आग लगी आकाश में झर-झर गिरे अंगार,संत न होते जगत में तो जल मरता संसार” ।

युद्धवीर सिंह लाम्बा

30 नवंबर, सोमवार को भारत और पूरे विश्व में महान संत और सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देवजी का 551वां प्रकाश पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। गुरुनानक देव जी सिखों के प्रथम गुरु थें। सिख धर्म की स्थापना 15वीं शताब्दी में भारत के उत्तर-पश्चिमी पंजाब प्रांत में गुरुनानक देव जी ने की थी। गुरुनानक देव जी के अनुयायी इन्हें गुरु नानक, बाबा नानक और नानकशाह नामों से संबोधित करते हैं।  अंधविश्वास और आडंबरों के कट्टर विरोधी नानक जी का जन्म 1469 में कार्तिक पूर्णिमा को  पंजाब (पाकिस्तान) क्षेत्र में रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी गांव में एक हिंदू परिवार में हुआ ।  तलवंडी को अब ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है। तलवंडी पाकिस्तान के लाहौर जिले से 30 मील दक्षिण-पश्चिम में स्थित है।

16 वर्ष की उम्र में गुरुनानक देव जी का विवाह गुरदासपुर जिला के लाखौकी नामक स्थान की रहने वाली सुलक्खनी से हुआ। इनके दो पुत्र श्रीचंद और लख्मी चंद थें।  पुत्रों के जन्म के बाद गुरुनानक देव अपने चार साथी मरदाना, लहना, बाला और रामदास के साथ तीर्थयात्रा पर निकल पड़े। 1521 तक इन्होंने तीन यात्राचक्र पूरे किए, जिनमें भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के मुख्य-मुख्य स्थानों का भ्रमण किया। इन यात्राओं को पंजाबी में “उदासियाँ” कहा जाता है। गुरु नानक देव जी ने 7500 पंक्तियां की एक कविता लिखी थी, जिसे बाद में गुरु ग्रन्थ साहिब में शामिल कर लिया गया । ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ सिख संप्रदाय का प्रमुख धर्मग्रंथ है।  गुरुनानक देव जी  ने मृत्यु से पहले अपने प्रिये शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था जो बाद मंत गुरु अंगद देव के नाम से जाने गए। 

गुरु नानक देव जी ने सदा ही पूरी मानवता के कल्याण के लिए सोचा और समाज को हमेशा सत्य, कर्म, सेवा, करुणा और सौहार्द का मार्ग दिखाया। उनके अनुयायियों में हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही थे; तभी तो उनके बारे में एक लोकोक्ति अत्यंत लोकप्रिय रही

गुरु नानक एक शाह फ़क़ीर, हिन्दू का गुरु, मुस्लिम का पीर ।

गुरु नानक देव जी सदियों पहले जिस लंगर परंपरा की शुरुआत की थी वह परंपरा आज भी कायम है।  दरअसल  बचपन में गुरु नानक देव के पिता मेहता कालू ने एक दिन घर में सौदा (राशन) लाने के लिए नानक को पैसे दिए थे। नानक घर से निकले तो रास्ते में कुछ भूखे साधु-संत दिखाई दिए। नानक ने उसी पैसों से सभी भूखों को भोजन करवा दिया और खाली हाथ घर लौट आए। पिता द्वारा राशन लाने के लिए दिए गए पैसों से नानक देव ने संतों को भोजन कराया था, उसी की याद में आजकल गुरुद्वारों में लंगर होता है।  आज भी प्रतिदिन गुरुद्वारा में अरदास (प्रार्थना) के अंत में कहा जाता है— ‘नानक नाम चढ़दी कला तेरे भाणे सरबत दा भला’

गुरु नानक देव जी ने अपना पूरा जीवन समाज को सदमार्ग दिखाने के लिए समर्पित किया था ।  संत कबीर ने अपने दोहों में कहा है कि ‘बिरछा कबहुं न फल भखै, नदी न अंचवै नीर। परमारथ के कारने, साधू धरा शरीर’। अर्थात वृक्ष अपने फल को स्वयं नहीं खाते, नदी अपना जल कभी नहीं पीती। ये सदैव दूसरों की सेवा करके प्रसन्न रहते हैं उसी प्रकार संतों का जीवन परमार्थ के लिए होता है अर्थात् दूसरों का कल्याण करने के लिए शरीर धारण किया है। 

गुरुनानक देव जी ने करतारपुर नामक एक नगर बसाया, जो अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत स्थित नारोवाल जिले में है। भारत-पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय सीमा से करतारपुर 3.80 किलोमीटर दूर है। गुरुनानक देव जी ने अपनी जिंदगी के आखिरी 17 साल 5 महीने 9 दिन यहीं करतारपुर में गुजारे थे और 22 सितंबर 1539 को अपनी जिंदगी की आखिरी सांस ली थी। सिख समुदाय के लिए करतारपुर साहिब एक पवित्र तीर्थ स्थल है। नेपाल ने भी गुरुनानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व के उपलक्ष्य में सितंबर माह में सौ रुपये, एक हजार और ढाई हजार रुपये के तीन स्मारक सिक्कों का सेट जारी किया था । पाकिस्तान सरकार ने भी श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व पर 50 रुपये का एक सिक्का जारी किया था । कोलकाता टकसाल ने भी गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व पर  550 रुपये का स्मारक सिक्का जारी किया था । 

गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं हमें सत्य एवं सामाजिक सद्भावना के मार्ग पर चलने का ज्ञान देती है, इसलिए हमें अपने जीवन में गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं को आत्मसात करना चाहिए। गुरु नानक देव जी ने जो शिक्षा एवं संदेश समाज को दिया, वह आज भी मनुष्य का मार्गदर्शक बनी हैं। समूची मानवता के लिए श्री गुरू नानक देव की शिक्षाएं बहुमूल्य मार्ग दर्शन है, जिन्हें अपनाकर मनुष्य अपने जीवन को सफल बना सकते है।   हमें गुरु नानक देव जी के बताए हुए मार्ग पर चलना चाहिए। जब तक हम उनकी दी गई शिक्षाओं को नहीं अपनाते तब तक हमारा जीवन अधूरा है।  मेरा (युद्धवीर सिंह लांबा, धारौली, झज्जर) मानना है कि गुरु नानक जी की शिक्षाओं को आत्मसात कर मनुष्य को न केवल अपने जीवन को सफल बनाना चाहिए बल्कि अपनी भावी पीढ़ियों को भी प्रेरणा देते हुए संस्कारवान बनाना चाहिए।  

नानक नाम जहाज है, चढ़े सो उतरे पार, जो श्रद्धा कर सेव दे, गुरु पार उतारणहार ।