भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

हरियाणा में किसान आंदोलन उग्र रूप धारण करता जा रहा है और लगता है कि सरकार इसे संभालने की राह ढूंढ नहीं पा रही। अब तक तो हरियाणा सरकार प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर चल रही थी और हर समस्या का समाधान मोदी का नाम होता था परंतु वर्तमान परिस्थितियों में लड़ाई ही मोदी के बनाए कानून से है तो मोदी का नाम कैसे आएगा काम?

मुख्यमंत्री सदा ही कहते रहे कि किसान आंदोलन कोई गंभीर बात नहीं है। आंदोलन आरंभ होने के बाद भी गुरुग्राम में मुख्यमंत्री ने कहा कि हरियाणा का किसान इस आंदोलन में नहीं है और सारा ठीकरा कांग्रेस तथा कैप्टन अमरिंद्र पर फोड़ा था। लगता है कि मुख्यमंत्री के इस ब्यान ने किसानों में आग में घी का काम किया। उस दिन के पश्चात हरियाणा की अधिकांश जनता किसान आंदोलन के साथ दिखाई देने लग गई और मुखर होकर साथ होने का ऐलान भी करने लगी। उसमें चाहे कर्मचारी यूनियनें हो, बार एसोसिएशन ने भी समर्थन किया, खाप भी समर्थन दे रही हैं। इसके अतिरिक्त कुछ गांवों से भी ऐसे समाचार मिल रहे हैं कि उन गांवों में भी फैसला किया जा रहा है कि हम आंदोलनकारी किसानों का साथ देंगे।

हरियाणा सरकार की ओर देखें तो सरकार के सहयोगी जजपा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला का किसान आंदोलन आरंभ होने के पश्चात से आज तक कोई ब्यान नहीं आया है न किसान आंदोलन के समर्थन में और न ही विरोध में। हां, एक बार उनके भाई दिग्विजय चौटाला का ब्यान अवश्य आया था कि सरकार को किसानों की मांग सुननी चाहिए और उनका समाधान करना चाहिए लेकिन इस पर भी वह सोशल मीडिया पर खूब ट्रोल हुए कि सरकार में बैठे हो और ऐसी बातें करते हो।

आज हरियाणा सरकार के गृहमंत्री गुरुद्वारे में मत्था टेकने गए अपने ही विधानसभा क्षेत्र में लेकिन वहां उन्हें किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा और वापिस आना पड़ा। इसी प्रकार निर्दलीय विधायक सोमवीर सांगवान जो भाजपा का साथ दे रहे थे और चेयरमैन पद पर भी आसीन थे, इस्तीफा देकर किसानों के साथ आ गए।

हरियाणा सरकार एक तरह से मजबूर है किसान बिलों का समर्थन करने के लिए, क्योंकि वह बनी ही प्रधानमंत्री मोदी के आशीर्वाद से है और बिल भी मोदी ने बनाए हैं। अत: वह विरोध में तो बोल नहीं सकते और वर्तमान स्थिति में ऐसा आभास हो रहा है कि किसान ही नहीं हरियाणा की आम जनता भी किसान बिलों के पक्ष में सुनने को तैयार नहीं। शायद यही कारण है कि प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़, मुख्यमंत्री मनोहर लाल, कृषि मंत्री जेपी दलाल, गृहमंत्री अनिल विज लगभग रोज ही कोई न कोई ब्यान देते रहते थे लेकिन आजकल उनमें कमी आई है।

वर्तमान स्थितियों को देखते हुए हरियाणा सरकार के स्थायित्व पर प्रश्न चिन्ह खड़े हो रहे हैं। राजनैतिक चर्चाकारों का कहना है कि दुष्यंत चौटाला यदि इस समय सरकार से समर्थन वापिस नहीं लेंगे तो जनता में उनका वर्चस्व समाप्त पर्याय हो जाएगा। अत: आशा की जा सकती है कि यदि किसानों की समस्या का समाधान नहीं हुआ तो वह समर्थन वापिस ले लेंगे। ऐसी अवस्था में सरकार का बचना मुश्किल है, क्योंकि निर्दलीय विधायक भी जनता की आवाज को देखते हुए सरकार को समर्थन दें, ऐसा लगता नहीं।

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