद को अंतिम प्रणाम करने हेतु भारत के महान तीन बार के ओलंपिक पदक विजेता गुरबख्श सिंह जिन्होंने मेजर ध्यानचंद से प्रशिक्षण प्राप्त किया कोलकाता से झांसी अंतिम संस्कार के समय सारी बाधाओं को पार करते हुए झांसी पहुंच जाते है और अपने श्रद्धा सुमन मोहन बागान क्लब कोलकाता की ओर से और भारत के सभी खिलाड़ियों की ओर से अपने इस महानतम हाकी खिलाड़ी को अर्पित करते हैं ।

साथ ही मोहन बागान क्लब द्वारा ₹5000 की आर्थिक सहायता भी मेजर ध्यानचंद के परिजनों को देते हैं। इसके पश्चात आर्मी द्वारा गार्ड ऑफ ऑनर देते हुए अपने महान सैनिक और राष्ट्र के गौरव ध्यानचंद को सलामी दी गई । मेजर ध्यानचंद के जेष्ठ पुत्र बृजमोहन सिंह द्वारा अपने महान पिता मेजर ध्यानचंद को मुखाग्नि दी जाती है ।वहां उपस्थित जनसैलाब ने अपनी नम आंखों से सदी के महानायक को अलविदा और अंतिम प्रणाम किया ।ध्यानचंद के हीरोज के साथी मथुरा प्रसाद, नन्हे लाल, जगदीश शरण माथुर, ए डी बाबा, चटर्जी साहब,लल्लू शर्मा चाचा जी ने बड़े भारी मन से अपने जीवन के सबसे अच्छे मित्र और हीरोज के अपने खिलाड़ी को अलविदा कहा। धरती का चांद ध्यानचंद आसमान के चांद से मिल गया पर धरती के चांद हमारे ध्यानचंद ने अपने खेल और व्यक्तित्व की रोशनी से पूरे संसार को प्रकाशित और आलोकित कर दिया ।

जिसकी रोशनी आज भी हमे जीवन में अंधेरे से प्रकाश की ओर ले जाने में सहायक बनी हुई है। कुछ सालों के पश्चात मेजर ध्यानचंद को चाहने वाले झांसी निवासियों ने उसी स्थान पर मेजर ध्यानचंद की एक मूर्ति लगाने का निर्णय लिया और इस संबंध में सबसे ज्यादा सक्रियता मुरली मनोहर शर्मा ,नरेंद्र अत्री, बिपिन बिहारी जी की रही जिन्होंने पंडित विश्वनाथ शर्मा के मार्गदर्शन और कुशल नेतृत्व में इस मिशन को पूरा करने के लिए दिन रात एक कर दिए ।

पंडित विश्वनाथ शर्मा ने स्वयं इस कार्य के लिए 13275 रुपए प्रदत किए वही ध्यानचंद के चाहने वालों ने जिले भर के विद्यार्थी स्कूली बच्चों से एक एक रुपए एकत्रित किए और इस प्रकार समाज के सभी वर्गों से धन का संकलन करते हुए 48 567 एकत्रित किए गए । झांसी रोटरी क्लब ने इस पूरे अभियान में अपना सहयोग देते हुए मूर्ति प्रदत की और फिर 23 सितम्बर 1982 को झांसी आर्म्ड डिवीजन के जनरल श्री क्लेयर ने पंडित विश्वनाथ जी शर्मा के साथ इस मूर्ति का अनावरण किया । मैदान पर इस जमा राशि से दर्शकों को बैठने के लिए दर्शक दीर्घा का भी निर्माण कराया गया है ।किसी भी खेल मैदान पर किसी भी खिलाड़ी की लगने वाली यह दुनिया की पहली मूर्ति है जो आज हम सभी को प्रेरणा देते हुए हीरोज मैदान समाधि स्थल के नाम से आज विख्यात है।

इसी प्रकार एक मूर्ति हीरोज मैदान के समीप स्थित पहाड़ी पर लगाई गई है और यह वह पहाड़ी है जो मेजर ध्यानचंद की मेहनत और उनके ध्यानचंद बनने की कहानी को कहती और सुनाती है क्योंकि यही वह पहाड़ी है जिसने मेजर ध्यान चंद को रात और दिन , झांसी हीरोज पर कड़ी मेहनत और अभ्यास करते हुए देखा है । उसी पहाड़ी पर मेजर ध्यानचंद की एक और मूर्ति वहां के पूर्व विधायक और सांसद प्रदीप जैन द्वारा लगावाई गई है । जब वे हीरोज मैदान पर ओलंपियन अशोक कुमार के साथ उस पहाड़ी को निहारते हुए खड़े थे तब उन्होंनेअपने स्वयं से एक संकल्प लेते हुए कहा कि अशोक भाई यहां आने वाले समय में मैं इस पहाड़ी पर मेजर ध्यानचंद की एक मूर्ति को प्रतिस्थापित अवश्य करूंगा और उन्होंने अपने जीवन काल में इस कार्य को ,अपने संकल्प को पूरा किया। आप जब भी रेल मार्ग से दिल्ली के लिए जाते हुए या दिल्ली से आते हुए दूर पहाड़ी पर नजर दौड़ आएंगे तो आपको मेजर ध्यानचंद पहाड़ी से अपने स्वर्णिम इतिहास को लिए हुए दिखलाई पड़ जाएंगे और आपका शीश उनके सम्मान में अपने आप ही झुक जाएगा।

विधायक रवि शर्मा, सांसद अनुराग शर्मा झांसी नगर निगम के मेयर पार्षद गण और प्रशासनिक अधिकारी सभी नागरिक ,खिलाड़ी ,मीडिया जगत से जुड़े लोग मेजर ध्यानचंद के उन चाहने वालों झांसी निवासियों के प्रति हम आभार व्यक्त करते है जिन्होंने अपने संघर्ष और आस्था से मेजर ध्यानचंद की स्मृतियों को हीरोज मैदान पर मूर्ति लगाकर साथ मेजर ध्यानचंद के समाधि स्थल का निर्माण कराया और ,हीरोज मैदान के समीप पहाड़ी पर मेजर ध्यानचंद की मूर्ति प्रतिस्थापित करके हम सभी देशवासियों के लिए प्रेरणा स्थल का निर्माण किया है ।

जब रेल से कभी आप दिल्ली से आ रहे हों या जा रहे हो तो पहाड़ पर लगी मेजर ध्यानचंद की मूर्ति को देखना न भूले और विचार करे कि अभावों में गुरबत के दिनों में इस भारत पुत्र ने क्या खेल खेला होगा कि भारत माँ का मस्तक गर्व से हमेशा हमेशा के लिए सदियो सदियो तक ऊंचा कर दिया। आसमान का चांद तो सिर्फ पूर्णिमा पूर्णिमा रोशन होता है किंतु धरती के चांद ध्यानचंद ने अपनी खेल की रोशनी से हमे हमेशा हमेशा के लिए रोशन कर दिया । मेजर ध्यानचंद के हीरोज मैदान समाधि स्थल को जहाँ मेजर ध्यानचंद का अंतिम संस्कार सम्पन्न हुआ नमन करते हुए मेजर ध्यानचंद को श्रद्गसुमन अर्पित करते हैं। उन्हें याद करते है जब तक संसार गतिमान रहेगा तब तक मेजर ध्यानचंद हमेशा हमेशा इस धरती पर दुनियां में याद किये जाते रहेंगे ।

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